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Purnia News : अस्तित्व-संकट से जूझ रही नदियों के संरक्षण को सामूहिक संकल्प की जरूरत

पूर्णिया की कई छोटी नदियां धीरे-धीरे खत्म हो गयीं. जबकि कई पर अस्तित्व का संकट है. वहीं शहर में अकेली बची सौरा नदी को भी प्रदूषण और जल शत्रुओं से बचाने की जरूरत है. विश्व नदी दिवस पर हमें नदियों को बचाने का संकल्प लेना होगा.

Purnia News : पूर्णिया. कहते हैं, नदियां मानवता को प्रकृति का अनमोल तोहफा है. इसी से हमारे जीवन का विकास भी जुड़ाहै. एक जमाना था जब घने वृक्ष-लताएं और नदियां पूर्णिया की पहचान हुआ करती थीं. लेकिन आज हम विकास की अंधी दौड़ में इन नदियों के अस्तित्व के साथ ही खिलवाड़ कर रहे हैं. वैसे, दोष जलवायु परिवर्तन और मौसम के गरमाते मिजाज का भी है. पर नदियों को मिटाने में हम सब खुद भी कोई कसर नहीं छोड़रहे. आलम यह है कि सौरा समेत जिले की कई छोटी नदियां धीरे धीरे खत्म हो गयीं, तो कई अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं. आज विश्व नदी दिवस है. ऐसे अवसर पर नदियों के संरक्षण के लिए हम सबको सामूहिक पहल करने का संकल्प लेना होगा, क्योंकि नदियों के सिमटने से पर्यावरण पर भी गहरा असर पड़ रहा है. हम यदि आज प्रयास करेंगे, तो कल नदियां जीवित रहेंगी. यदि नदियां जीवित रहेंगी तो जल संरक्षण होगा और हम सबका अस्तित्व भी सुरक्षित रहेगा.

पूर्णिया की नदियों पर गहरा रहा है अस्तित्व का संकट

जिला मुख्यालय और आसपास के इलाके से गुजरी कई नदियों पर अस्तित्व का संकट गहरा रहा है. अगर देखा जाये तो शहर के पूर्वी हिस्से में किसी जमाने में मनुषमारा धार बहती थी. इसमें हांसदा स्थित रमैलीचौर का पानी बहता था जो गुलाबबाग होते हुए खुश्कीबाग से निकल कर कप्तान पुल के पास सौरा नदी में मिल जाता था. धार इतनी चौड़ी थी कि सिक्स लेन पर दो पुल भी बने हुए हैं. पहले गुलाबबाग और खुश्कीबाग के नाला का पानी इसी धार में गिरता था. मगर आज पुल तो है पर धार पर इंसानी कब्जा है और आम लोगों की जिंदगी मझधार में है. अगर देखा जाए तो जिले की कई छोटी नदियां धीरे धीरे खत्म हो रही हैं. इससे एक तरफ जहां सिंचाई की समस्या उत्पन्न हो रही है, वहीं दूसरी तरफ पर्यावरण संकट भी गुजरते वक्त के साथ गहराता जा रहा है.

सड़क पर पुल रह गया, गायब हो गयी नीचे की जलधारा

गुलाबबाग से आगे बढ़ने पर सौरा नदी पर बने कप्तान पुल और लाइन बाजार के बीच चार पुल मिलते हैं. पहले लाइनबाजार चौक के ठीक पहले एक कल्वर्ट भी हुआ करता था जो अब नहीं है. सभी पुलों के नीचे से तेज धार बहती थी. ये सभी सौरा की उपधाराएं थीं, जो आज पूरी तरह सूख चुकी हैं. हालांकि पुल तो अभी भी हैं पर नदियों की जगह पर बड़ी बड़ी इमारतें खड़ी हैं. अमूमन बायपास रोड से गुजरने वाली काली कोशी नदी की भी यही स्थिति है. सड़क पर लंबा चौड़ा पुल है पर नीचे सूखी हुई नदी में कई बड़ी बड़ी बिल्डिंग बन कर तैयार हैं. जानकारों का मानना है कि पानी निकलने के तमाम रास्ते बंद हो गए हैं. यदि कभी सैलाब आया, तो बहुत बड़ी तबाही हो सकती है.

ग्रामीण इलाके की नदियों पर भी असर

ग्रामीण इलाके में भी नदियों की हालत बहुत अच्छी नहीं है. वैसे, बायसी अनुमंडल की नदियों की स्थिति अमूमन ठीक है. पर धमदाहा अनुमंडल के दाहा क्षेत्र की नदियां संकट के दौर से गुजर रही हैं. इतिहास के जानकारों का कहना है कि किसी जमाने में कोशी का मुख्य प्रवाह इसी इलाके से हुआ करता था और इसी वजह से इधर के गांवों के नाम के साथ दाहा शब्द का प्रयोग की बातें कही जाती हैं. धमदाहा, पुरन्दाहा,चकरदाहा, वंशीपुरन्दाहा, आदि ऐसे कई गांवों के नाम हैं. जानकारों की मानें तो भउआ परवल के रास्ते कुरसेला में गंगा से संगम करने वाली हिरण्यधार का कोई अस्तित्व नहीं है. इसी तरह गुलेला धार, दुद्धिधार आदि समेत दर्जनों छोटी नदियां आज अस्तित्व विहीन हो गई हैं जिसे पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से गंभीर समस्या माना जा रहा है.

जल संकट का संकेत दे रहा सौरा का घटता पानी

सौरा नदी का घटता पानी आने वाले सालों के लिए जल संकट का संकेत दे रहा है. जानकार बताते हैं कि यहां भूगर्भीय जल स्तर सालाना छह इंच नीचे जा रहा है. पिछले साल की तुलना में इस साल अब तक तीन इंच तक वाटर लेबल कम हुआ है और यही चिंता का विषय बन रहा है क्योंकि वाटर लेबल कम होने का सिलसिला पिछले 12 वर्षों से जारी है. जानकारों की मानें तो बारिश के घटते दिन, जलवायु परिवर्तन और मौसम के गरमाते मिजाज के कारण ग्राउंड वाटर लेवल नीचे जा रहा है. यह अलग बात है कि शहर के बीच से गुजरने वाली सौरा नदी पर जल शत्रुओं की बुरी नजर भी लगी हुई है. आलम यह है कि इस नदी में जहां लोग मृत पशुओं को ऊपर से ही फेंक देते हैं जबकि नदी किनारे कहीं कचरा डाला जाता है तो गुलाबबाग और खुश्कीबाग के सभी मोहल्लों का गंदा पानी नाला के जरिये सौरा नदी में चला जा रहा है.

सौरा नदी की सहायक धाराओं पर भी है अस्तित्व का संकट

पूर्णिया. शहर के बीच से गुजरने वाली सौरा नदी की कन्ट्रीब्यूट्री यानी सहायक धारा अस्तित्व के संकट से जूझ रही है. इस धारा को मनुषमारा धार कहा जाता है. आलम यह है कि दो दशक पहले तक जो धारा किसी छोटी नदी की तरह दिखती थी वह आज छोटे नाला की शक्ल में आ गयी है. जानकारों का कहना है कि इस पर न केवल कब्जा किया गया है बल्कि उसे टुकड़ों में कर बेचा भी गया है. यह अलग बात है कि इस धारा पर अलग अलग स्थानों पर तीन पुल भी बने हुए हैं. गौरतलब है कि पूर्णिया सिटी और गुलाबबाग के बीच स्थित कलीजान के रैमैलीचौर से निकल कर एक धारा हासदा से गुलाबबाग होते हुए सिंघिया टोला, चौहान टोला, लकड़ी पट्टी, अब्दुल्ला नगर, ठाकुर नगर, खुश्कीबाग के पीछे से होते हुए कटिहार मोड़ पार कर मिलनपाड़ा के समीप सौरा नदी में मिल जाती है. यही वह धारा है जिसके जरिये गुलाबबाग और खुश्कीबाग के सभी मोहल्लों का पानी सौरा नदी में चला जाता था. यही वजह है कि उन दिनों कच्चा नाला होने के बावजूद इस इलाके में जलजमाव नहीं होता था.

कहीं सूख गये चौर, तो कहीं सूखने के कगार पर

  • ब्रह्म ज्ञानी चौर – 1200 एकड़
  • धमदाहाचौर – 700 एकड़
  • रघुवंशनगरचौर – 800 एकड़
  • बरेढा चौर – 100 एकड़
  • विशुनपुर चौर – 200 एकड़
  • शासनबंध चौर – 250 एकड़
  • मुट्ठा चौर – 603 एकड़
  • मटबारा चौर – 1000 एकड़
  • रमजानी चौर – 2400 एकड़
  • दुधीनगर धार – 3400 एकड़
  • खुरहरी धार – 200 एकड़
  • कजरा धार — 500 एकड़
  • सुरसर धार — 50000 एकड़

आंकड़ों पर एक नजर

  • 02 भागों में शहर को बांटती है सौरा नदी
  • 06 बड़ी नदियां आज भी पूर्णिया जिले से गुजरती हैं
  • 03 नदियां हर साल मचाती हैं सैलाब की तबाही
  • 04 नदियों से ही किया जा सकेगा बालू का खनन

हमें निभानी होगी सक्रिय भागीदारी

धरती पर नदियां सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण का आधार हैं. विश्व नदी दिवस दुनिया भर में नदियों की स्थितियों पर ध्यान आकर्षित करता है. उनकी स्वच्छता की तरफ जन जागरूकता लाने का उद्देश्य बताता है. सभी देशों में नदियां प्रदूषित हो रही हैं और किसी न किसी तरह से नुकसान पहुंचाया जा रहा है. विश्व नदी दिवस दुनिया के जलमार्गों का उत्सव है. यह हमारी नदियों के कई मूल्यों पर प्रकाश डालता है. लोगों में जागरूकता बढ़ाने का प्रयास करता है और दुनिया भर की सभी नदियों के बेहतर प्रबंधन को प्रोत्साहित करता है. केवल हमारी सक्रिय भागीदारी से ही हम आने वाले वर्षों में उनके स्वास्थ्य को सुनिश्चित कर सकते हैं.
– सुमित प्रकाश, सौरा नदी बचाओ अभियान रिवरएक्टिविस्ट.

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