Purnia News : पर्यटन के क्षेत्र में आज भी विकास की बाट जोह रहा पूर्णिया
पूर्णिया जिले के 19 स्थलों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का लक्ष्य है. 2020 में स्थल निरीक्षण भी किया गया. लेकिन इस दिशा में कोई ठोस काम नहीं हो सका है.
Purnia News : पूर्णिया. ऐतिहासिक धरोहरों को संजोए पूर्णिया पर्यटन के क्षेत्र में आज भी विकास की बाट जोह रहा है. हालांकि हालिया सालों में कुछ काम हुए हैं और काझा कोठी की प्राकृतिक खूबसूरती को संवारने की मुख्यमंत्री की चाहत व जिला प्रशासन के प्रयासों से पर्यटन विकास की उम्मीद जगीहै. पर यह सवाल भी सामने है कि इस उम्मीद को मुकाम कब मिलेगा?पूर्णियावासी पिछले कई दशकों से पर्यटन क्षेत्र के विकास को लेकर वायदों और घोषणाओं को लेकर इस तरह के सवाल उठा रहे हैं, क्योंकि मुगलिया सल्तनत की बानगी बयां करने वाला जिले का जलालगढ़ किला आज भी खंडहर की शक्ल में दिख रहा है. वैसे, देखा जाये तो पर्यटन विकास के नाम पर कतिपय धार्मिक स्थलों के सौंदर्यीकरण के अलावा बहुत कुछ नहीं हो सका है, जिसकी उम्मीद आज तक लोग बांधे हुए हैं.
उपलब्ध जानकारी के अनुसार, पर्यटन विभाग ने वर्ष 2020 में जिले के 19 स्थलों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की ठानी थी. इन स्थलों को विकसित करने के लिए बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम को डीपीआर तैयार करने की जिम्मेदारी भी सौंपी गयी थी. करीब 200 करोड़ का डीपीआर बनना था. डीपीआर तैयार करने के लिए पांच सदस्यीय टीम ने 2020 में ही पूर्णिया पहुंच कर सभी स्थलों का निरीक्षण किया था. पूरण देवी मंदिर, सिटी काली मंदिर, रानीपतरा सर्वोदय आश्रम, कला भवन, कैथोलिक चर्च, गिरिजा चौक, शहीद स्मारक, टाउन हाल, पाल्मर्स हाउस, पूर्णिया कॉलेज, फोर्ब्स हाउस, राजकीय कन्या उच्च विद्यालय, गांधी सर्किट, रानीपतरा, रानीसती मंदिर, कसबा, जलालगढ़ का किला, काझा कोठी, कामख्या स्थान मंदिर, माता स्थान, आदमपुर, प्रह्लाद स्तंभ, हिरण्यकश्यप घर, धीमेश्वर महादेव स्थान, वरुणेश्वर स्थान, गांधी सर्किट, विष्णुपुर एवं गांधी सर्किट, टीकापट्टी को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाना था. इनमें कहां कितना काम हो सका है, यह पब्लिक के सामने है. ये सभी स्थल पर्यटन विभाग की केटेगरी (सी)में सूचीबद्ध हैं.
ऐतिहासिक जलालगढ़ किले के उद्धार का इंतजार
इंडो-नेपाल बॉर्डर से सटे ऐतिहासिक जलालगढ़ किला को इस्लामिक स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना कहा जाता है. यह जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर एनएच 57 के किनारे स्थित है. इस वर्गाकार किले की लंबाई और चौड़ाई एक सौ गुणा एक सौ वर्ग मीटर है. प्रथम गजेटियर में केपीएस मेनन ने 1911 में लिखा है कि ऐतिहासिक किले का निर्माण खगड़ा किशनगंज के प्रथम राजा सैयद मो जलालुद्दीन खां द्वारा हुआ था. सैयद जलालुद्दीन खां को राजा का खिताब मुगल बादशाह जहांगीर द्वारा किया गया था. जानकारों के अनुसार, 16 वीं शताब्दी में इस ऐतिहासिक किले का निर्माण मोरंग नेपाल क्षेत्र के लुटेरों से सुरक्षा को ध्यान में रखकर किया गया था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद इस किले का भ्रमण कर इसे पर्यटक स्थल बनाने की घोषणा की थी. वैसे, वर्ष 2017 में तत्कालीन पर्यटन मंत्री ने घोषणा की थी कि जलालगढ़ किले का न सिर्फ जीर्णोद्धार किया जायेगा, बल्कि उसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जायेगा. इसके लिए विस्तृत प्लान तैयार किया जा रहा है. ऐसे में लोगो को उम्मीद है कि इस ऐतिहासिक किले का उद्धार होगा.
पर्यटन स्थल बनने की आस में हैं शहर के मंदिर
प्रमंडलीय मुख्यालय से करीब पांच किलोमीटर दूर पूर्णिया-अररिया सड़क मार्ग के दोनों तरफ बसा है पूर्णिया सिटी का इलाका, जिसे लोग मंदिरों का शहर भी कहते हैं. पूर्णिया सिटी अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और पुरातन लोक परंपराओं के लिए यह विख्यात रहा है. यहीं पर पुरणदेवी मंदिर स्थापित है, जिसे वन देवी भी कहा जाता रहा है. पटना की पटनदेवी की तरह यहां भी देवी जागृत मानी जाती हैं. शहर को दो हिस्सों में बांटने वाली सौरा नदी के तट पर अवस्थित ऐतिहासिक काली मंदिर का अपना अलग इतिहास रहा है. ऐसी मान्यता है कि महाभारतकाल में पांडव पुत्र अर्जुन भी अपने वनवास के दौरान इस मंदिर में पूजा करने आते थे. सात सौ वर्ष पुराना जैन मंदिर जैनियों का समागम स्थल है, तो ऐतिहासिक गुरुद्वारा साझी आस्था की मिसाल भी है. अव्वल तो यह कि मंदिरों के इस शहर में भक्तों को दर्शन देने के लिए भगवान जगन्नाथ मंदिरों से निकल कर नगर भ्रमण करते हैं. माता त्रिपुर सुंदरी का विशाल मंदिर आज भी सिटी की ऐतिहासिक और धार्मिक अहमियत का अहसास दिला रहा है. अपने इलाके के इन धरोहरों को संवार-संभाल कर रखने में हम बहुत कामयाब नहीं हो सके हैं. पर हम निराशावादी भी नहीं. पूर्णिया सिटी को भरोसा है कि पर्यटन स्थल बनने की उम्मीद को मुकाम मिलेगा.
काझा कोठी ने जगायी पर्यटन विकास की उम्मीद
पूर्णिया-धमदाहा मुख्यमार्ग पर अवस्थित काझा कोठी में चल रहे कार्यों से इस उम्मीद को संबल मिला है कि आने वाले दिनों में पूर्णिया देश के पर्यटन विकास के मानचित्र पर दिखेगा.काझा कोठी का विकास कार्य एक आइकॉनिक प्रोजेक्ट के तहत हो रहा है. यहां दिल्ली हाट की तर्ज पर काझा हाट बनाया जा रहा है, जहां न केवल पूर्णिया की परंपरा बल्कि कोसी-पूर्णिया की कला-संस्कृति की झलक भी मिलेगी. कोशिश की जा रही है कि इस हाट में कोसी-पूर्णिया की संस्कृति से जुड़ी सभी चीजें उपलब्ध हों.काझा कोठी के विरासत को संरक्षित कर इस जगह को पर्यटन के रूप में भी विकसित करने की योजना है. इसके तैयार हो जाने से पूर्णिया तथा आसपास के लोगों को मनोरंजन तथा एडवेंचर के लिए एक बेहतरीन स्थान उपलब्ध होगा. यहां मनोरंजन के साथ विरासत का अनूठा गठजोड़रहेगा. यहां 1807 वर्ग फुट का डाइनिंग एरिया बनाया जा रहा है, जिसका उपयोग पर्यटकों द्वारा किया जायेगा.काझा कोठी में 20 स्टॉल का निर्माण कराया जाना है. इसमें 10 स्टॉल स्थायी तथा 10 स्टॉल पोर्टेबल प्रकृति के होंगे. स्टॉल का उपयोग फूड स्टॉल व क्राफ्ट स्टॉल के रूप में किया जायेगा.काझा कोठी के तालाब में पैडल बोटिंग की व्यवस्था की जायेगी.
पर्यटन की दृष्टि से विकसित किये जाने वाले स्थल
- सौरा तट पर मैरिन ड्राइव
- जलालगढ़ का किला
- पूरण देवी मंदिर
- काली मंदिर, सिटी
- कला भवन
- कैथोलिक चर्च, गिरिजा चौक
- शहीद स्मारक, टाउन हाल
- पाल्मर्स हाउस, पूर्णिया कॉलेज
- फोर्ब्स हाउस, कन्या उच्च विद्यालय
- गांधी सर्किट, रानीपतरा
- रानीसती मंदिर, कसबा
- कामख्या स्थान मंदिर
- माता स्थान, आदमपुर
- प्रह्लाद स्तंभ
- हिरण्यकश्यप घर
- धीमेश्वर महादेव स्थान
- वरुणेश्वर स्थान
ये काम भी हैं जरूरी
- पर्यटन स्थलों की घेराबंदी
- लाइटिंग की व्यवस्था
- रात्रि विश्राम के लिए व्यवस्था
- पैदल पहुंच पथ
- शौचालय व स्नानघर
- सुरक्षा के साधन-संसाधन
- आवागमन को ले वाहन