राजकुमार चौधरी, पूर्णिया पूर्व आजादी के रण में रानीपतरा का कण-कण काम आया था. यही वजह है कि आज भी रानीपतरा का नाम जेहन में आते ही पूर्णियावासी नतमस्तक हो जाते हैं. पूर्णिया और कटिहार के बीच स्थित रानीपतरा ने आजादी के सभी आंदोलनों में अपनी आहुति दी. पुराने लोग बरबस याद करते हैं कि गरम दल का नेतृत्व दायित्व मिश्रीलाल कर रहे थे. नरम दल की कमान गुलाब चंद साह के जिम्मे थी. अन्य प्रमुख लोगों में कृष्णदेव मेहता ,पांचू उरांव, पूरन ऋषि ,नीरज ऋषि और अन्य स्थानीय थे . बड़े नेताओं मे नरसिंह नारायण सिंह, बैजनाथ प्रसाद चौधरी और कमलदेव नारायण सिन्हा मार्गदर्शन कर रहे थे 1942 के आंदोलन में सभी ने एकमत होकर रानीपतरा रेलवे स्टेशन का तार काट दिया था और रेलवे ट्रैक को उखाड़ फेंका था. इसके बाद मिश्रीलालजी ने अपनी गिरफ्तारी दी और वह जेल भी गए . इससे पहले रानीपतरा से शुरू हुई गांधीवाद की लहर पूरे पूर्वोतर बिहार में फैल गयी. सर्वोदय आश्रम परिसर में गांधी चबूतरा आज भी पुराने पलों का साक्षी है. 9 अप्रैल 1934 को इसी स्थान से गांधीजी ने आजादी के हुंकार भरी थी. गांधीजी की प्रेरणा से गुलाब चंद साह ,कमल देव नारायण सिन्हा कृष्ण देव मेहता आदि स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े और रानीपतरा स्वतंत्रता आंदोलन के कार्यों का एक केंद्र बन गया. आजादी के बाद भी स्वराज का संकल्प कायम रहा. सर्वोदय आंदोलन और भूदान आंदोलन के माध्यम से रानीपतरा ने नये भारत के निर्माण का मार्ग आलोकित किया.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है