देश की आजादी से जुड़ी है गुलाबबाग सुनौली चौक की दुर्गा पूजा
पूर्णिया. शहर की सबसे पुरानी दुर्गा पूजा समितियों में से एक है गुलाबबाग के सुनौली चौक स्थित सार्वजनिक पूजा समिति जहां स्थापना काल से अभी तक यानी 82 सालों से प्रतिमा का स्वरुप नहीं बदला है. यही नहीं, प्रतिमा का आकार और परिधान में भी बहुत बदलाव नहीं हुआ है. यह जिले का एक ऐसा मंदिर है जिसकी पृष्ठभूमि में स्वतंत्रता संग्राम है. इसका इतिहास 82 साल पुराना है. इस मंदिर ने यदि गुलामी की तस्वीर देखी तो आजादी का आईना भी दिखाया. इस मंदिर के प्रति आज गुलाबबाग का पूरा समाज श्रद्धा से नतमस्तक है. आज यहां आस्था के साथ पूजा-अर्चना की जाती है तो अपनी संस्कृति को भी सजाया-संवारा जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में लोगों की हर मनौती पूरी होती है और इस दृष्टि से भी यहां पूजा करने वालों की पूरी भीड़ उमड़ पड़ती है. इस बार यहां आकर्षक पूजन पंडाल का निर्माण चल रहा है.
क्या है मंदिर का इतिहास
इस मंदिर की स्थापना सन् 1942 में तब हुई थी जब पूरे देश में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आन्दोलन की हवा चल रही थी. उस समय राम कुमार केडिया, वृजमोहन केडिया,रितलाल चौधरी, छुतहरु लाल मांझी, आदित्य नाथ मिश्र, केवल चंद बोरड़, चम्पालाल पुगलिया जैसे उर्जावान व्यक्ति थे जिनके मन में भगवती की पूजा के साथ-साथ देश भक्ति का भी जज्बा था. इन लोगों में आज कोई हमारे बीच नहीं हैं. कहते हैं, उस समय दुर्गा की पूजा शुरु करते हुए हर कोई ने भगवती से देश की आजादी की कामना से शक्ति की पूजा शुरु की थी. तब से आज तक यह मंदिर आस्था का केन्द्र बना हुआ है.
पूजन की मिथिला पद्धति
पूर्णिया के अधिकांश दुर्गा मंदिरों में बंगाल की संस्कृति मिलती है पर गुलाबबाग के इस दुर्गा मंदिर में मिथिला की पूजन पद्धति से पूजा की जाती है. पूजा समिति की ओर से अध्यक्ष हरि प्रसाद चौधरी एवं सचिव सुंदरलाल संचेती बताते हैं कि यहां आरम्भ से ही दरभंगा के विद्वान पंडितों को बुलाया जाता रहा है. आज भी इस परम्परा का निर्वाह किया जाता है. मंत्रोच्चार के साथ जब पूजा शुरु होती है तो आस्था रखने वाले तमाम श्रद्धालु मंदिर में इकट्ठे हो जाते हैं और आरती-प्रसाद के बाद ही निकलते हैं. श्री चौधरी एवं श्री संचेती कहते हैं कि यह सिलसिला लगातार दस दिनों तक चलता रहता है.ग्रामीण मेला की झलक
गुलाबबाग शहर का हिस्सा जरुर है पर इसके आस-पास गांव के गांव बसे हुए हैं. दुर्गा पूजा में यहां अच्छा मेला लग जाता है. प्रसाद के लिए मिठाई की दुकानें रहती हैं तो बच्चों के लिए खिलौने की दुकानें भी सजती हैं. मिट्टी के वर्तन और खिलौने इस मेला के खास आकर्षण होते हैं. दूर-दराज के गांवों से आने वाली महिलाएं यहां जम कर खरीदारी करती हैं जिससे मेला में ग्रामीण संस्कृति की भी झलक मिल जाती है. लोग कहते भी हैं कि यहां शहरी एवं ग्रामीण संस्कृति का संगम हो जाता है.निखर उठते हैं कला के रंग
गुलाबबाग भले ही व्यवसायिक नगरी है पर यहां कला प्रतिभा की कमी नहीं. दुर्गा पूजा के अवसर पर यह सच सामने भी आता है. पूजा समिति के अध्यक्ष हरि प्रसाद चौधरी और सचिव सुंदर लाल संचेती के अलावा अर्जुन साह, राजकुमार गुप्ता, युगल किशोर बोरड़ आदि की यह कोशिश रहती है कि अपने लोकल युवक अपनी कला प्रतिभा का प्रदर्शन करें. फोटो-15 पूर्णिया 1परिचय- कुछ ऐसी ही दिखेगी यहां देवी दुर्गा की प्रतिमा
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