Purnia news : जीएमसीएच में मोतियाबिंद के ऑपरेशन की सुविधा नहीं
Purnia news : जीएमसीएच में मोतियाबिंद के ऑपरेशन की सुविधा न होने से मजबूरन मरीजों को इलाज के लिए अन्यत्र जाना पड़ता है.
Purnia news : जिला मुख्यालय में सरकारी स्तर पर मोतियाबिंद निवारण की व्यवस्था कई वर्षों से बाधित है. इसके लिए मोतियाबिंद से पीड़ित मरीजों को निजी चिकित्सकों तथा आइ सर्जन की शरण में जाना पड़ता है. दूसरी ओर सीमावर्ती क्षेत्र होने की वजह से भी यहां के मरीज नेपाल की ओर अपना रुख कर लेते हैं. जीएमसीएच के ओपीडी विभाग में सामान्य तौर पर आंखों की जांच और उपचार की व्यवस्था के शुरू होने के बाद मेडिकल कॉलेज में नेत्र रोगियों की संख्या में इजाफा हुआ है. प्रतिदिन करीब 70 से 80 मरीज आंखों की विभिन्न समस्याओं को लेकर यहां पहुंचते हैं. इन मरीजों में लगभग आधा दर्जन मरीज मोतियाबिंद की समस्या से प्रभावित पाए जाते हैं, लेकिन जीएमसीएच में इसके ऑपरेशन की सुविधा उपलब्ध नहीं होने की वजह से मजबूरन ऐसे मरीजों को मोतियाबिंद के इलाज लिए अन्यत्र जाना पड़ता है.
सदर अस्पताल के समय आंख विभाग भी था कार्यरत
राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल की स्थापना से पूर्व पूर्णिया सदर अस्पताल में सर्जिकल वार्ड के एक कोने में आंख विभाग कार्यरत हुआ करता था. इस आंख विभाग में नेत्र रोग विशेषज्ञ सर्जन भी पदस्थापित थे. ग्रामीण नेत्र स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत नेत्र वसंत नाम से नेत्र जांच एवं मोतियाबिंद ऑपरेशन बिलकुल मुफ्त किया जाता था, जिसका संचालन जिला स्वास्थ्य समिति, लेप्रा सोसाइटी और साइटसेवर्स द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता था. अस्पताल में तैनात एक स्वास्थ्यकर्मी ने बताया कि कुछ वर्ष पूर्व यहां पदस्थापित चिकित्सक का स्थानांतरण हो जाने के बाद से ही यहां मरीजों को दी जा रही सेवा बंद हो गयी.
किसी भी उम्र में हो सकता है मोतियाबिंद
नेत्र रोग विशेषज्ञ चिकित्सकों का कहना है कि मोतियाबिंद की समस्या किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है. इनमें बच्चे भी शामिल हैं. इससे अंधापन की समस्या के साथ-साथ शारीरिक और मानसिक दिक्कतें भी हो सकती हैं. कई मामलों में समय पर ऑपरेशन नहीं करवाने से यह फट भी सकता है जिससे स्थायी तौर पर भी अंधापन हो सकता है. अमूमन मोतियाबिंद ऑपरेशन में आंखों का ऑपरेशन कर उसमें कृत्रिम लेंस लगाया जाता है. एक जानकारी के अनुसार निजी तौर पर मोतियाबिंद के ऑपरेशन में करीब तीन हजार से लेकर पचास हजार रुपये या उससे भी ज्यादा तक का खर्च आता है. कितनी लागत आएगी यह लेंस और मशीन के ऊपर निर्भर करता है.
ओपीडी में जांच व उपचार उपलब्ध, पर सर्जरी की व्यवस्था नहीं
फिलहाल जीएमसीएच के ओपीडी में आंख के मामले में स्लिट लैंप परीक्षण द्वारा आंखों की संरचनाओं, कॉर्निया, आइरिस, विटेरस एवं रेटिना की जांच की जाती है.ओप्थैल्मिक टेस्ट के माध्यम से दृष्टि एवं आंखों के स्वास्थ्य के बारे में पता लगाया जाता है. ट्रॉमा के मामलों में आंखों में किसी भी तरह के जख्म एवं परदे में दिक्कत की जांच की सुविधा है. जल्द ही आंखों में दृष्टि की गड़बड़ी निकट अथवा दूर दृष्टि दोष आदि से संबंधित इलाज यहां संभव हो सकेगा, लेकिन मोतियाबिंद ऑपरेशन के मामले में अभी तक सुविधा नदारद ही है.
आवश्यकतानुसार जांच की जाती है : डॉ श्वेता
जीएमसीएच की नेत्र सर्जन डॉ श्वेता भारती ने बताया कि फंडोस्कोपी पर्दा जांच, आंखों की स्लिट लैंप परीक्षण, डायरेक्ट एवं इनडायरेक्ट ओप्थैल्मिक, ट्रॉमा अथवा परदे में किसी भी तरह की दिक्कत हो उसकी जांच आवश्यकतानुसार की जाती है.रेटिनोस्कोपी की भी सुविधा जल्द उपलब्ध होगी. उसकी मशीन उपलब्ध है. ऑपरेशन थियेटर के हैंडओवर हो जाने एवं चिकित्सक तथा कर्मियों के आ जाने के बाद आइ ऑपरेशन संभव हो सकेगा.
हैंड्स व विशेषज्ञ चिकित्सक की कमी : उपाधीक्षक
जीएमसीएच के उपाधीक्षक डॉ कनिष्क कुणाल ने कहा कि आंख के ऑपरेशन का मामला बेहद संवेदनशील होता है. इसके लिए बिलकुल अलग साधन संपन्न ऑपरेशन थियेटर होना चाहिए, जो फिलहाल निर्माण कर रही एजेंसी द्वारा मेडिकल कॉलेज को उपलब्ध नहीं कराया जा सका है. दूसरी ओर ओपीडी एवं ऑपरेशन सहित अन्य कार्यों को सुचारू रूप से चलाने के लिए हैंड्स तथा विशेषज्ञ चिकित्सक की भी कमी है. कुछ सीनियर रेजिडेंट्स, एसोसिएट प्रोफेसर अथवा प्रोफेसर की भी सख्त जरूरत है.