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नमक आंदोलन के बाद आजादी के दीवानों की राजधानी बन गयी टीकापट्टी

नमक कानून तोड़ो आंदोलन की सफलता के बाद

विजय कुमार सिंह, रूपौली. सन 1930 में नमक कानून तोड़ो आंदोलन की सफलता के बाद टीकापट्टी आजादी के दीवानों की राजधानी बन गयी. ग्रामीणों द्वारा प्रतिदिन एक-एक मुट्ठी अनाज एकत्रित कर क्रांतिकारियों को भोजन मुहैया कराया जाता था. स्वतंत्रता सेनानी धनिक लाल पोद्दार, बैकुंठ पोद्दार ,अमित चन्द्र केशरी, पृथ्वी चन्द्र केशरी, दशरथ चौधरी, द्वारका मंडल, अयोध्या चौधरी, दरोगा चौधरी, जगदेव गुप्ता, जगन्नाथ मंडल समेत सैकड़ों लोगों ने नदी किनारे नमक बनाकर आजादी का पहला बिगुल फूंका.सन 1930 के उसी दिन स्वराज केंद्र की स्थापना की गयी. टीकापट्टी आंदोलन की गूंज इतनी दूर तक फैली कि 1931 में राजेंद्र बाबू स्वराज आश्रम की गतिविधि देखने आ गये. उन्होंने आश्रम के मुख्य द्वार का उद्घाटन किया . 10 अप्रैल 1934 को गांधीजी टीकापट्टी स्वराज आश्रम पहुंचे. अखिल भारतीय रचनात्मक सर्वोदय समाज के बुजुर्ग महादेव प्रसाद गुप्ता बताते हैं कि टीकापट्टी आजादी की लड़ाई का प्रशिक्षण केंद्र बन गया था. उस वक्त चारों ओर घना जंगल और तीन तरफ से नदियां से घिरा रहने के कारण यह स्वतंत्रता संग्राम की गतिविधियों के लिए सुरक्षित स्थान था. इस आश्रम में बिहार के जाने-माने चर्चित क्रांतिकारी आकर प्रशिक्षण लेने लगे. पूर्व विधानसभा अध्यक्ष लक्ष्मीनारायण सुधांशु , पूर्व मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री, पूर्व मंत्री कमलदेव नारायण सिन्हा सहित स्वतंत्रता सेनानियों ने यहां बसेरा बनाया. वैद्यनाथ चौधरी ने प्रशिक्षक की भूमिका निभायी. टीकापट्टी की धरती पर सन रंगमंच का स्थापना की गयी. रंगमंच के माध्यम से पूर्व मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री सहित अन्य जानी मानी हस्ती नाटक के जरिए आजादी का बिगुल फूंका करते थे . फोटो. 11 पूर्णिया 7,8- गांधी सदन टीकापट्टी

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