पूर्णिया. शहरी हिस्से की सीमा पर अवस्थित चंदन नगर चौक दुर्गा मंदिर में भक्तों को देवी के विंध्यवासिनी स्वरुप का दर्शन होगा. यह दुर्गा मंदिर सर्व धर्म समभाव का प्रतीक है. आज यह मंदिर चंदननगर चौक पर है पर यहां दुर्गा पूजा पहले दरगाह टोला में शुरु हुई थी. तब न तो मंदिर था और न ही आज की तरह सुविधाएं थी. इसके बावजूद लोगों की आस्था में कोई कमी नहीं थी. हर साल लोग पंडाल को सजाते थे और इसमें देवी की प्रतिमा स्थापित कर श्रद्धा के साथ पूजा किया करते थे. गांव जैसा माहौल था और बाहर काम करने वाले दशहरे की छुट्टी में घर आना नहीं भूलते थे.
मंदिर का इतिहास
स्थानीय बुजुर्गों की मानें तो साठ के दशक में पूर्वी पाकिस्तान से बड़ी संख्या में लोग यहां आए थे. सरकार ने उस समय उन्हें यहां रहने और खेती करने के लिए जमीन उपलब्ध करायी थी. उन लोगों को लगा कि देवी की पूजा करनी चाहिए. बस क्या था, आपस में थोड़ा बहूत जो भी जुटा, देवी की पूजा शुरु कर दी. स्थानीय लोग बताते हैं कि गोपाल दास, सूदन दास, गोरंगो दास सुतुल दास परिमल दास आदि श्रद्धालु थे जिन्होंने यहां पूजा की नींव डाली और परम्परा शुरु हो गयी. स्थानीय लोगों के मुताबिक इस आयोजन में हर कोई भागीदारी निभाता था.
कब हुआ स्थल परिवर्तन
करीब ढाई दशक पूर्व यह पूजा चंदननगर चौक पर होने लगी. वहां जगह स्थायी नहीं थी जिससे पूजा में परेशानी हो रही थी. आम लोगों की सहमति के बाद इस चौक पर पूजा शुरु की गयी. बाद में यहां स्थायी मंदिर का निर्माण कराया गया जिसमें बनारस से लायी गई प्रतिमा की प्रतिष्ठापना की गयी. तबसे यह मंदिर लोगों की आस्था का केन्द्र बना हुआ है. गोपाल बिहानी, मन्नू भगत, अरुण जायसवाल, संत जायसवाल, प्रदीप जायसवाल, निवास दा आदि समेत सभी स्थानीय नागरिक व पूजा समिति सदस्य आस्था के साथ भाग लेते हैं.
सांस्कृतिक कार्यक्रम
दशहरा शुरु होते ही यहां सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम शुरु हो जाती है। कभी रात्रि जागरण तो कभी गीत-संगीत व नृत्य के कार्यक्रम दस दिनों तक समां बांध देते हैं. इसमें स्कूली बच्चों को भी शामिल किया जाता है. इस बीच पूरे इलाके में उत्सव की तरह माहौल रहता है.फोटो- 28 पूर्णिया 1- चंदननगर दुर्गा मंदिर
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