पूर्णिया. भट्ठा काली मंदिर श्रद्धालुओं की असीम आस्था का केंद्र है जहां प्रतिदिन सैकड़ों लोग मां काली की पूजा अर्चना करने आते हैं. मां काली, शरण में आने वाले और सच्चे दिल से मन्नत करनेवाले भक्तों को कभी निराश नहीं करतीं. सभी की मन्नतें यहां पूर्ण होती हैं. वर्ष 1970 में चितू दा ने स्वर्गीय अंजन मुखर्जी (बच्चू दा), स्वर्गीय विनोद कुमार, राजेंद्र नाथ मुखर्जी और अचिंत बोस से अपनी जमीन काली मंदिर के निर्माण के लिए देने की इच्छा जाहिर की. इसके बाद 1971 में छोटे से खपरैल के मकान में मां काली की मूर्ति से पूजा प्रारंभ हुई. वर्ष 1974 में एडवोकेट विभाकर सिंह के मार्गदर्शन में मंदिर के निर्माण के लिए कोलकाता के कलाकारों द्वारा एक कार्यक्रम के माध्यम से राशि संगह की गई और फिर मंदिर निर्माण का कार्य प्रारंभ किया गया. तत्पश्चात 1975 में बनारस से लाई गई मां की पत्थर की मूर्ति को स्थापित किया गया. इस मंदिर में प्रति अमावस्या को धूम धाम के साथ पूजा अर्चना की जाती है और बड़ी संख्या में भक्तजन उपवास कर प्रसाद ग्रहण करते हैं. काली पूजा के अवसर पर भी बड़ी धूमधाम के साथ मां काली का पूजन किया जाता है और पूजनोपरांत सभी भक्तजनों को खिचड़ी का प्रसाद प्रदान किया जाता है. हाल के वर्षों में मंदिर के सौंदर्यीकरण के कई काम भक्तजनों द्वारा किए गए हैं और पीने के लिए भी वाटर कुलर भी लगाया गया है. कालीबाड़ी की स्थापना से जुड़े मंदिर कमिटी के पूर्व कोषाध्यक्ष अचिंत बोस बताते हैं कि अभी जिस जगह में मंदिर का निर्माण किया गया है उसे चित्तू दा ने मंदिर निर्माण के लिए दान में दिया है और आम लोगों के सहयोग से मंदिर और मां काली का निर्माण किया गया है. यह मंदिर लोगों के आस्था का प्रतीक है और मां द्वारा भक्तजनों के हर मन्नत को पूरा किया जाता है. फोटो -30 पूर्णिया 14- भट्ठा काली मंदिर में स्थापित मां काली की प्रतिमा
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