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मधुबनी में सजा आस्था का संसार, झूलन उत्सव की मची धूम

झूलन उत्सव की मची धूम

पूर्णिया. शहर के मधुबनी में आस्था का संसार सज गया है. सावन के अवसर पर पांच दिवसीय झूलन महोत्सव शुरू है. इस अवसर पर मंदिर को खूबसूरती से सजाया गया है और चहुंओर लाइट की व्यवस्था की गयी है. राधा-कृष्ण के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ जुट रही है. दरअसल सावन में झूलन का विशेष महत्व माना गया है. कहते हैं, आत्मा से परमात्मा के मिलन को झूलन कहा जाता है जो राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक है. इसमें श्री कृष्ण को परमात्मा और राधा को जीवात्मा माना गया है. मधुबनी के मंदिर में हर साल इस प्रतीक पर्व को उत्सव के रुप में मनाया जाता है. शनिवार से अष्टयाम शुरू है जो सोमवार चलेगा. मंदिर में राधा कृष्ण की प्रतिमा को झूले पर स्थापित किया गया है. झूलन देखने के लिए काफी दूर दूर से लोग महावीर मंदिर आते हैं और झूलन का आनंद लेते हैं. झूलन महोत्सव को सफल बनाने में अध्यक्ष गोपाल प्रसाद गुप्ता, सचिव महादेव केसरी, कोषाध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता, उपाध्यक्ष मृत्युंजय कम्बोली, रतन केसरी, सदस्य संजय केसरी, राजू कंम्बोली, शंकर कम्बोली, विजय केसरी, भोलू, दिवाकर केसरी, सुमित केसरी, विशाल गुप्ता आदि शामिल है.

दो सौ वर्ष का है इतिहास

मधुबनी में झूलन के उत्सव का इतिहास दो सौ साल पुराना है. वर्ष 1834 से मधुबनी में झूलन के उत्सव का आयोजन होते आया है. लेकिन पहले और अब में बहुत अंतर आया है. पहले झूलन महोत्सव पर मेला लगता था. मेला में बंगाल से लेकर नेपाल सहित बिहार के विभिन्न जिलों से दुकानदार आते थे. इतना ही नहीं तरह-तरह के झूले भी लगते थे. मेला में मिट्टी के विभिन्न तरह की मूर्ति और बच्चों के खिलौने की दुकान सजती थी. लेकिन जैसे जैसे मधुबनी क्षेत्र की आबादी बढ़ते गयी, वैसे-वैसे मेला सिकुड़ते चला गया. यहां एक दशक पहले तक मेला लगता था. इसमें काफी भीड़ लगती थी. लेकिन अब सड़क के दोनों तरफ दुकानें सजती हैं, इसके कारण बाहर से दुकानदार दुकान लगा नहीं सकते. हालांकि महोत्सव के आखिरी दो दिनों तक काफी भीड़ लगती है. लोग मंदिर में दर्शन के बाद मेला में खरीदारी कर मेले का आनंद उठाते हैं.

जीवंत होती है व्रज की लोक संस्कृति

सावन में झूलनोत्सव के अवसर पर व्रज की संस्कृति जीवंत हो उठती है. व्रज की तरह मधुबनी के लोग भक्ति के रस में डूब जाते हैं और भगवान श्री कृष्ण और राधा नित नवीन परिधान में नई सज्जा के साथ भक्तों को अजीब आनंद की अनुभूति दिलाते हैं. श्यामा श्याम झूले पे पधारे,धीरे-धीरे सखियां झोंके लगाए, कोई वीणा बजाए कोई ढोल बजाए, कोई दिव्य दम्पत्ति को पान खिलाए, मोर-पपीहा भी मस्ती में झूमे नाचे गाए, सब मिल कर झूलन का उत्सव मनाए. कुछ ऐसे ही पारंपरिक गीतों के साथ आयोजन को व्रज का रुप देने की कोशिश की जाती है.

मंदिर की सजावट आकर्षण का केन्द्र

लगातार एक सप्ताह तक चलने वाले इस झूलनोत्सव में मंदिर की सजावट आकर्षण का केन्द्र होगी. खास कर इसमें सजाया जाने वाला मोर लोगों को आकर्षित करेगा. इसके लिए बाहर से खास कारीगरों को बुलाया गया है. कमेटी के सदस्यों के अलावा स्थानीय लोग खुद भी इसकी व्यवस्था में जुटे हुए हैं.

कहते हैं मंदिर कमिटी के सदस्य

1. महावीर स्थान मधुबनी में वर्ष 1834 से झूलन महोत्सव का आयोजन होते आया है. पांच दिन तक झूलन महोत्सव में पहले भव्य मेला लगता था. इसमें आस-पास के राज्यों के अलावा पड़ोसी देश नेपाल से लोग आते हैं. लेकिन अब जगह की कमी के कारण भव्य मेला नहीं लगता है. लेकिन महोत्सव में अभी भी मेला का नजारा रहता है. फोटो:18 पूर्णिया 3- गोपाल प्रसाद गुप्ता, अध्यक्ष 2: पांच दिवसीय झूलन महोत्सव हर्षोल्लास के साथ मनायी जा रही है. इस बार बंगाल टीम द्वारा अष्टयाम शुरू है. मंदिर व मंदिर के बाहर रंगबिरंगी लाइटिंग से सजाया गया है. झूलन महोत्सव में भले ही भव्य मेला नहीं लगता है लेकिन श्रद्धालुओं की जोश कम नहीं हुआ है. राधा-कृष्ण की दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ काफी रहती है. फोटो: 18 पूर्णिया 4- महावीर केसरी, सचिव 3: मधुबनी में झूलन महोत्सव शुरू है. इस बार महोत्सव में बंगाल की टीम द्वारा हरे राम-हरे कृष्ण की संकीर्तन का आयोजन किया जा रहा है. रंगबिरंगी लाइटों से भव्य रूप दिया गया है. महोत्सव लेकर चपहल-पहल बढ़ गयी है. झूलन महोत्सव में दूर-दूर से रिश्तेदार अब भी आते हैं. यह परंपरा शुरू से चले आ रहा है. झूलन महोत्सव शुरू होने का इंतजार काफी दिनों से रहता है. फोटो: 18 पूर्णिया 5-. राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता, कोषाध्यक्ष

फोटो. 18 पूर्णिया 6.- झूलन महोत्सव के मौके पर हरे राम हरे कृष्ण संकीर्तन करते

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