Raghuvansh prasad singh: गणित शिक्षक से राजनेता बने डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह, किस्सा तब का जब लालू यादव के एक फैसले का किया था कड़ा विरोध
Raghuvansh prasad singh, Raghuvansh prasad singh News: पूर्व केंद्रीय मंत्री व बिहार की राजनीति के शिखर पुरुष समझे जाने वाले डा. रघुवंश प्रसाद सिंह/ रघुवंश बाबू नहीं रहे. दिल्ली एम्स में रविवार को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. बीते तीन चार दिनों से राजद छोड़ने को लेकर वो लगातार चर्चा में थे. रघुवंश बाबू विपक्ष के उन गिने-चुने नेताओ में से थे जिनका सम्मान पार्टी सीमा को तोड़कर हर दल में एक समान है.
Raghuvansh prasad singh, Raghuvansh prasad singh News: पूर्व केंद्रीय मंत्री व बिहार की राजनीति के शिखर पुरुष समझे जाने वाले डा. रघुवंश प्रसाद सिंह/ रघुवंश बाबू नहीं रहे. दिल्ली एम्स में रविवार को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. बीते तीन चार दिनों से राजद छोड़ने को लेकर वो लगातार चर्चा में थे. रघुवंश बाबू विपक्ष के उन गिने-चुने नेताओ में से थे जिनका सम्मान पार्टी सीमा को तोड़कर हर दल में एक समान है.
उनकी पहचान लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सबसे बड़े सवर्ण नेता की रही. हालांकि बीते 6 माह से राजद से उनका मोहभंग था. पार्टी के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह ने 9 सितंबर को राजद से छोड़ने के लिए लालू प्रसाद यादव को एम्स से ही पत्र लिखा था. उन्होंने लिखा था- जननायक कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद 32 वर्षों तक आपके पीठ पीछे खड़ा रहा, लेकिन अब नहीं. वहीं, उन्होंने पार्टी नेता, कार्यकर्ता और आमजनों से क्षमा की मांग भी की थी. उनकी मौत पर लालू प्रसाद यादव ने ट्वीट किया- प्रिय रघुवंश बाबू! ये आपने क्या किया?
प्रिय रघुवंश बाबू! ये आपने क्या किया?
मैनें परसों ही आपसे कहा था आप कहीं नहीं जा रहे है। लेकिन आप इतनी दूर चले गए।
नि:शब्द हूँ। दुःखी हूँ। बहुत याद आएँगे।
— Lalu Prasad Yadav (@laluprasadrjd) September 13, 2020
रघुवंश प्रसाद खुद वैशाली से आते हैं. 6 जून 1946 को यहां के शाहपुर गांव में उनका जन्म हुआ था. उनकी शादी किरन सिंह के साथ हुई है और उनके तीन बच्चे हैं, जिनमें दो बेटे और एक बेटी है. रघुवंश प्रसाद ने गणित में एमएससी और पीएचडी किया है. अपनी युवावस्था में ही उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए आंदोलनों में भाग लेना शुरु कर दिया था. 1973 में उन्हें संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का सचिव नियुक्त किया गया.
ऐसे हुआ सियासी सफर का आगाज
बिहार यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की डिग्री लेने के बाद डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह ने साल 1969 से 1974 के बीच करीब पांच सालों तक सीतामढ़ी के गोयनका कॉलेज में बच्चों को गणित पढ़ाया. रघुवंश प्रसाद 1977 में पहली बार विधायक (जनता दल) बने थे. समस्तीपुर के बेलसंड से उनकी जीत का सिलसिला 1985 तक चलता रहा. इस बीच 1988 में कर्पूरी ठाकुर का अचानक निधन हो गया. सूबे में जगन्नाथ मिश्र की सरकार थी. लालू प्रसाद यादव कर्पूरी के खाली जूतों पर अपना दावा जता रहे थे. रघुवंश प्रसाद सिंह ने इस गाढ़े समय में लालू का साथ दिया.
ऐसे शुरू हुई लालू से करीबी
यहां से लालू और उनके बीच की करीबी शुरू हुई. 1990 में बिहार विधानसभा के लिए चुनाव हुए. रघुवंश प्रसाद सिंह के सामने खड़े थे कांग्रेस के दिग्विजय प्रताप सिंह. रघुवंश प्रसाद सिंह 2,405 के करीबी अंतर से चुनाव हार गए. रघुवंश चुनाव हार गए थे लेकिन सूबे में जनता दल चुनाव जीतने में कामयाब रहा. लालू प्रसाद यादव नाटकीय अंदाज में मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे. लालू को 1988 में रघुवंश प्रसाद सिंह द्वारा दी गई मदद याद थी. लिहाजा उन्हें विधान परिषद भेज दिया गया. 1995 में लालू मंत्रिमंडल में मंत्री बना दिए गए. ऊर्जा और पुनर्वास का महकमा दिया गया.
पहली बार लोक सभा चुनाव
1996 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव के कहने पर रघुवंश प्रसाद सिंह वैशाली सीट से लोकसभा चुनाव लड़ गए. सामने लड़ रहे थे समता पार्टी के वृषन पटेल. रघुवंश चुनाव जीतने में कामयाब रहे. वो पटना से दिल्ली आ गए. केंद्र में जनता दल गठबंधन सत्ता में आई. देवेगौड़ा प्रधानमन्त्री बने. रघुवंश बिहार कोटे से केंद्र में राज्य मंत्री बनाए गए. पशु पालन और डेयरी महकमे का स्वतंत्र प्रभार मिला. 1997 में जब इंद्र कुमार गुजराल नए प्रधानमंत्री बने तो रघुवंश प्रसाद सिंह को खाद्य और उपभोक्ता मंत्रालय में भेज दिया गया.
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राज्य की राजनीति से केंद्र की राजनीति में जलवा
रघुवंश प्रसाद 1996 में केंद्र की राजनीति में आ चुके थे लेकिन उन्हें असली पहचान मिली 1999 से 2004 के बीच. इसकी वजह थी एक चुनावी हार. 1999 के लोकसभा चुनाव में मधेपुरा सीट से शरद यादव ने लालू प्रसाद यादव को हरा दिया. तब रघुवंश प्रसाद को दिल्ली में राष्ट्रीय जनता दल के संसदीय दल का अध्यक्ष बनाया गया. केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी. रघुवंश प्रसाद सिंह विपक्ष की बेंच पर बैठे थे.
1999 से 2004 के रघुवंश प्रसाद संसद के सबसे सक्रिय सदस्यों में से एक थे. उन्होंने एक दिन में कम से कम 4 और अधिकतम 9 मुद्दों पर अपनी पार्टी की राय रखी थी. यह एक किस्म का रिकॉर्ड था. संसद में गणित के इस प्रोफ़ेसर के तार्किक भाषणों ने उन्हें नई पहचान दिलवाई. उस दौर में सत्ता पक्ष के सांसद यह कहते पाए जाते थे कि विपक्ष की नेता भले ही सोनिया गांधी हों, लेकिन सरकार को घेरने में रघुवंश प्रसाद सिंह सबसे आगे रहते हैं.
रघुवंश ने किया लालू का विरोध
2009 के लोकसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनता पार्टी कांग्रेस गठबंधन से अलग हो गई. बिहार में दोनों पार्टी आमने-सामने थीं. रघुवंश प्रसाद सिंह ने पार्टी सुप्रीमों लालू प्रसाद यादव के इस कदम का विरोध किया. लेकिन उस समय लालू ने उनकी नहीं सुनी. इसका घाटा राजद को उठाना पड़ा. बिहार में राजद की सीट 22 से घटकर 4 पर पहुंच गई. 2009 में लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद आरजेडी ने कांग्रेस को बाहर से समर्थन दिया. सूत्र बताते हैं कि मनमोहन सिंह रघुवंश प्रसाद सिंह को फिर से ग्रामीण विकास मंत्रालय देने के लिए अड़े हुए थे. लेकिन आरजेडी ने सरकार में शामिल होने के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया.
एक योजना जिसने कांग्रेस को फिर से सत्ता दिलाई
2004 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल 22 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी और यूपीए में कांग्रेस के बाद सबसे बड़ी पार्टी थी. इस लिहाज से उसके खाते में दो कैबिनेट मंत्रालय आए. पहला रेल मंत्रालय जिसका जिम्मा लालू प्रसाद यादव के पास था. दूसरा ग्रामीण विकास मंत्रालय जिसका जिम्मा रघुवंश प्रसाद सिंह के पास आया. रघुवंश प्रसाद सिंह ने रोजगार गारंटी कानून को बनवाने और पास करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
मंत्रिमंडल के उनके कई सहयोगी चाहते थे कि शुरुआत में इसे महज 50 पिछड़े जिलों में लागू किया जाए. लेकिन रघुवंश प्रसाद सिंह अड़े रहे.आखिरकार एक साल के भीतर रघुवंश प्रसाद इसे आलमीजामा पहनाने में कामयाब रहे. 2 फरवरी, 2006 के रोज देश के 200 पिछड़े जिलों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना लागू की गई. 2008 तक यह भारत के सभी जिलों में लागू की जा चुकी थी.
मोदी लहर में हारे रघुवंश
2014 के लोकसभा चुनाव में रघुवंश प्रसाद सिंह वैशाली में त्रिकोणीय मुकाबले में घिर गए. 2009 में रघुवंश प्रसाद सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले विजय शुक्ला जेल में थे और उनकी पत्नी अनु शुक्ला बतौर निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतर गईं. जेडीयू ने मल्लाह समुदाय से आने वाले विजय सहनी को टिकट थमा दिया. वैशाली संसदीय क्षेत्र में मल्लाह परम्परागत तौर पर आरजेडी के समर्थक माने जाते थे.
विजय सहनी की एंट्री ने मुकाबले को नया मोड़ दे दिया. पूरे मुकाबले में डार्कहॉर्स की तरह उभरे लोक जनशक्ति पार्टी के रामकिशोर सिंह. इस चुनाव में एलजेपी बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही थी. मोदी लहर ने भी उनका भरपूर साथ दिया. रामकिशोर सिंह 99,267 वोट से यह चुनाव जीतने में कामयाब रहे. रघुवंश प्रसाद सिंह को लगातार पांच जीत के बाद हार का सामना करना पड़ा.
Posted By: Utpal kant