भागलपुर. चार साल से बांग्लादेश जेल में बंद राजेंद्र मंगलवार को आजाद हो गया. बांग्लादेश और भारत की सीमा पर राजेंद्र को इसकी मां मित्या देवी ने बेटे को गले से लगाया.
इसके साथ ही ह्यूमन राइट्स अम्ब्रेला फाउंडेशन-एचआरयूएफ का चौथा अंतरराष्ट्रीय मिशन सफल हो गया.
दिलचस्प बात यह हैं कि इस रिहाई का पहला प्रयास शाह आलम ने किया था. इसने गूगल पर ह्यूमन राइट्स अम्ब्रेला फाउंडेशन-एचआरयूएफ का के चेयरमैन विशाल का नंबर खोज निकाला. फिर साक्ष्य के साथ इनसे राजेंद्र की रिहाई का आग्रह किया.
जिसके बाद मिशन राजेंद्र आरंभ हुआ. अंत में एक साल के बाद राजेंद्र अपने परिवार से मिलने में सफल हो गया. बिना वजह जेल में बंद होने से मानसिक रूप से राजेंद्र परेशान है.
अब इसे आसानी से हिंदी भी समझ नहीं आता है. ऐसे में अपनी मां से इसने आंसू की भाषा में ही बात की.
अपने बेटे को गले लगाने के बाद राजेंद्र की मां मित्या देवी ने कहा हमारे लिए विशाल और कुछ लोगों ने वह काम किया जिसकी कल्पना हम नहीं कर सकते है. हमारे लिए खुशी का पल है.
Posted by Ashish Jha