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डॉ राजेंद्र प्रसाद भारतीय राजनीति के एक ऐसे सितारे हैं, जिन्होंने भारतीय संस्कृति पर आधारित एक निःस्पृह, ईमानदार और त्यागी जीवन के आदर्श स्थापित किये, जो सदियों तक लोगों को प्रेरित करते रहेंगे. वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सबसे प्रिय थे.
राजेंद्र बाबू बचपन से ही काफी मेधावी थे. उस वक्त गांव में पढ़ाई के उतने साधन भी नहीं थे, फिर भी 1902 में कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रवेशिका परीक्षा में उन्हें प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था. उस समय इस विवि के क्षेत्राधिकार में बिहार, बंगाल, ओड़िशा, असम व बर्मा (म्यांमार) तक शामिल थे.
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बंगाल विभाजन व स्वदेशी आंदोलन ने राजेंद्र बाबू के युवा मन को बहुत प्रभावित किया. कॉलेज में तृतीय वर्ष में ही उन्होंने जीवन का पहला चुनाव जीता, जब वह कॉलेज यूनियन के सचिव बने. 1906 में उन्होंने बिहार छात्र सम्मेलन का आयोजन किया. इसी संस्था ने बाद में दशकों तक बिहार को राजनीतिक नेतृत्व दिया.
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डॉ राजेंद्र प्रसाद ने गांधी जी की प्रेरणा से 1921 में सदाकत आश्रम में एक राष्ट्रीय विवि के रूप में बिहार विद्यापीठ की स्थापना की और इसे अपनी कर्मभूमि बनायी. जयप्रकाश नारायण ने भी इसी जगह पढ़ाई की. राजेंद्र बाबू स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान खादी आंदोलन के प्रणेता बने.
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1942 में भी बिहार विद्यापीठ को पुनः एक बार ब्रितानी हुकूमत ने अपने कब्जे में ले लिया और राजेंद्र बाबू को गिरफ्तार कर लिया. इससे बिहार विद्यापीठ में शैक्षणिक गतिविधियां बंद ही हो गयीं. इस प्रकार राजेंद्र बाबू का देशप्रेम, स्वाबलंबन, स्वरोजगार, स्वराज व स्व-संस्कृति पर आधारित एक विश्वविद्यालय बनाने का सपना स्वाधीनता संग्राम की भेंट चढ़ गया.
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सितंबर 1946 में राजेंद्र बाबू को संविधान सभा का अध्यक्ष बनाया गया. जिस समय संविधान सभा का गठन हुआ था, उस समय देश विभाजन का दंश झेल रहा था. पांच सौ से अधिक रियासतों की अपनी समस्याएं थी.
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राजेंद्र बाबू देश के पहले राष्ट्रपति बने. राजेंद्र प्रसाद देश के एकलौते राष्ट्रपति हैं जो लगातार दो बार राष्ट्पति चुने गए. वह 12 सालों तक राष्ट्रपति रहे.