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Raksha Bandhan 2021 : बिहार में जीविका की दीदियां कोकुन से बना रहीं इको फ्रेंडली और बायोडिग्रेडेबल राखियां

रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के प्यार को दर्शाता है. ऐसे में हर बहन अपने भाई के लिए बेहद खास राखियों का चयन करती है. अभी लेटेस्ट ट्रेंड में इको फ्रेंडली और बायोडिग्रेडेबल राखियां काफी पसंद की जा रही हैं.

जूही स्मिता, पटना. रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के प्यार को दर्शाता है. ऐसे में हर बहन अपने भाई के लिए बेहद खास राखियों का चयन करती है. अभी लेटेस्ट ट्रेंड में इको फ्रेंडली और बायोडिग्रेडेबल राखियां काफी पसंद की जा रही हैं. रेशम के कीड़े कोकुन में रहते हैं और उनके निकाले जाने के बाद रेशम का धागा तैयार किया जाता है.

कई बार मौसम खराब होने पर कोकुन से कीड़े निकल जाते हैं और वे बेकार हो जाते हैं. ऐसे में इन कोकुन को फेंकने की जगह पूर्णिया की जीविका दीदियों ने एक नायाब तरीका निकाला, जिससे वे कोकुन को बर्बाद नहीं होने देती है और वे इससे इको फ्रेंडली और बायोडिग्रेडेबल राखियां तैयार कर रही हैं.

छह समूह से जुड़ी 60 सदस्य इस कार्य में जुटी हुई हैं और उन्होंने 35 हजार से ज्यादा राखियां तैयार कर ली हैं. उनका लक्ष्य 50 हजार राखियां तैयार करने का है. इन राखियों की कीमत 15 रुपये से लेकर 50 रुपये तक की है.

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इन जगहों पर भेजी गयी हैं राखियां

अभी इन्होंने 35 हजार से ज्यादा राखियां तैयार कर ली हैं जिसे किशनगंज, भागलपुर, समस्तीपुर, गया, बोधगया, नालंदा, दरभंगा, धमदाहा पूर्णिया पूर्व, जलालगढ़, सुपौल और पटना भेजा गया है. पिछले साल कुछ ही दीदियों ने राखियां तैयार की थीं. इस बार ज्यादा संख्या में राखियां तैयार की जा रही हैं.

पूर्णिया के मलबरी सलाहकार अशोक कुमार मेहता बताते हैं कि जीविका से जुड़ी दीदियां राखी आने से 15 दिन पहले से हजारों की संख्या में कोकुन की राखियां तैयार करती हैं. वे कोकुन को पहले काटकर एक आकार देती हैं जिसमें सफेद और पीला रंग शामिल होता है. अगर उन्हें अलग से कुछ कलर तैयार करना होता है तो वे सफेद कोकुन को अन्य हल्के रंग से कलर करती हैं. इसके बाद सजाने के लिए बाजार में मिलने वाले उत्पादों और धागों से राखियां तैयार की जाती हैं.

आर्थिक स्थिति में आया है सुधार

कोकुन की राखियां बना रहीं रीना कुमारी बताती हैं कि उन्होंने जीविका की ओर से मिलने वाली रेशम के कीड़े की खेती की ट्रेनिंग ली थी. इससे उनकी जिंदगी में काफी बदलाव भी आया. जब उन्होंने मेले में लगने वाले स्टॉल को देखा तो कोकुन की राखी बनाने का आइडिया आया जिसे उन्होंने जीविका के अशोक मेहता से शेयर किया जिसके बाद राखी बनाने की ट्रेनिंग मिली.

पिछले साल उन्होंने खुद से कोकुन की राखियां तैयार की थीं जिससे उन्होंने 40 हजार रुपये कमाये थे. इस साल वे समूह में अन्य महिलाओं के साथ मिल कर राखियां बना रही हैं. कोकुन की एक राखी बनाने में 20-25 मिनट का समय लगता है और एक दिन में वे 30-40 राखियां तैयार करती हैं. इन राखियों की वजह से इनकी आर्थिक स्थिति में काफी बदलाव आया है. सामान उपलब्ध कराने में जीविका के सदस्यों की अहम भूमिका होती है.

Posted by Ashish Jha

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