रमजान 2023 (ramadan 2023) का महीना चल रहा है. बिहार के रोजेदार भी इस भीषण लू के दौर में रोजे रख रहे हैं. रमजान के आखिरी दस दिनों में एक ऐसी रात भी आती है जो हजार रातों से बेहतर है. उस रात को शबे कद्र (shab e qadr ki dua) कहते हैं. यह बातें हाफिज आशिक ईलाही ने प्रभात खबर प्रतिनिधि से कही.
हाफिज आशिक ईलाही ने कहा कि शबे कद्र बहुत ही महत्वपूर्ण रात है. इस रात की इबादत हजार महीनों यानी 83 वर्ष 4 महीने की इबादत के बराबर सवाब मिलता है. इस रात की फजीलत कुरान हदीस में कसरत से मौजूद है. इस रात के नाम से कुरान शरीफ के तीस वें पारे में एक मुकम्मल सूरत अल्लाह ताला ने उतारा है.
हाफिज आशिक ईलाही ने बताया कि उस सूरत का नाम लैलातुल कद्र है. उस सूरत का तर्जुमा यह है हमने इस कुरान को लैलातुल कद्र (laylatul qadr dua) में उतारा यानी हमने इस पवित्र रात में कुरान ए करीम को लोहे महफूज से आसमां ने दुनिया पर उतारा फिर 23 वर्ष की थोड़े-थोड़े अरसे में जनाबे मोहम्मद उर रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम पर उतारा गया. आप को क्या मालूम लैलातुल कद्र क्या है. लैलातुल कद्र हजार रातों से बेहतर है. इस रात में अल्लाह ताला के हुक्म से बेशुमार फरिश्ते और जिब्रील अलैहिस्सलाम आसमान से उतरते हैं.
अल्लाह की रहमतें और बरकतें लेकर फरिश्ते और जिब्रील नीचे उतरते हैं. यह रात बहुत सलामती वाली रात है. इस रात में अल्लाह की इबादत में गुजारना चाहिए. यह रात पूरी की पूरी सलामती वाली रात है. फर्ज तक यह रात बहुत ही पवित्र तथा बरकत वाली रात है. इसलिए इस रात में अल्लाह की इबादत की जाय. ज्यादा से ज्यादा अल्लाह से दुआ की जाय.
वहीं मौलाना जाबिर हुसैन मिस्बाही कहते हैं कि रमजान का महीना न केवल पाक महीना है बल्कि इस माह में इतनी ऊर्जा मिलती है कि रूह तक को ताकत मिलती है. यह केवल इबादत करने का महीना ही नहीं, बल्कि बुरी आदतों पर कंट्रोल करने का भी पाक महीना है. उक्त बातें बरौली जामा मस्जिद के इमाम मौलाना जाबिर हुसैन मिस्बाही ने मस्जिद में उपस्थित अकीदतमंद रोजेदारों से कहीं.
मौलाना जाबिर हुसैन मिस्बाही ने कहा कि अमूमन सभी लोग रोजा रखते हैं, लेकिन बहुत कम ही लोगों को रोजा रखने के नियमों की जानकारी होती है. रोजा रखने का मतलब केवल भूखे-प्यासे रह कर शरीर को कष्ट देना नहीं है बल्कि अपने नफस को मुकम्मल तौर पर काबू कर लेने व खुदा की इबादत में डूब जाने का नाम रोजा है.
मौलाना बताते हैं कि रोजा रखने वाला खुदा को अपने बहुत करीब पाता है तथा खुदा उसे रुहानी ताकत अता फरमाता है और तब वह इंसान हर तरह की बुराइयों से लड़ने में अपने को सक्षम पाता है. उन्होंने कहा कि रमजान सब्र का महीना है और सब्र का बदला जन्नत है. इस बरकत महीने में अल्लाह पाक जन्नत के दरवाजे खोल देता है और जहन्नुम के दरवाजे को एक माह के लिए बंद कर देता है.
इस महीने में अल्लाह एक का सत्तर गुना अपने बंदे को देते हैं. कानों से सुनी बात न सुनना, आंखों से बुरी चीज न देखना, मुंह से झूठ व किसी की गिबत न करना तथा अपने पैरों को गलत राह में नहीं डालने का नाम ही रोजा है. साथ ही, रमजान में अपने हाथों से कोई बुरा काम न करना ही हाथों का रोजा कहलाता है. हर मुसलमान पूरी पाकीजगी से रोजा रखे तथा अल्लाह तआला के फरमाये रास्तों पर चलने का नाम ही रमजान है.