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रामधारी सिंह दिनकर जयंती: संघर्ष भरा बचपन और राष्ट्रकवि के बारे में जानिए दिलचस्प बातें..

Ramdhari Singh Dinkar Birthday: रामधारी सिंह दिनकर की आज 116वीं जयंती है. इनका जन्म 23 सितंबर 1908 को हुआ था. राष्ट्रकवि के बारे में कई दिलचस्प किस्से है. इनका बचपन संघर्षों से भरा था. यह स्कूल जाने के लिए पैदल चलकर गंगा घाट तक जाते थे. इसके बाद फिर गंगा के पार उतरकर पैदल चलते है.

Ramdhari Singh Dinkar Birthday: रामधारी सिंह दिनकर की आज 116वीं जयंती है. इनका जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था. राष्ट्रकवि के बारे में कई दिलचस्प बातें है. इनका बचपन संघर्षों से भरपूर था. यह स्कूल जाने के लिए पैदल चलकर गंगा घाट तक का सफर तय किया करते थे. इसके बाद फिर गंगा के पार उतरकर यह पैदल चलते थे. ‘राष्ट्रकवि’ रामधारी सिंह दिनकर का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था. इनका बचपन संघर्षमय रहा था. स्कूल जाने के लिए इन्हें पैदल चल गंगा घाट जाना होता था, फिर गंगा के पार उतर इन्हें पैदल चलना पड़ता था. ओज, विद्रोह, आक्रोश के साथ ही कोमल शृंगारिक भावनाओं के कवि रामधारी सिंह दिनकर का पहला काव्य संग्रह 1928 में प्रकाशित ‘बारदोली-विजय’ संदेश था.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कवि ने हिन्दी को दिलाई थी पहचान

रामधारी सिंह दिनकर ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी को पहचान दिलाई थी. बीसवीं सदी में जिन लेखकों ने हिंदी भाषा और साहित्य को राष्ट्रीयस्तर पर ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलायी, उनमें रामधारी सिंह दिनकर का नाम सर्वोपरि है. वह एक ऐसे लेखक थे, जिनमें राष्ट्रीय चेतना, सामाजिक चेतना के साथ साथ सांस्कृतिक चेतना भी गहरे रूप से मौजूद थी. वह उद्घोष और उद्बोधन के कवि थे, तो प्रेम और सौंदर्य के भी कवि थे. वह सत्ता के करीब थे, तो व्यवस्था के एक आलोचक भी थे. दिनकर पर राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से हाल ही में एक पुस्तक आयी है. उनके गृह जिले बेगूसराय में जन्में वरिष्ठ पत्रकार और प्रसार भारती के वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी सुधांशु रंजन ने इस किताब को लिखा है. पत्रकार अरविंद कुमार ने इस किताब के बहाने दिनकर को उनकी 116वीं जयंती पर याद किया है

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दिनकर ने लिखी ‘विपथगा’ जैसी क्रांतिकारी कविता

1935 में दिनकर का कविता संग्रह रेणुका प्रकाशित हुआ था. इसमें उसकी भूमिका माखनलाल चतुर्वेदी ने लिखी थी. हालांकि, उसमें देशभक्ति की कविताओं के कारण सरकार ने उनकी दरियाफ्त की और चेतावनी देकर छोड़ दिया था. इससे पहले 26 दिसम्बर 1933 को वह तांडव कविता लिख चुके थे. इसमें उग्र राष्ट्रीयता है और इसका पाठ उन्होंने वैद्यनाथ मंदिर (देवघर) में सांध्य श्रृंगार के समय किया था. 1931 में वह कसमें देवाय जैसी कविता लिख चुके थे, जिसमें लेखक के शब्दों में ‘शोषण और अन्याय के प्रति महाविद्रोह है.’ 1934 में बोधिसत्व नामक कविता लिखी, जिसमें सामाजिक भेदभाव, द्वेष और असहिष्णुता के विरुद्ध चीत्कार है, जहां अछूत गरीबों को मंदिरों में प्रवेश नहीं मिलता. दिनकर ने ‘विपथगा’ जैसी क्रांतिकारी कविता लिखी, जिसके बारे में बेनीपुरी की राय थी कि वह दुनिया की किसी श्रेष्ठ क्रांतिकारी कविता के समकक्ष है. ‘श्वानों को मिलते दुग्ध वस्त्र भूखे बच्चे अकुलाते हैं, मां की हड्डी से चिपक ठिठुर जाड़ों की रात बितातें हैं’.

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प्रसिद्ध आलोचक डॉक्टर कुमार विमल के अनुसार, ”दिनकर की तुलना ”अग्निवीणा के कवि नजरुल इस्लाम के साथ की जा सकती है. लेकिन, दिनकर सौंदर्य प्रेम और काम के भी कवि थे. ऊर्वशी इसका प्रमाण है. लेकिन, उनके जीवन काल में ही ऊर्वशी को लेकर विवाद हुआ. वामपंथी आलोचकों ने उसके विरोध में तीखा लिखा. भगवत शरण उपाध्याय जैसे प्रसिद्ध इतिहासकार और आलोचक ने ‘कल्पना’ जैसी प्रसिद्ध पत्रिका में इस किताब के खिलाफ 40 पेज का लेख लिखा. कल्पना का ऊर्वशी विवाद पर अंक ही आया था. अब वह किताब के रूप में आ गया है. सुधांशु का कहना है कि दिनकर को समग्रता में नहीं देखा गया है, इसलिए उनका सम्यक मूल्यांकन साहित्य में नहीं किया गया. पाठकों में वे लोकप्रिय बहुत हुए पर वामपंथी आलोचना ने उनके साथ न्याय नहीं किया, क्योंकि उनकी दृष्टि में दिनकर का राष्ट्रवाद उग्र रूप लिये हुए था.

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1933 में जब दिनकर 26 वर्ष के थे. इस दौरान उन्होंने ‘हिमालय के प्रति’ कविता, जो बाद में उनकी बहुचर्चित कविता बन गयी और पाठ्यक्रमों में भी लगी. भागलपुर के कवि सम्मेलन में इन्होंने यह कविता सुनायी, तो श्रोताओं में काशी प्रसाद जायसवाल भी झूम उठे.

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