पटना. दशरथ नंदन रामचंद्र का मिथिला ससुराल है. बिहार के सीतामढ़ी जिले में मां जानकी का जन्म हुआ था. बिहार में इस जिले के आसपास वाले क्षेत्रों को आज भी मिथिला नगर कहा जाता है. आज भी यहां के लोग रामचंद्र से बहुत प्रेम करते हैं. रामनवमी की धूम उनके ससुराल में भी दिख रही है. अयोध्या की तरह यहां भी घर-घर राम की चर्चा है, लेकिन अंदाज कुछ जुदा है. मिथिला में जहां रामचंद्र के जन्म पर महिलाएं सोहर गा रही हैं, वहीं ससुराल होने के नाते डहकन (गाली गीत) भी गाने की परंपरा ही है. रामचंद्र के साथ ऐसा हास्य-विनोद कहीं और न देखने को मिलता है और न ही कहीं और संभव है.
कौशल्या पुत्र रामचंद्र के ससुराल अर्थात मिथिला के मंदिरों में महिलाओं की अपार भीड़ देखी जा रही है. मंदिरों में मंगलगान किया जा रहा है. सखी सहेलिया कहीं सोहर गाकर मां कौशल्य और राजा दशरथ को बधाई दे रही हैं, तो कहीं डहकन गायकर राम से सवाल पूछ रही हैं कि लोग आपको गाली क्यों दे रहे हैं, चार भाई में आप अकेले श्यामल कैसे हैं…कहीं पर ‘मंगल मय दिन आजु हे पाहुन छथि आयल’ का गान गाकर महिलाएं उनका स्वागत कर रही हैं] तो कहीं पर ‘खीर खाय बालक जनमौलनि अवध के नारी छिनारी हे’ गाकर रघुकुल को गाली दिया जा रहा है. इस प्रकार मिथिला की औरतें डहकन गाकर मनोरंजन कर रही हैं. एक तरह से मानों तो रामचंद्र का उनके ससुराल में जन्मदिवस पर भव्य स्वागत हो रहा है.
राम को लेकर मिथिला के समाज में द्वंद्व दिखायी देता है. सीता की धरती का राम के साथ विचित्र रिश्ता रहा है. वहां हर लड़की के लिए यह कामना की जाती है कि उसका वर राम जैसा प्रतापी हो, लेकिन कोई यह नहीं चाहता कि उनकी बेटी का भाग्य सीता जैसा हो. मैथिल के लिए राम घर-परिवार के सदस्य की तरह हैं. आज के दिन मैथिल समाज अपने गीतों और कथाओं में राम को ख़ूब याद करता है. इस परंपरा का निर्वाह आज भी हो रहा है. मिथिला में दामाद के सम्मान की परंपरा रही है. लेकिन यहां हर मौके पर राम के लिए शिकायत का भाव अनायास आ जाता है. यानी गौरव अपनी जगह, शिकायत अपनी जगह. निंदा अपनी जगह. लेकिन दामाद तो दामाद है.