JP jayanti: आंदोलन के नायक जयप्रकाश के लिए राष्टकवि दिनकर ने लिखी थी ये पंक्तियां, पढ़ें कविता
Jayaprakash Narayan Birthday: जयप्रकाश नारायण की एक आवाज जिसकी हुंकार पर नौजवानों का जत्था सड़कों पर निकल पड़ता था. जेपी सम्पूर्ण क्रांति की वह चिंगारी थे जो देश के कोने-कोने में आग बनकर भड़क उठी थी.
JP jayanti: आंदोलन एक ऐसा शब्द, जिससे सरकारें घबराती भी रहीं और कुचलने से कतराई भी नहीं. बिहार को अंदोलन की भूमि के नाम से जाना जाता है. वजह एक मात्र जेपी है. आजदी से पूर्व और आजादी के बाद भी जेपी ने कई आंदोलनों को नेतृत्व किया था. जेपी कभी देश को आजाद कराने के लिए जेल गए, तो कभी उन्हें सत्ता के खिलाफ जाकर आंदोलन चलाने के लिए जेल जाना पड़ा. जेपी ने जब सत्ता के खिलाफ अंदोलन की शुरूआत की थी, तो राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने जेपी के लिए एक कविता लिखी थी, जिसे लोग आज भी दिलचस्पी से पढ़ते हैं.
1946 में जेपी के जेल से रिहा होने पर दिनकर ने लिखी ये कविता
1946 में जयप्रकाश नारायण ने जब तत्कालीन सरकार के खिलाफ आंदोलन की बिगुल बजाई थी. तब जनता का आह्वान करने के लिए रामधारी सिंह दिनकर ने इस कविता को दोहराया था.
‘सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है‘
जनता? हां,मिट्टी की अबोध मूरतें वही
जाड़े-पाले की कसक सदा सहनेवाली
जब अंग-अंग में लगे सांप हो चुस रहे
तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहनेवाली.
‘जनता हां, लंबी-बड़ी जीभ की वही कसम
जनता, सचमुच ही, बड़ी वेदना सहती है
सो ठीक, मगर, आखिर इस पर जनमत क्या है
है प्रश्न गूढ़ जनता इस पर क्या कहती है’
‘मानो, जनता ही फूल जिसे अहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में
अथवा कोई दूधमुंही जिसे बहलाने के
जन्तर-मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में’
‘लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती है
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’.
‘हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह, समय में ताव कहां?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है’
‘अब्दों, शताब्दियों, सहस्त्राब्द का अंधकार
बीता गवाक्ष अंबर के दहके जाते हैं
यह और नहीं कोई, जनता के स्वप्न अजय
चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते जाते हैं’
‘सब से विराट जनतंत्र जगत का आ पहुंचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तय करो
अभिषेक आज राजा का नहीं प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो’
‘आरती लिए तू किसे ढूंढ़ता है मूरख,
मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में’
‘फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं,
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’
साभार- कविता कोश
उन दिनों ये पंक्तियां भी थी मशहूर
‘जयप्रकाश का बिगुल बजा दो जाग उठी तरुणाई है, और तिलक लगाने तुम्हें जवानों क्रांति द्वार पर आई है’. जब जेपी ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था. तब उन दिनों यह नारा बच्चे, नौजवान और बूढ़े सभी के जुबां पर थे. लालू यादव हों या अटल बिहारी वाजपेयी, नीतीश कुमार या फिर रविशंकर प्रसाद ये सभी नेता जेपी के आंदोलन की ही उपज रहे हैं. यह जेपी की ही आंदोलन था जिसमें जिसमें कई राजनीतिक धाराओं के लोग एक साथ इंदिरा सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरे थे.