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बिहार में नहीं रुकी निजी अस्पतालों में ‘वसूली’, पटना में सरकारी रेट और हकीकत में जमीन-आसमान का फर्क

जिला प्रशासन द्वारा तय किये गये निजी अस्पतालों के रेट और हकीकत में लिये जा रहे रुपये में जमीन आसमान का अंतर है. यह हम नहीं अस्पतालों के बिल कह रहे हैं. प्रभात खबर ने बुधवार को पटना के तीन अस्पतालों में भर्ती कोरोना मरीज के परिजनों से बात की.

पटना . जिला प्रशासन द्वारा तय किये गये निजी अस्पतालों के रेट और हकीकत में लिये जा रहे रुपये में जमीन आसमान का अंतर है. यह हम नहीं अस्पतालों के बिल कह रहे हैं. प्रभात खबर ने बुधवार को पटना के तीन अस्पतालों में भर्ती कोरोना मरीज के परिजनों से बात की.

एक की तो चार मई को ही हो गयी मौत, संवाददाता से अपनी पूरी बात बतायी और इलाज में खर्च हुए रुपये का बिल और लापरवाही का आरोप लगाया. बाकी दो अन्य मरीजों के परिजनों ने नाम न छापने की बात कह अपनी बात बतायी.

करीब चार लाख रुपये का हो गया खर्च, फिर भी नहीं बची मां

भागवत नगर स्थित पुष्पांजलि अस्पताल के बारे में अभय कुमार ने बताया कि मेरी मां इसी अस्पताल में भर्ती थी. लेकिन उसकी मौत कुछ दिन पहले ही हो गयी. पैसे की बात तो छोड़िए, लापरवाही सबसे अधिक दिखी. उन्होंने बताया कि मां को कोरोना था. अस्पताल में भर्ती कराया, तो शुरू में काउंटर पर 50 हजार रुपये लिये गये. 25 हजार रुपये मेडिसिन का खर्च मांगा गया. लेकिन मैंने उस समय 20 हजार रुपया दिया.

ठीक चार दिन बाद मेरी मां की मौत हो गयी. इन चार दिनों में करीब चार लाख रुपये लग गये. लेकिन वह नहीं बच पायीं. लैब बिल, इंडोर बिल, दवा का बिल ये सारे बिल सरकारी रेट से अलग. पीपीइ किट के नाम पर हर दिन रुपये लिये जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि अस्पताल वालों की लापरवाही के कारण मेरी मां की मौत हुई है. उन्होंने 1 लाख 65 हजार 800 रुपये सिर्फ दवा का बिल दिखाया.

डीएम से लेकर स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव तक से की शिकायत

अभय ने बताया लापरवाही की शिकायत मैंने डीएम से लेकर स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव तक की है. लेकिन इसके बावजूद अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. अब वे कोर्ट में इसकी शिकायत करेंगे. उन्होंने बताया कि मैंने जब शुरू में अस्पताल के स्टाफ से डॉक्टर के डेली चेकअप का पेपर मांगा, तो वह कहने लगे कि मिल जायेगा. लेकिन उन्होंने इससे जुड़ा पेपर उन्हें नहीं दिया.

अस्पताल वाले बस बिल में लिख कर देते हैं कि ये डॉक्टर मरीज को देखने आये हैं. मरीज को देखने आये या नहीं आये मुझे कैसे पता चलेगा. ऐसे डॉक्टरों के नाम, जिनका नाम आज तक मैंने सुना ही नहीं.

मरीज ठीक है लेकिन दस लाख लग गये

कंकड़बाग स्थित राजेंद्र नगर के पास एक निजी अस्पताल के बाहर कोरोना मरीज के परिजन एक कार में बैठे थे. काफी देर बाद कार से एक महिला निकली, जिनसे संवाददाता ने बात करनी चाही, तो उनके साथ एक युवक ने बताया सर आप को क्या जानना है, मैं बता देता हूं. युवक ने बताया कि 30 अप्रैल को यहां अपने मरीज को भर्ती कराया.

99 प्रतिशत लंग्स इन्फेक्टेड था. लेकिन अब ठीक है. दस लाख रुपये लग चुके हैं. उन्होंने बताया कि मेरा मरीज यहां भर्ती है, इसलिए मेरा नाम मत छापियेगा. उन्होंने बताया कि अस्पताल वाले मनमाना पैसा वसूल कर ही रहे हैं. हर एक चीज के लिए पैसा देना पड़ता है.

लापरवाही बहुत है भइया

90 फीट स्थित एक निजी अस्पताल के बाहर कोरोना मरीज के दो अटेंडेंट खड़े थे. काफी रिक्वेस्ट करने के बाद वह बात करने को आये. उन्होंने बताया कि बस इतना जानिए कि बहुत लापरवाही हो रही है.

मरीज कैसा है यह भी जानकारी लेना मुश्किल हो जाता है. बिल तो इतना अधिक कि पूछिए मत. यह सब बताने में भी परिजन डर रहे थे. एक ने कहा कि किसी और से पूछ लीजिए भैया. अस्पताल वाला कोई सुन लेगा, तो हमको बहुत दिक्कत होगी.

Posted by Ashish Jha

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