निबंधन कार्यालय के रिकॉर्ड रूम में राज्यभर के निबंध जमीनों का रिकॉर्ड है. इनमें पटना सहित उन शहरी क्षेत्र की भूमि भी शामिल है, जिनकी बाजार कीमतें आसमान छू रही हैं. बावजूद इन अभिलेखों की देखरेख और व्यवस्था की जिम्मेदारी संविदा- दैनिक कर्मियों के भरोसे है. यही कारण है कि गड़बड़ी का खुलासा होने पर भी इन कर्मियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई संभव नहीं हो पाती.
गड़बड़ी काफी पहले हुई,खुलासा बाद में
अभिलेखागारों में होने वाली गड़बड़ी का खुलासा तत्काल नहीं हो पाता. इसका पता तब चलता है, जब उस अभिलेख (रिकॉर्ड) की कोई दोबारा खोज करने पहुंचता है. जब तक गड़बड़ी पकड़ी जाती है, तब तक कर्मी या तो बदले जा चुके होते हैं या उनकी पहचान करना संभव नहीं हो पता. ऐसे में पहली बार अभिलेख निकलने वाले कर्मी को ही आरोपी मानते हुए कार्रवाई चलायी जाती है.
भू माफियाओं के सांठ-गांठ के मिले प्रमाण
विभाग की अंदरूनी छानबीन में पता लगा है कि अधिकतर रिकॉर्ड रूम में कार्यरत कर्मियों की भू-माफियाओं के सांठ-गांठ है. इसके चलते ही दस्तावेजों के गायब होने या उसके पन्ने बदले जाने का मामला आता है. सूत्रों के मुताबिक पटना में रिकॉर्ड रूम की पुराने कलेक्ट्रेट भवन से छज्जूबाग सहित दूसरे रिकॉर्ड रूम में शिफ्टिंग के दौरान दस्तावेजों से छेड़छाड़ की घटनाएं सबसे अधिक हुईं.
एक दस्तावेज ढूंढने की कीमत ढाई से 3000
पटना स्थित अभिलेखागार से लेकर राज्य के अभिलेखागारों में सरकारी प्रक्रिया के माध्यम से दस्तावेज खोलने में भले ही महीनों लग जाएं, कार्यालय में ही सक्रिय दलालों के माध्यम से ढ़ाई – तीन हजार रुपये देकर इसे मात्र एक हफ्ते में खोजा जा सकता है.
ऐसे समझिए अभिलेख का महत्व
किसी भूमि का मालिकाना हक दिखाने के लिए रजिस्टर्ड डीड सबसे बड़ा माध्यम होता है. किसी कारण से रजिस्टर्ड डीड के गुम होने चोरी होने या नष्ट हो जाने पर उसकी सत्यापित कॉपी सबसे बड़ा सहारा होती है. खासकर विवाद की स्थिति में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है.