आज के ही दिन हमें हमारा संविधान मिला था. वह संविधान जो पिछले 71 सालों से हमारे देश में समानता और न्याय की भावनाओं को जिंदा रखे हुए है. यह हमारे लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करता रहा है. हम जब इस संविधान के निर्माण की बात करते हैं तो डॉ आंबेडकर और डॉ राजेंद्र प्रसाद जैसे गिने-चुने नाम ही जुबां पर आते हैं. मगर इस संविधान को तैयार करने में 299 लोगों की एक बड़ी टीम थी, जिसे अलग-अलग राज्यों से चुन कर भेजा गया था.
तत्कालीन बिहार, जिसमें झारखंड भी शामिल था, से इस टीम में 36 लोग थे. इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं, जिनका नाम भी हमें आज नहीं मालूम. जबकि संविधान तैयार करते वक्त एक-एक मसले पर इन लोगों ने जोरदार बहस की थी. खास कर दलितों और आदिवासियों के सवाल पर बिहार के इन संविधान निर्माताओं की बड़ी भूमिका रही है. आइए, डॉ सुबोध कुमार से जानते हैं इन विभूतियों को…
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने संविधान सभा निर्मित करने की मांग 1934 में रखी और 1933 के भारतीय संविधान सुधार को स्वीकार करने से इनकार कर दिया क्योंकि वह भारत के लोगों की इच्छा को व्यक्त नहीं करता था.
बाद में सी. राजगोपालाचारी ने 1940 में वयस्क मताधिकार पर आधारित संविधान सभा निर्मित करने की मांग की. उसके बाद 1946 में कैबिनेट मिशन की योजना के अनुरूप चुनाव कराये गये. संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव एकल स्थानांतरण मत व्यवस्था के द्वारा क्षेत्रीय सभाओं ने किया. बिहार से 36 सदस्यों का चुनाव संविधान सभा के लिए हुआ, जिन्होंने 22 समितियों में वाद-विवाद में भागीदारी की.
कृष्णा सिन्हा, दीप नारायण सिंह, बिनोदानंद झा और कृष्ण बल्लभ सहाय बिहार के मुख्यमंत्री बने, जबकि अनुग्रह नारायण सिन्हा बिहार के प्रथम उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री बने. डॉ राजेंद्र प्रसाद संवैधानिक सभा के राष्ट्रपति बने और सच्चिदानंद सिन्हा अस्थायी अध्यक्ष.
डॉ राजेंद्र प्रसाद संवैधानिक सभा की कार्यवाहियों में भाग नहीं लेते थे क्योंकि वे उसके अध्यक्ष थे. लेकिन, कांग्रेस और सरकार में अपनी बड़ी प्रतिष्ठा और सत्ता के कारण वे संविधान सभा के विषय नियंत्रित करते थे.
जब हम संविधान के कार्यों की सफलता की समीक्षा करते हैं, तो यह पाते हैं कि भारत के साथ बिहार भी गतिमान है. लेकिन, संवैधानिक सभा के दो लक्ष्य -लोकतंत्र और सामाजिक क्रांति के लक्ष्यों को प्राप्त करने में कुछ बाधाएं हुईं, जिसके कारण सामाजिक क्रांति प्राप्त करने में कठिनाई हुई है. इसके फलस्वरूप बिहार आज भी पिछड़ा हुआ है.
इसके दो मूल कारण हैं – एक शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त नहीं होना तथा दूसरी पंचायत राज जैसी संस्थाओं का देर से लागू होना और उनकी अकर्मण्यता. बिहार की जनसंख्या की अधिकतर जनता महत्वपूर्ण फैसलों में भागीदारी नहीं करती. मानव विकास सूचकांक में अन्य राज्यों की तुलना में बिहार पीछे है.
इसके अतिरिक्त आंदोलन के रूप में सामाजिक और राजनीतिक निवेश की देरी से बिहार लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की सफलता से वंचित रहा. इन निवेशों ने सामाजिक-आर्थिक और और राजनीतिक वर्चस्वता को विखंडित किया है, जिसके परिणामस्वरूप हम उत्तेजनापूर्ण जातिवादी संघर्ष देखते हैं. लेकिन, धीरे-धीरे लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया ने सामाजिक संतुलन का पथ निर्मित किया है. यह आर्थिक विकास के लिए उर्वरक का काम करेगा.
1 डॉ राजेंद्र प्रसाद
देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के भी अध्यक्ष थे. सीवान जिले के जीरादेई गांव में तीन दिसंबर 1884 में जन्मे राजेंद्र बाबू एक मेधावी छात्र, एक सफल वकील थे. चंपारण सत्याग्रह के दौरान वे स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े फिर गांधी के सान्निध्य से कभी अलग नहीं हो पाये. वे बारह साल तक देश के राष्ट्रपति रहे. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित कई किताबें लिखी.
2 डॉ सच्चिदानंद सिन्हा
बिहार को स्वतंत्र राज्य बनाने में इनकी सबसे बड़ी भूमिका रही है. ये संविधान सभा के पहले सदस्य थे, मगर तबीयत ठीक नहीं रहने के कारण वे इस भूमिका को निभा नहीं सके. लिहाजा डॉ. राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का अध्यक्ष बनाया गया. बक्सर मुरार गांव में जन्मे सच्चिदानंद सिंहा ने बिहार को स्वतंत्र राज्य बनवाने के अतिरिक्त पत्रकारिता की बेहतरीन परंपरा को भी जन्म दिया.
3 बनारसी प्रसाद झुनझुनवाला
भागलपुर वासी बनारसी प्रसाद झुनझुनवाला का जन्म 12 अक्तूबर 1888 को हुआ था. 1946 में जब वे संविधान सभा के सदस्य चुने गये उस साल वे सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली के सदस्य भी थे. इसके बाद वे 1950 से 52 तक अंतरिम संसद के सदस्य थे. पहली औऱ दूसरी लोकसभा में उन्होंने भागलपुर लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. 1966 में उनकी मृत्यु हो गयी.
4 कमलेश्वरी प्रसाद यादव
चतरा (मधेपुरा) के बाबू कमलेश्वरी प्रसाद यादव संविधान सभा के लिए खगडिया क्षेत्र से निर्वाचित हुए थे. 1952 में वे उदा-किशनगंज क्षेत्र से विधायक बने, 1972 में वे दुबारा निर्वाचित हुए. 1902 के आसपास जन्मे बाबू कमलेश्वरी प्रसाद यादव की मृत्यु 15 नवम्बर, 1989 को हुई.
5 जगजीवन राम
बाबूजी के नाम से जाने-जाने वाले जगजीवन राम प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता रहे हैं. वे आजाद भारत की पहली सरकार में देश के सबसे युवा मंत्री के रूप में चयनित हुए, बाद में देश के उप प्रधानमंत्री भी बने. पांच अप्रैल 1908 को इनका जन्म तत्कालीन भोजपुर जिले के चंदवा गांव में हुआ था. वे ताउम्र दलितों को अधिकार दिलाने के लिए संघर्षरत रहे.
6 कामेश्वर सिंह
28 नवंबर 1907 को दरभंगा में जन्मे कामेश्वर सिंह को दरभंगा राज घराने का आखिरी उत्तराधिकारी माना जाता है. वे एक सक्रिय राजनेता, एक उद्योगपति और समाजसेवी थे. उन्होंने दो बार गोलमेज सम्मेलन में भागीदारी की. बीएचयू समेत कई प्रमुख शिक्षण संस्थानों की स्थापना में और उनकी बेहतरी के लिए मदद करने में उनकी भूमिका रही है.
7 जयपाल सिंह मुंडा
तीन जनवरी, 1903 को रांची में जन्मे जयपाल सिंह मुंडा एक मशहूर हॉकी खिलाड़ी, एक बेहतरीन लेखक और आदिवासियों के लिए संघर्ष करने वाले एक जानेमाने राजनेता था. इनका जन्म पाहन टोली गांव में हुआ था, जो आज खूंटी जिले में पड़ता है. संविधान सभा में आदिवासियों के हक के लिए ये काफी मुखर रहे. इन्होंने 1938 में आदिवासी महासभा की स्थापना की थी.
8 श्यामनंदन सहाय
एक जनवरी, 1900 को जन्मे श्यामनंदन सहाय को बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर विवि, मुजफ्फरपुर के पहले कुलपति के रूप में याद किया जाता है. वे 1930-37 तक बिहार लेजिस्लेटिव कैंसिल के मेंबर रहे. संविधान सभा के सदस्य रहने के अतिरिक्त इन्होंने पहली औऱ दूसरी लोक सभा में मुजफ्फरपुर का प्रतिनिधित्व किया गया. 1957 में इन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.
9 रामनारायण सिंह
हजारीबाग के स्वतंत्रता सेनानी रामनारायण सिंह ने भी संविधान सभा में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. खास कर पंचायती राज के मसले पर उन्होंने प्रमुखता से अपनी बात रखी थी. बाद में वे पहली लोकसभा के सदस्य भी बने. 1920-21 में असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्हें जेल जाना पड़ा. भारत छोड़ो आंदोलन तक वे लगातार सक्रिय रहे. उन्हें छोटानागपुर केसरी भी कहा जाता था.
10 सत्यनारायण सिन्हा
सत्य नारायण सिन्हा का जन्म 9 जुलाई, 1900 को दरभंगा ज़िले में ‘शम्भूपट्टी’ में हुआ था. 1920 में वे स्वतंत्रता आंदोलन में सम्मिलित हुए. 1926-1930 तक इन्हें बिहार लेजिस्लेटिव कौंसिल और 1934 और 1945 में सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में निर्वाचित हुए थे. वे 1948-1952 के बीच संसदीय कार्य के राज्य मंत्री रहे. वे मध्यप्रदेश के राज्यपाल भी बने.
11 सारंगधर सिन्हा
1901 में जन्मे सारंगधर सिन्हा ने पहली और दूसरी लोकसभा में पटना लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया था. उन्होंने पटना, मुजफ्फरपुर और कोलकाता में पढ़ाई की. बिहार लेजिस्लेटिव असेंबली के भी सदस्य थे. शिक्षा, वित्त, जेल सुधार, हिंदी कमेटी और हरिजन कमेटी में रहते हुए उन्होंने संसद को कई सुझाव दिये. वे पटना और रांची विवि के वीसी रह चुके थे.
12 श्रीकृष्ण सिंह
बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह को बिहार केसरी के नाम से भी जाना जाता है. अगर द्वितीय विश्वयुद्ध की अवधि को छोड़ दिया जाये तो 1937 से लेकर 1961 तक वे लगातार बिहार के मुख्यमंत्री बने रहे. उनके मित्र अनुग्रह नारायण सिंह लिखते हैं कि 1921 के बाद से बिहार का इतिहास श्री बाबू का इतिहास रहा है. वे आधुनिक बिहार के निर्माता भी कहे जाते रहे हैं.
13 बिनोदानंद झा
17 अप्रैल, 1900 को जन्मे बिनोदानंद झा देवघर के रहने वाले थे. वे 1961-1963 के बीच बिहार के मुख्यमंत्री रहे. उन्होंने लोकसभा में दरभंगा का प्रतिनिधित्व किया था. स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्हें पांच बार जेल जाना पड़ा. किसानों के मसले पर और संताल परगना के सवाल पर वे लगातार सक्रिय रहे. 1937 से ही वे बिहार लेजिस्लेटिव असेंबली के सदस्य रहे.
14 कृष्ण बल्लभ सहाय
बिहार के चौथे मुख्यमंत्री कृष्ण बल्लभ सहाय का जन्म पटना जिले के शेखपुरा में 31 दिसंबर, 1898 में हुआ. वे 1920 से ही स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गये थे. वे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान चार बार जेल गये. 1937 में वे बिहार लेजिस्लेटिव असेंबली के सदस्य चुने गये. आजाद भारत में वे लंबे समय तक बिहार के रेवेन्यू मिनिस्टर रहे.
15 ब्रजेश्वर प्रसाद
22 अक्तूबर, 1911 को गया में जन्मे ब्रजेश्वर प्रसाद के पिता का नाम राय वृंदावन प्रसाद था. इन्होंने एमए तक की पढ़ाई की थी. इनकी पत्नी का नाम संपूर्णा रानी था. संविधान सभा के सदस्य रहने के साथ-साथ उन्होंने अंतरिम संसद, पहली, दूसरी और तीसरी लोकसभा में गया का प्रतिनिधित्व किया. सात दिसंबर 1979 को उनकी मृत्यु हो गयी.
16 मोहम्मद ताहिर
1903 में पूर्णिया के मझगांव में पैदा हुए मोहम्मद ताहिर पहले मुसलिम लीग के नेता था, बाद में कांग्रेस से जुड़ गये. इन्होंने उच्चशिक्षा के लिए अलीगढ़ मुसलिम विवि से हासिल की. कानून की पढ़ाई के बाद इन्होंने वकालत शुरू कर दी, फिर राजनीति से जुड़कर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के चेयरमैन बन गये. ये तीन बार बिहार लेजिस्लेटिव असेंबली के सदस्य चुने गये.
17 दीप नारायण सिंह
मुजफ्फरपुर के पुरनटांड गांव में 25 नवंबर, 1894 को जन्मे दीप नारायण सिंह 1921 में आजादी की लड़ाई में शामिल हो गये. वे पांच बार जेल गये. पहले बिहार एंड उड़िसा लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य रहे, फिर बिहार लेजिस्लेटिव काउंसिल के. आजादी के बाद वे राज्य सरकार में मंत्री और 18 दिनों के लिए मुख्यमंत्री भी बने.
18 तजामुल हुसैन
पटना में 19 दिसंबर, 1893 को पैदा हुए तजामुल हुसैन की पहचान एक राष्ट्रवादी नेता के रूप में रही है, जो जिन्ना का विरोध करने के कारण अक्सर कट्टरपंथियों के निशाने पर रहते थे. इन्होंने अपनी पढ़ाई लंदन में की और लौट कर पटना में वकालत शुरू कर दी. 1935 में वे बिहार लेजिस्लेटिव असेंबली के सदस्य चुने गये. संविधान सभा में रहते हुए इन्होंने कई कमिटी में सुझाव दिये.
19 बाबू गुप्तनाथ सिंह
कैमूर जिले के चैनपुर विधानसभा के पहले विधायक बाबू गुप्तनाथ सिंह की पहचान उनकी किताब कुरमी जमात का इतिहास की वजह से है. 17 जनवरी, 1900 को कैमूर के सिरहीरा गांव में जन्मे बाबू गुप्तनाथ सिंह युवावस्था में ही सत्याग्रह में शामिल हो गये. बाद में आर्य कन्या विद्यालय, बड़ौदा में शिक्षक बन गए. फिर भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हो गये.
20 सैयद जफर इमाम
सैयद जफर इमाम पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके हैं. पटना के नेउरा गांव में 18 अप्रैल 1900 को जन्मे जफर इमाम ने उच्च शिक्षा ब्रिटेन में हासिल की. 1922 में वे बैरिस्टर बनकर बिहार लौटे और पटना हाईकोर्ट में वकालत करने लगे. 1943 से 1953 तक वे पटना हाईकोर्ट के जस्टिस रहे फिर उन्हें यहां का चीफ जस्टिस बना दिया गया.
21 केटी शाह
समाजवादी नेता, गुजराती नाटककार औऱ लंदन स्कूल ऑफ इक़ॉनॉमिक्स के छात्र रह चुके केटी शाह बिहार से संविधान सभा में प्रतिनिधि के रूप में गये थे. ये जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में 1938 में गठित नेशनल प्लानिंग कमिटी के सदस्य थे. उन्होंने संविधान सभा में रहते हुए दो बार सेकुलर, फेडरल और सोशलिस्ट शब्द को संविधान में शामिल कराने का प्रयास किया.
22 भागवत प्रसाद
मुंगेर के धरहरा के सुंदरपुर गांव के निवासी भागवत प्रसाद अपने इलाके के जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी थे. वे आजादी की लड़ाई में भाग लेते हुए कई बार जेल गये. कांग्रेस पार्टी के नेता भागवत प्रसाद बाद में सूर्यगढ़ा, लखीसराय-बड़हिया विधानसभा के एमएलए बने और इसके बाद वे एमएलसी भी रहे. संविधान सभा में इन्हें भेजा गया था.
23 जदुबंस सहाय
जदुबंस सहाय डॉल्टनगंज के अग्रिम पंक्ति के स्वतंत्रता सेनानियों में से थे. भारत छोड़ो आंदोलन के वक्त में वे काफी सक्रिय थे. उस वक्त उनकी गिरफ्तारी भी हुई थी. बाद में वे संविधान सभा के सदस्य के रूप में संसद पहुंचे. जहां उन्होंने कई विषयों पर काफी गंभीर बहस की और अपनी राय रखी.
24 डॉ रघुनंदन प्रसाद
बिहार में दलितों के लिए संघर्ष करने वाले प्रमुख नेताओं में से थे. जगजीवन राम द्वारा स्थापित डिप्रेस्ड क्लास लीग से वे स्थापना के वक्त से ही जुड़े थे. बाद में 1937 में गठित बिहार प्रदेश दलित वर्ग संघ के वे सचिव बनाये गये. 1937 में ही वे मुंगेर सुरक्षित क्षेत्र से चुने गये थे. उन्होंने दलितों पर होने वाले अत्याचार भेदभाव को लेकर एक पत्रिका भी निकाली थी, जिसका नाम दलित मित्र था.
25 अनुग्रह नारायण सिंह
इनके नाम के साथ बिहार विभूति का अलंकरण जुड़ा रहता है. 18 जून 1887 को वर्तमान औरंगाबाद जिले में जन्में अनुग्रह नारायण सिंह प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे. इन्होंने चंपारण सत्याग्रह में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी और बिहार विद्यापीठ में बतौर शिक्षक काम किया. आधुनिक बिहार के निर्माताओं में इनका नाम लिया जाता है.
26 चंद्रिका राम
दो जुलाई 1918 को सारण के महुआवां गांव में जन्मे चंद्रिका राम की पहचान दलितों-वंचितों को हक दिलाने वाले नेता के रूप में रही है. 1948-1964 तक वे बिहार स्टेट डिप्रेस्ड क्लासेज के अध्यक्ष व कृषक समाज समेत कई ट्रेड यूनियनों के सभापति रहे.
27 देवेंद्रनाथ सामंतो
1900 ई में जन्मे देवेंद्र नाथ सामंतो ने सिंहभूम जिले में सक्रिय थे. 1927, 1930 और 1933 में वे सिंहभूम से बिहार-उड़ीसा विधान परिषद के सदस्य चुने गये. 1946 से 1950 तक वे बिहार लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य रहे.
28 जगत नारायण लाल
शाहाबाद जिले के आंखगांव ग्राम में जगत नारायण लाल का जन्म 31 जुलाई 1896 को हुआ था. 1920 से आजादी के आंदोलन में जुड़ कर कई बार जेल भेजे गये. राजनीति में वे डॉ. राजेंद्र प्रसाद और मदन मोहन मालवीय के अनुयायी थे.
29 बोनीफास लकड़ा
लोहरदगा के दोबा गांव में जन्मे बोनीफास लकड़ा (चार मार्च 1898 – आठ दिसंबर 1976) ने छोटानागपुर व संताल परगना (वर्तमान झारखंड) के आदिवासियों के लिए सुरक्षा प्रावधानों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी़.
30 महेश प्रसाद सिन्हा
सकरा, मुजफ्फरपुर विधानसभा का प्रतिनिधित्व करने वाले महेश प्रसाद सिंहा का जन्म आठ जून, 1901 को हुआ. छात्र जीवन से ही ये स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गये. आजादी के पहले से ही ये बिहार विधानसभा के सदस्य चुने जाते रहे हैं.
31 रामेश्वर प्रसाद सिंह
वैशाली से संविधान सभा के लिए निर्वाचित रामेश्वर प्रसाद सिंह पेशे से वकील थे. 1921 में वे आजादी की लड़ाई में शामिल हो गये. वे बिहार लेजिस्लेटिव असेम्बली के सदस्य भी रह चुके हैं. उनकी पुत्री किशोरी सिंहा दो दफा लोकसभा सदस्य रह चुकी हैं.
32 हुसैन इमाम
हुसैन इमाम ने संविधान सभा में बिहार का प्रतिनिधित्व किया था. इनके बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं मिलता. कुछ अपुष्ट जानकारियों के मुताबिक ये जिन्ना के करीबी मित्रों में से थे. पाकिस्तान बनने के बाद वे वहीं चले गये.
33 लतिफुर रहमान
सरदार मोहम्मद लतिफुर रहमान का जन्म 24 दिसंबर, 1900 को औरंगाबाद के नगमतिया गांव में हुआ था. वे मौलाना मजहरूल हक द्वारा संपादित अखबार द मदरलैंड से जुड़ गये. उनके इंतकाल के बाद वे अखबार के प्रबंध निदेशक बन गये.
34 श्री नारायण महथा
श्रीनारायण महथा का जन्म मुजफ्फरपुर के जमीन्दार परिवार में 11 जून, 1901 को हुआ था. 1926-1945 तक डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के जरिये मुजफ्फरपुर में विकास का काम किया. 1942 के बाद से वे राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हो गये.
35 अमिय कुमार घोष
स्वतंत्रता सेनानी अमिय कुमार घोष डॉल्टनगंज के रहने वाले थे और वहां के पहले विधायक थे. वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नजदीकी रहे हैं. डॉल्टनगंज में उनके आवास सेवा सदन पर नेताजी ठहरा करते थे.
36 पी के सेन
बैरिस्टर पीके सेन का पूरा नाम प्रशांतो कुमार सेन था. आज जहां पटना तारामंडल है वहीं सहाय सदन के नाम से इनका आवास था. वे पटना हाई कोर्ट में वकालत करते थे और इमाम बंधु हसन इमाम और अली इमाम के मित्र थे. वे ब्रह्म समाज के अनुयायी थे और इससे संबंधित किताबें लिखीं.
लेखक : एसोसिएट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान, दिल्ली
Posted by Ashish Jha