Republic Day 2021: बिहार (Bihar) के गया (Gaya) शहर का एक रंगरेज परिवार अंग्रेजों के जमाने से तिरंगे पर अशोक चक्र (Ashok Chakra) के निशान की छपाई कर रहा है. पिछले 60 वर्षों में चार पुश्तों से जिला ही नहीं पूरे प्रमंडल में गया के मारूफगंज-मखलौटगंज मुहल्ले में एक ही घर है, जहां राष्ट्रीय ध्वज मुकम्मल रूप पाता है. कहा जा रहा है कि इस परिवार को छोड़कर पूरे प्रमंडल में तिरंगे पर अशोक चक्र पर छपाई करने का हुनर किसी दूसरे के पास नहीं है.
इनका कहना है कि पैसे के लिए नहीं बल्कि सम्मान के लिए अशोक चक्र बनाते हैं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस बार गणतंत्र दिवस पर 30 हजार तिरंगे पर अशोक चक्र बनाया है. तिरंगे पर अशोक चक्र छापना महज एक काम नहीं है यह देश के प्रति प्रेम प्रदर्शन का एक जरिया भी है. शायद इसिलिए परिवार का हर सदस्य इसे देश सेवा की भावना से करता है.
खादी ग्रामोद्योग समिति, हैंडलूम से लेकर निजी लोगों को भी तिरंगे पर अशोक चक्र की छपाई करवानी हो, तो वह यहीं आता है. यहां गया के साथ-साथ औरंगाबाद, नवादा, जहानाबाद, अरवल से भी ऑर्डर आता है. तिरंगे पर अशोक चक्र उकारने का काम चौथी पीढ़ी में मो. शमीम और उनकी बीबी सीमा परवीन शिदद्त से कर रहे हैं. इलाके में मास्टर साहेब के नाम से प्रसिद्ध शमिम ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि उनके अब्बा ने उन्हें यह काम सिखाया.
अब्बा को उनके दादा ने. ये सिलसिला हर पुश्तों में चलता रहा. अब पांचवी पीढ़ी में मो. शमीम के बेटे मो. नवाब, मो.छोटू और उनकी पत्नी भी ये काम सीख गये हैं. मो. शमीम की पत्नी सीमा परवीन शिदद्त पूर्व वार्ड पार्षद हैं.मो. शमीम ने कहा कि तिरंगा देश की शान है. हम भारत मां के लाल हैं. इससे कमाई के नाम पर केवल मेहनताना मिलता है. लेकिन इसे करने से गर्व महसूस होता है.
अशोक चक्र छापने में काफी हिफाजत रखनी होती है. 24 चक्र सुंदर तरीके से झंडे पर दिखे और किसी तरह की कोई निशान उस पर न आए इसका ख्याल रखना पड़ता है. वो अशोक चक्र का सांचा बनारस और हैदराबाद से मंगाते है. इसमें कौन-कौन सा रंग का इस्तेमाल करते हैं, इस पर मो. शमीम कहते हैं कि यही तो राज की बात है.
Posted by: Utpal kant