बादल श्रीवास्त्व,वाल्मीकिनगर : भारत नेपाल सीमा को बांटने वाली नारायणी गंडकी की धार में सोमवार की सुबह सात बजे एक गैंडा गंडक की धार में बहता हुआ बराज तक आ पहुंचा. वन प्रशासन की मौजूदगी में गंडक बराज के कंट्रोल रूम से बराज के चार नंबर फाटक को खोल कर(उठाकर) गैंडा को डाउनस्ट्रीम की तरफ निकालने की कोशिश की गयी. इसमें फाटक से टकराने से गैंडा की मौत हो गयी.
प्रत्यक्षदर्शियों की माने तो नदी की धार में एक गैंडा को पानी के साथ बह कर बराज की तरफ आते देख कर मॉर्निंग वॉक करने वाले लोगों की भीड़ जमा होनी शुरू हो गयी. सूचना पर वाल्मीकि नगर वन क्षेत्र पदाधिकारी महेश प्रसाद में वन कर्मियों की टीम को बराज पर भेजा.
वन कर्मियों की मौजूदगी में बराज के चार नंबर फाटक पर पहुंचे गैंडा के रेस्क्यू के लिए गंडक बराज कंट्रोल रूम द्वारा फाटक को धीरे-धीरे ऊपर उठाया जाने लगा. पानी के दबाव में गैंडा डाउनस्ट्रीम की तरफ बह कर निकल गया,किंतु इस दौरान फाटक से टकराने से गैंडा की मौत हो गयी.
वन प्रमंडल 2 के डीएफओ गौरव ओझा ने बताया कि नेपाली क्षेत्र में रुक-रुक कर लगातार बारिश का सिलसिला जारी है. इस कारण नेपाल के चितवन राष्ट्रीय निकुंज के वन्य जीव पानी में बह कर कई बार वीटीआर में आ जाते हैं. सोमवार को भी एक मादा गैंडा पानी के बहाव में गंडक बराज के रास्ते आ गया है.
संभवत उसके शरीर में पानी ज्यादा चले जाने से उसकी मौत हो गयी है. कक्ष संख्या एम 29 चूलभटा के एंटी पोचिंग कैंप से सटे गंडक नदी में गैंडा का शव आकर किनारे लगा. गंडक बराज से ही नाव द्वारा गैंडा की मॉनिटरिंग वन कर्मियों के द्वारा न की जा रही थी.ओझा ने बताया कि वीटीआर में पहुंचा कोई भी वन्य जीव जिंदा हो या मुर्दा वीटीआर का है. मृतजीव की प्रोटोकॉल के मुताबिक पोस्टमार्टम के उपरांत अंतिम क्रिया की जाती है.
बगहा से आये डा.एसपी रंजन के द्वारा गैंडा का पोस्टमार्टम वन संरक्षक सह निदेशक हेम कांत राय की मौजूदगी में किया गया. उसके बाद उसके शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया. गेंडे के सभी अंग सुरक्षित हैं. उसके बिसरे को वन्य जीव संस्थान देहरादून और भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान बरेली जांच के लिए भेजा जायेगा.
जांच रिपोर्ट के बाद ही उसकी मौत के वास्तविक कारणों का खुलासा हो पायेगा. इस अवसर पर वन संरक्षक हेम कांत राय,डब्लू डब्ल्यूएफ के कमलेश मौर्य, प्रशिक्षु एसीएफ अतीश कुमार, पशु चिकित्सा पदाधिकारी डॉ एसपी रंजन, डॉ मनोज कुमार टोनी, रेंजर महेश प्रसाद, फिल्ड बायोलॉजिस्ट सौरभ वर्मा के अलावा अन्य वन कर्मी मौजूद रहे.
बच सकती थी गैंडा की जान: गंडक बराज के रास्ते सुबह गंडक नदी के पानी के बहाव में बह कर आ रहे गैंडा को देखने के बाद वन प्रशासन और सिंचाई विभाग कंट्रोल रूम के आपसी तालमेल से अगर बराज का 4 नंबर फाटक जिसमें गैंडा के आने की संभावना थी, उसे अगर पहले से ही खोल के रखा गया होता, तो पानी के प्रेशर में गैंडा बहकर झटके में दूर निकल जाता. इससे उसके पानी की घुमेड़ के कारण फाटक से टकराने की संभावना नहीं के बराबर रहती.अगर समय से यह निर्णय लिया गया होता.
वीटीआर को रास नहीं आते गैंडे: इसके पूर्व भी 2017 में गंडक में बाढ़ के साथ सैकड़ों वन्य जीव नेपाल से गंडक नदी के रास्ते बह गए थे. इसमें लगभग एक दर्जन गैंडे वीटीआर में पहुंचे थे. इनमें से लगभग 8 को रेस्क्यू के बाद नेपाली वन प्रशासन को सौंप दिया गया था. बचे हुए गैंडे समय के साथ काल के गाल में समाते चले गये.
Posted by Ashish Jha