मिथिला में अब शाप नहीं वरदान बनी नदियां, दशकों बाद दलहन, तेलहन की खेती करेंगे कुशेश्वरस्थान के किसान
पहले बाढ़ आने के कारण यहां के किसानों की सिर्फ एक ही फसल होती थी. प्रदेश के जल संसाधन विभाग के मंत्री संजय कुमार झा की पहल पर अब किसानों के एक खेत में रबी के तहत दलहन व तेलहन फसलें भी उपजा सकेंगे. इस बार पहली बार कुशेश्वरस्थान के चौरों में सावन-भादो महीने में धूल उड़ते नजर आयी.
संतोष कुमार पोद्दार, कुशेश्वरस्थान पूर्वी (दरभंगा). यह क्षेत्र दशकों से बाढ़ से अभिशप्त रहा. कोई वर्ष ऐसा नहीं गुजरता, जिस साल यहां के लोगों को बाढ़ की त्रासदी झेलनी न पड़ी हो. आषाढ़ से ही चारों तरफ पानी ही पानी नजर आने लगता है. बाढ़ के बीच जिंदगी की जद्दोजहद करते हुए कई पीढ़ियां खप गयीं. इससे निजात की उम्मीद भी छोड़ दी. इसे नियति मान लिया, लेकिन आज स्थिति बदल गयी है. तटबंध बनने के इतने दिनों बाद कुशेश्वरस्थान प्रखंड के अधिकतर इलाकों को बाढ़ से निजात मिल गयी है. तटबंध के बीच बसीं चार पंचायतों को छोड़ पूरा इलाका आज खुशहाली में है. क्षेत्र के खेतों में लहलहाते दलहन व तेलहन के अलावा हवा के झोंका संग धान के पौधे इस सुखद बदलाव की मस्ती में झूम रहे हैं.
अब दलहन व तेलहन की भी होगी खेती
पहले बाढ़ आने के कारण यहां के किसानों की सिर्फ एक ही फसल होती थी. प्रदेश के जल संसाधन विभाग के मंत्री संजय कुमार झा की पहल पर अब किसानों के एक खेत में रबी के तहत दलहन व तेलहन फसलें भी उपजा सकेंगे. इस बार पहली बार कुशेश्वरस्थान के चौरों में सावन-भादो महीने में धूल उड़ते नजर आयी. प्रखंड के किसी भी चौर में एक बूंद भी पानी नहीं है. प्रखंड से होकर गुजरने वाली सभी नदियों का पानी नदी के गर्भ में ही सिमटा हुआ है.
चौरों में सालों भर पानी रहता था
जिले का भूगोल तय करते कुशेश्वरस्थान व कुशेश्वरस्थान पूर्वी दोनों प्रखंडों में नदी-नालों का जाल बिछा है. इस कारण यहां के चौरों में एक दशक से पूर्व तक सालों भर पानी रहता था. बहुत ऐसे भी चौर थे, जिनमें मई-जून माह तक पानी जमा रहता था. उसमें मछली मारकर पानी को सुखाना पड़ता था. पुन: नदियों के जलस्तर में वृद्धि होते ही चौरों में पानी भर जाता था.
शाप नहीं अब वरदान बनी नदी
2013-14 में कमला-बलान नदी के पश्चिमी तटबंध का निर्माण होने से कोसी व कमला बलान नदी का पानी दोनों प्रखंडों में आना बंद हो गया. उसके बाद से कुशेश्वरस्थान प्रखंड की सभी पंचायतों व पूर्वी प्रखंड की छह भिंडुआ, कुशेश्वरस्थान उत्तरी, दक्षिणी, केवटगामा, महिशौथ तथा सुघराइन में करेह नदी का पानी आने लगा, लेकिन इस वर्ष करेह नदी के उत्तरी तटबंध में फुहिया के निकट 12 फाटकों का स्लुइस गेट का निर्माण हो जाने से अब कुशेश्वरस्थान पूर्वी प्रखंड इटहर, उसरी, उजुआ-सिमरटोका एवं तिलकेश्वर पंचायत को छोड़ पांच पंचायतों समेत नगर पंचायत तथा कुशेश्वरस्थान की सभी पंचायतें बाढ़ के पानी से पूरी तरह सुरक्षित हो गयी हैं. अब कमला व जीवछ नदी के जलस्तर में वृद्धि होने से ही यहां बाढ़ का पानी आ सकता है. हालांकि कमला व जीवछ नदी का पानी इस क्षेत्र के लिए घातक नहीं, बल्कि वरदान ही साबित होगा.
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अब दलहन, तेलहन के साथ रबी की फसलें उपजाएंगे
किसान विवेकानंद राय, सरोज राय, राजकुमार साह, केदार नारायण पोद्दार आदि कहते हैं कि कई वर्ष पहले यहां के खेतों में दो से तीन फसलें हुआ करती थीं. यहां चना, अरहर, मसूर के अलावा तेलहन, मड़ुआ तथा गेहूं की फसलें अधिक होती थीं. वर्ष 1974 में यहां भीषण बाढ़ आयी. 1987 की बाढ़ ने यहां के लोगों को झकझोर कर रख दिया. यह क्षेत्र इस कदर जलमग्न रहने लगा कि दूसरे जिले के लोग यहां बेटे-बेटी का संबंध करने से कतराने लगे. शादी में नाव से दूल्हा व बारात आती थी. अब जल संसाधन मंत्री संजय झा की सकारात्मक पहल से हमलोगों को बाढ़ से निजात मिल गयी है. अब दलहन, तेलहन के साथ रबी की फसलें फिर से उपजा सकते हैं.