भस्मासुर के डर से छिपे थे भगवान शिव, आज भी मौजूद हैं सबूत, आदिकाल से गुप्ताधाम के गुफा का बरकरार है रहस्य
मंगलेश तिवारी बिहार के अतिप्राचीन शिवलिंगों में शुमार एक प्राकृतिक शिवलिंग गुप्ताधाम की गुफा में भी अवस्थित है. कैमूर की पहाड़ियों की प्राकृतिक छटाओं से सुसज्जित वादियों में स्थित इस गुफा में जलाभिषेक करने के बाद भक्तों की सभी मन्नतें पूरी हो जाती हैं. किवदंतियों के अनुसार, कैलाश पर्वत पर माता पार्वती के साथ विराजमान […]
मंगलेश तिवारी
बिहार के अतिप्राचीन शिवलिंगों में शुमार एक प्राकृतिक शिवलिंग गुप्ताधाम की गुफा में भी अवस्थित है. कैमूर की पहाड़ियों की प्राकृतिक छटाओं से सुसज्जित वादियों में स्थित इस गुफा में जलाभिषेक करने के बाद भक्तों की सभी मन्नतें पूरी हो जाती हैं. किवदंतियों के अनुसार, कैलाश पर्वत पर माता पार्वती के साथ विराजमान भगवान भोले शंकर जब भस्मासुर की तपस्या से खुश होकर उसे किसी के सिर पर हाथ रखते ही भस्म करने का वरदान दिया, तब भस्मासुर मां पार्वती के सौंदर्य पर मोहित होकर शिव से मिले वरदान की परीक्षा लेने के लिए उन्हीं के सिर पर हाथ रखने के लिए दौड़ा. भगवान भोलेनाथ भस्मासुर से बचने के लिए इसी गुफा में छिप गये. इतिहास के जानकार व प्रसिद्ध कवि पवन श्रीवास्तव के मुताबिक, शाहाबाद गजेटियर में फ्रांसिस बुकानन नामक अंग्रेज विद्वान का कथन है कि गुप्ताधाम की इस गुफा में जलने के कारण गुफा का आधा हिस्सा काला होने के सबूत देखने को मिलते हैं.
गुप्ताधाम की गुफा
गुप्ताधाम गुफा बिहार राज्य के सासाराम जिले में स्थित है. यह पवित्र गुफा 363 फीट लंबी है. इस प्राकृतिक गुफा के अंदर भगवान शंकर का करीब तीन फीट ऊंचा शिवलिंग है. इस शिवलिंग के ऊपर पवित्र जल की धारा सदैव गिरती रहती है. गुफा के अंदर अनेक देवी-देवताओं की मनमोहक आकृतियां है.
भस्मासुर की कथा से हुआ गुप्ताधाम नामकरण
भस्मासुर ने भगवान शंकर की घोर तपस्या की थी. इससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उसे वरदान दिया था कि वह जिस व्यक्ति के सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जायेगा. वरदान प्राप्ति के बाद ऋ षि-मुनियों पर उसका अत्याचार इतना बढ़ गया था कि देवता भी उससे डरने लगे. देवता उसे मारने का उपाय ढूंढ़ने लगे. नारद मुनि ने भस्मासुर से कहा, वह तो अति बलवान है. इसलिए उसके पास तो पार्वती जैसी सुंदरी होनी चाहिए, जो अति सुंदर है. भस्मासुर के मन में लालच आ गया और वह पार्वती को पाने की इच्छा से भगवान शंकर के पीछे भागा. अपने ही दिये हुए वरदान के कारण वह उसे मार नहीं सकते थे. इसलिए अपने त्रिशूल से इस गुफा का निर्माण किया और एक गुप्त स्थान पर छिप गये. इसके बाद भगवान विष्णु ने पार्वती का रूप धारण किया और भस्मासुर के साथ नृत्य करने लगे. नृत्य के दौरान ही उन्होंने अपने सिर पर हाथ रखा, उसी प्रकार भस्मासुर ने भी अपने सिर पर हाथ रखा, जिससे वह भस्म हो गया. इसके पश्चात भगवान विष्णु ने कामधेनु की मदद से गुफा के अंदर प्रवेश किया फिर सभी देवी-देवताओं ने वहां भगवान शंकर की आराधना की. इसी समय भगवान शंकर ने कहा कि आज से यह स्थान गुप्ताधाम के नाम से जाना जायेगा.
बक्सर के गंगाजल से जलाभिषेक की मान्यता
श्रावण मास में पूरे महीने व शिवरात्रि के दिन बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कोलकाता और नेपाल से हजारों शिवभक्त यहां आकर जलाभिषेक करते हैं. बक्सर से गंगाजल लेकर गुप्ता धाम पहुंचनेवाले भक्तों का तांता लगा रहता है. जिला मुख्यालय सासाराम से 65 किमी की दूरी पर स्थित इस गुफा में पहुंचने के लिए रेहल, पन्यारी घाट और उगहनी घाट से तीन रास्ते हैं, जो अतिविकट व दुर्गम हैं. दुर्गावती नदी को पांच बार पार कर पांच पहाड़ियों की यात्रा करने के बाद लोग यहां पहुंचते हैं.