मंगलेश तिवारी
त्रिनेत्र औघड़दानी भगवान भोले शंकर अपने भक्तों की रक्षा स्वयं करते हैं. कहा भी जाता है कि मृत्यु से भी वापस बुलाने की शक्ति शिव के महामृत्युंजय मंत्र में है. भगवान शिव अपने भक्तों की रक्षा के लिए दूत भेज देते हैं. ऐसे ही दूत कैमूर की अति नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भोलेनाथ के भक्तों की रक्षा में लगे हुए हैं. गुप्ताधाम की गुफा में विराजमान शिव के जलाभिषेक के लिए जानेवाले श्रद्धालुओं को किसी तरह का कष्ट न हो, इसके लिए स्थानीय लोगों ने हथियार उठा लिया है. आज भी दुर्गम पहाड़ियों की चढ़ाई करना सबके वश में नहीं है. सरकार ने गुप्ताधाम क्षेत्र के विकास के लिए वन विभाग को जिम्मेदारी दी है. लेकिन, प्रतिबंधित संगठन एमसीसी और नक्सली गतिविधियों का गवाह रहा यह इलाका आज भी विकास की बाट जोह रहा है.
हाथों में राइफल लिए घूमते हैं शिवदूत
गुप्ताधाम जाने के रास्ते मे खतरनाक पहाड़ियों पर चढ़ते हुए आपको यदा-कदा शिव के दूत (भक्त के रूप में स्थानीय) मिल जायेंगे. ये लोग हाथों में राइफल, बंदूक व अन्य पारंपरिक हथियार लिए रहते हैं. ये लोग शिव के भक्तों को भगवान की श्रेणी का मानते हैं. इनका कहना है कि शिवभक्तों पर आनेवाली हर संकट से उन्हें उबारना ही इनके जीवन का मकसद है.
पूरे इलाके में हथियार से लैस होकर रक्षा करते हैं करीब तीन दर्जन स्थानीय
प्रभात खबर ने इन शिवदूतों के अध्यक्ष गोपाल जी सिंह से बात की. गोपाल जी ने जो बातें बतायीं, वह रोंगटे खड़े करनेवाले हैं. उन्होंने बताया कि पूरे इलाके में उनके साथ करीब तीन दर्जन हथियारबंद दस्ता मौजूद है. यहां किसी तरह की घटना-दुर्घटना पर पुलिस को आने में देर लगती है. कई बार सूचना देने के बावजूद पुलिस पहुंचने में आनाकानी करती है. ऐसी स्थिति में हथियार ही रक्षक बनते हैं.
पहाड़ की खड़ी चढ़ाई व उफनाती नदियां लेती हैं परीक्षा
सासाराम शहर से 65 किलोमीटर दूर विंध्य पर्वत शृंखला में अवस्थित भगवान गुप्तेश्वर नाथ महादेव के पास पहुंचना बहुत मुश्किल है. यात्रा पन्यारी घाट से शुरू होती है. करीब तीन किलोमीटर की खड़ी खतरनाक पहाड़ी पर चढ़ाई के बाद शिवभक्त देवी स्थान पहुंचते हैं. यह यात्रा का पहला पड़ाव है. इसके बाद हनुमान गढ़ी, अमवा चुआं, सुगिया पहाड़ पड़ाव हैं. कुल 25 किलोमीटर की यात्रा के बाद खड़ी पहाड़ी से करीब दो हजार मीटर नीचे उतरना होता है. यहां से शुरू होती है असली परीक्षा. सामने सुगवा नदी है, जिसकी धारा करंट से भी तेज है. हर वर्ष तेज धार के साथ लोगों को बहा ले जानेवाली इस पहाड़ी नदी पर पुल का निर्माध आज तक नहीं हो सका है. स्थानीय लोग किसी तरह जंगली पेड़ों की टहनियों से चांचर बनाते हैं. धार तेज होने पर रस्सी के सहारे नदी पार करनी पड़ती है. गर्दन तक पानी में डूबे शिवभक्त ‘हर हर महादेव, बोल बम, ॐ नमः शिवाय’ करते हुए नदी पार कर जाते हैं. नदी पार करने के बाद श्रद्धालुओं की शारीरिक थकान छू मंतर हो जाती है.
प्रगटनाथ महादेव के दर्शन बिना यात्रा अधूरी
पन्यारी घाट से पहाड़ी पर चढ़ाई के बाद सुगिया नदी से पहले शिव जी की गुफा तक दो रास्ते जाते हैं. एक रास्ते मे सुगिया नदी, तो दूसरे में दुर्गावती नदी पड़ती है. दुर्गावती नदी वाले रास्ते में ही प्रगटनाथ महादेव का मंदिर है. ऐसी मान्यता है कि भस्मासुर से लड़ाई के बाद जब शिवजी अलौकिक रूप में थे, तब पहली बार यहीं प्रगट हुए. फिर इसी स्थान पर विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया था. यहां शिवलिंग का आकार हर वर्ष थोड़ा बढ़ता जाता है. कहा जाता है कि गुप्ताधाम जानेवाले श्रद्धालुओं को प्रगटनाथ का दर्शन नहीं करने पर यात्रा अधूरी रह जाती है.