पहचान खो रहा बरांव का कांटेदार बैंगन

सासाराम (नगर) : रोहतास जिले के बरांव गांव में होने वाले कांटेदार जेठुआ बैंगन की खेती अब पहचान खोने लगी है. वर्तमान में सब्जियों की हाइब्रिड किस्मों ने इस परंपरागत किस्म को लगभग हाशिये पर खड़ा कर दिया है. खेती में कम समय में अधिक लाभ कमाने के लिए तकनीक का सहारा लिया जा रहा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 9, 2014 5:12 AM

सासाराम (नगर) : रोहतास जिले के बरांव गांव में होने वाले कांटेदार जेठुआ बैंगन की खेती अब पहचान खोने लगी है. वर्तमान में सब्जियों की हाइब्रिड किस्मों ने इस परंपरागत किस्म को लगभग हाशिये पर खड़ा कर दिया है. खेती में कम समय में अधिक लाभ कमाने के लिए तकनीक का सहारा लिया जा रहा है. किसान भी कांटेदार जेठुआ बैगन की जगह हाइब्रिड बैगन उगाने लगे हैं.

हाइब्रिड बैंगन देखने में भले ही खूबसूरत लगते हैं, परंतु उनमें कांटेदार बैंगन वाली मिठास नहीं रहती है. अब बैगन की खेती बरांव के अलावा जखिनी, महापुर, चनका व डंगरा आदि गांवों में हो रहे हैं. परंतु, गरमी के मौसम में शायद ही किसी खेत में कांटे वाले बैंगन (भंटा) मिल जाये. बरांव मोड़ व गांव में लगने वाले बाजार में कांटेदार बैंगन की उपस्थिति न के बराबर ही रहती है.

देखने में बदरंग पर, स्वाद में लाजवाब: कांटेदार बैंगन का रंग भले ही कुछ फीका हो, लेकिन स्वाद लाजवाब होता है. तभी तो इसके चाहने वाले भी अधिक हैं. बरांव का भंटा विशेष कर पटना में ज्यादा मशहूर है. जिले में सत्तर के दशक से शुरू कांटेदार बैंगन की खेती ने 2000 तक व्यवसाय का रूप ले लिया था. यहां के बैंगन से लदे ट्रक रोजाना पटना, बनारस, गया, चंदौली व झारखंड के कई शहरों में जाते थे. परंतु, आज इस बैंगन की सप्लाइ जिले में ही सिमट कर रह गयी है. ट्रक की जगह ट्रैक्टर से बैंगन दूसरे शहर भेजे जा रहे हैं.

बैंगन ने संवारी युवाओं की जिंदगी : कांटेदार बैंगन की खेती ने बरांव गांव के कई किसानों की जिंदगी संवार दी है. कभी आर्थिक तंगी की मार ङोल रहे गांव के दो दर्जन से अधिक किसान बैंगन की खेती की बदौलत सुखी-संपन्न हैं. कई किसान इस किस्म की बैंगन की खेती कर अपने बेटे को अच्छी शिक्षा दिला कर लायक बनाने में सफल रहे हैं. नौकरी कर रहे संतोष, विकेश, मुन्ना, मनोज आदि युवाओं के पिता बैंगन की खेती बंद नहीं की है. किसान सुदर्शन सिंह कहते हैं कि बैंगन ने उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने के लायक बनाया. जिसकी खेती से मिले पैसों से हमारे बच्चों का भविष्य संवरा है, आखिर उसे मैं कैसे भूल सकता हूं.

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