सासाराम कार्यालय : रोहतास जिले के करवंदिया-बांसा खनन क्षेत्र में अवैध खनन को रोकने के लिए प्रशासनिक स्तर पर कार्रवाई तो लगातार हुई, लेकिन इसका असर उस स्तर पर कभी नहीं दिखा जैसी अपेक्षा रखी गयी.
कारण कुछ तो इस कार्य में लिप्त अवैध कारोबारियों की सांठगांठ काफी अंदर तक होने से कार्रवाई से पहले ही सूचनाएं लीक हो जाती हैं. दूसरी ओर, कुछ लोगों द्वारा पुलिस-प्रशासन में पैठ बना कार्रवाई के पूर्व ही अवैध खनन कार्य को बंद करा दिया जाता है. बावजूद इसके सरकार के लगातार दबाव में प्रशासन द्वारा पिछले दो वर्षो में अवैध खनन को रोकने के लिए कार्रवाई तो खूब हुई. सैकड़ों गाड़ियों को जब्त किया गया, सैकड़ों टन विस्फोटक बरामद हुए, तो कई लोगों पर एफआइआर दर्ज हुए.
लेकिन, असल सवाल यह है कि इन कार्रवाई का असर कितना हुआ. यह गौर करने वाली बात है कि आखिर इतनी धर पकड़ व दबिश के बाद भी खनन से जुड़े कारोबारियों का हौसला क्यों बुलंद है? क्या प्रशासन वाकई पत्थर माफियाओं के सामने घुटने टेक चुकी है या फिर उनकी पहुंच वहां तक है, जहां प्रशासनिक अधिकारी चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं.
जिले में अवैध खनन पर प्रतिबंध लगाने के लिए धर पकड़ तो पहले भी होती रही, लेकिन 26 फरवरी, 2012 को तत्कालीन एसपी मनु महाराज ने पहली बार बड़े पैमाने पर खदान क्षेत्र में घुस कर छापेमारी की. जहां 20 से अधिक गाड़ियों को जब्त करने के साथ 150 क्विंटल से अधिक अमोनियम नाइट्रेट, 3000 से अधिक डेटोनेटर के साथ करीब 25 लोग हिरासत में लिये गये. इसके बाद से तो वन क्षेत्र में खनन को रोकने और क्रशरों की गड़गड़ाहट रोकने के लिए हर दो-चार महीने पर छापेमारी की कार्रवाई होती रही. क्रशरों को सील करने के साथ वहां मौजूद गिट्टी पत्थर को जब्त किया गया. बावजूद इसके खनन को रोकने में पुलिस पूरी तरह सफल अभी भी नहीं हो सकी है.