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जिले में लगातार बढ़ रहे मानसिक रोगी

सासाराम : मोबाइल व इंटरनेट लोगों को दिन प्रतिदिन मानसिक रोगी बनाता जा रहा है. चौकिए मत, यह बिल्कुल सत्य है. आज पूरा परिवार दिन-रात मोबाइल फोन से चिपका हुआ है. बच्चे के हाथ से फोन ले लो तो वह चीखने लगते है. यह मानसिक बीमारी की स्थिति है. इंटरनेट का इस्तेमाल हमारे दिमाग में […]

सासाराम : मोबाइल व इंटरनेट लोगों को दिन प्रतिदिन मानसिक रोगी बनाता जा रहा है. चौकिए मत, यह बिल्कुल सत्य है. आज पूरा परिवार दिन-रात मोबाइल फोन से चिपका हुआ है. बच्चे के हाथ से फोन ले लो तो वह चीखने लगते है. यह मानसिक बीमारी की स्थिति है. इंटरनेट का इस्तेमाल हमारे दिमाग में घुस कर इसे नाकारा बना रहा है.
यही नहीं काम व टेंशन की वजह से महिलाएं व पुरुष मानसिक बीमारी के शिकार हो रहे हैं. हैरानी की बात यह है कि अधिकतर लोग अपनी बीमारी को छीपाकर रख रहे हैं. छिपाने से आगे जाकर यही बीमारी उनके लिए घातक सिद्ध होती है.
विशेषज्ञ मानते हैं कि वर्तमान स्थिति के मुताबिक खेल मैदानों में खेलने वाले खिलाड़ियों की संख्या काफी कम हो चुकी है. उन्हें इतना नहीं पता कि मोबाइल उनके लिए मानसिक रोग पैदा कर रहा है. पढ़ाई के अलावा बच्चे मोबाइल पर लगे रहते हैं. इन बच्चों ने वर्तमान में मोबाइल को ही अपना स्टेट्स सिंबल बना लिया है. वक्त के मुताबिक पैरेंट्स भी इन बच्चों के आगे बेबस हो चुके हैं. हालात तो यह हो चुकी हैं कि यदि फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया पर लाइक्स कम मिल रही तो लोग डिप्रेशन के शिकार हो जा रहे हैं.
ऐसे करें बचाव
नैदानिक मनोवैज्ञानिक के माने तो मानसिक बीमारी से बचने के लिए बच्चों को खेल-कूद, पढ़ाई लिखाई आदी में बीजी कर देना चाहिए. बच्चे खेलेंगे तो उनका मानसिक विकास होगा. वे हर प्रकार से तंदुरुस्त रहेंगे. साथ ही कम समय के लिए मोबाइल भी दें.
मासूमों को तेजी से लग रही मोबाइल की लत
सदर अस्पताल में स्थित मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम इकाई के नैदानिक मनोवैज्ञानिक डॉ विप्लव कुमार सिंह ने बताया कि बच्चों में मोबाइल लत के मामले तेजी से बढ़े हैं. अटेंशन डेफिसिट हाईपर एक्टिव डिसआर्डर (एडीएचडी) से पीड़ित मासूमों में से करीब 20 फीसदी में मोबाइल की लत होती है. इस लत के कारण ऐसे बच्चे सामाज से कट जाते हैं.
ऐसे बच्चों का इलाज लंबा चलता है. एकांकि परिवार के कारण भी लोगों का झुकाव इंटरनेट, मोबाइल और सोशल साइट की तरफ हुआ है. मोबाईल पर गेम व अन्य कारणों से उनकी स्मरण शक्ति कमजोर हो रही है. बच्चों के दिमाग पर असर पड़ रहा है. कई घातक बीमारियों के वे शिकार हो रहे हैं. कई बच्चे ऐसे हैं जिन्हें मानसिक बीमारी की सारी उम्र के लिए दवाई लग चुकी है.
लोग बीमारी छुपाने की प्रवृत्ति से उबरें
मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम इकाई, सदर अस्पताल सासाराम में इधर एक वर्ष के दौरान रोगियों कि संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है. फॉलोअप मरीजों की संख्या भी बढ़ी है. जिनमें कई मरीजों को मोबाइल के कारण भी मानसिक रोग के लक्षण दिखाई देते हैं.
अभी भी लोग मानसिक रोग को छुपाने कि प्रवृत्ति बनाये हुए हैं, समय पर इलाज नहीं करा पाते है. जब रोग बढ़ जाता है तब अस्पताल पहुंचते हैं, जिससे इलाज थोड़ी जटिल हो जाती है. परंतु, हम लोग विभिन्न गांवों इत्यादि जगहों पर जागरूकता कार्यक्रमों द्वारा मानसिक रोग के प्रति लोगों में इसके भ्रम को दूर करने के लिए लगातार कैंप का आयोजन कर रहे हैं.
इसके परिणामस्वरूप मरीज स्वेच्छा से उपचार कराने के लिए उत्साहित हुए हैं. हमारे विभाग में दवा के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक पद्धति से बातचीत की तकनीक अपनायी जाती है साथ ही दिनचर्या सुधार हेतु प्रेरित किया जाता है. जिससे मरीज में सुधार दर बढ़ जाती है. मोबाइल का जितना कम से कम इस्तेमाल होगा, व्यक्ति या बच्चा उतना स्वस्थ्य और सुरक्षित रहेगा.
डॉ आरके सिंह, मनोचिकित्सक

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