मुख्य पार्षद के इस्तीफे से गरमायी शहर की राजनीति

सासाराम : नगर पर्षद की कंचन सरकार के दो वर्ष पूरे हो गये थे. विपक्ष अभी विश्वास-अविश्वास की रणनीति बना ही रहा था कि मुख्य पार्षद कंचन देवी ने अचानक गुरुवार अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इस्तीफा देने के पीछे का कारण पारिवारिक बताया, लेकिन अचानक इस्तीफे ने राजनीतिज्ञों को सोचने पर मजबूर कर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 14, 2019 8:07 AM

सासाराम : नगर पर्षद की कंचन सरकार के दो वर्ष पूरे हो गये थे. विपक्ष अभी विश्वास-अविश्वास की रणनीति बना ही रहा था कि मुख्य पार्षद कंचन देवी ने अचानक गुरुवार अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इस्तीफा देने के पीछे का कारण पारिवारिक बताया, लेकिन अचानक इस्तीफे ने राजनीतिज्ञों को सोचने पर मजबूर कर दिया. इस्तीफा की सूचना फैलते ही अलग-अलग तरह के कायस व प्रतिक्रियाएं आने लगी.

किसी ने कहा कि यह पूर्णत: राजनीति से प्रेरित इस्तीफा है, तो किसी ने कहा कि हाल के दिनों में सरकार व इओ के बीच चल रही तनातनी का नतीजा है. किसी ने कहा कि कंचन देवी ने अपनी सरकार की अकर्मण्यता छिपाने के लिए इस्तीफा दे दिया. तो किसी ने कहा कि शहर की जनता की सहानुभूति के लिए इस्तीफा दिया गया है.
बहरहाल कंचन देवी के मुख्य पार्षद के पद से इस्तीफा देने के बाद नगर पर्षद सरकार की बागडोर उप मुख्य पार्षद विजय कुमार महतो पर आ गया है. अब जब तक मुख्य पार्षद के चुनाव के लिए कोई निर्णय नहीं लिया जाता है, तब तक उप मुख्य पार्षद ही नगर सरकार के मुखिया होंगे. ऐसे में उनकी जिम्मेदारी बढ़ गयी है.
इस्तीफे से कयासों का दौर शुरू
मुख्य पार्षद के इस्तीफा पर कयासों का दौर शुरू हो गया है. सरकार के दो वर्ष पूरे होने पर अविश्वास की बात हो रही थी, इसी बीच इस्तीफा दे विपक्ष को चौका दिया. अविश्वास की बात ठप हो गयी. अब आमने-सामने की लड़ाई होगी. 36 पार्षदों के समर्थन से नौ जून, 2017 को बनी कंचन सरकार के लड़ाके कह रहे हैं कि अबकी बार 25 पार. तो यह तय है कि कंचन सरकार के समर्थक इन दो वर्षों में घटे हैं. बिदके पार्षदों के दम पर विपक्ष अपनी रणनीति बना ही रहा था कि इस्तीफे ने फिर नये सिरे से रणनीति बनाने को विवश कर दिया. राजनीतिज्ञों की माने तो कंचन सरकार को बनाने में लगे रणनीतिकार चेहरा बदलने का संकेत दे रहे हैं.
ताकि, लोग वार्ड 12 के बगल में देखने लगे और फिर एक बार कंचन सरकार बने. गफलत में फंसा विपक्ष जोड़-तोड़ में उन दरवाजों को भी खटखटाने लगे, जो पुराने वफादार हैं और बिदके हैं, उसे कंचन के समर्थक ले उड़े. खैर देखना है, नगर पर्षद की राजनीति क्या रूप दिखाती है? इतना तो तय है कि दो वर्ष पहले सरकार बनाने के लिए जो खेल हुआ था, कुछ उसी तर्ज पर फिर सरकार बनेगी. चेहरा कौन होगा? यह तो समय बतायेगा.

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