बिहार बंद: माले कार्यकर्ताओं ने केंद्र व राज्य सरकार पर साधा निशाना, बंद का रहा मिला-जुला असर
सासाराम कार्यालय: बिहार सरकार के कथित तानाशाही रवैया के खिलाफ अनुबंध मानदेय आधारित नियोजन नीति को समाप्त करने, तमाम सेवा कर्मियों की स्थायी नियुक्ति, समान काम के समान वेतन,ट्रेड यूनियन अधिकार की गारंटी,दमनात्मक आदि कार्रवाई की समाप्ति आदि सवालों पर भाकपा माले समेत कम्युनिस्ट पार्टियों ने सोमवार को बिहार बंद रखा. इस बंद का नेतृत्व […]
सासाराम कार्यालय: बिहार सरकार के कथित तानाशाही रवैया के खिलाफ अनुबंध मानदेय आधारित नियोजन नीति को समाप्त करने, तमाम सेवा कर्मियों की स्थायी नियुक्ति, समान काम के समान वेतन,ट्रेड यूनियन अधिकार की गारंटी,दमनात्मक आदि कार्रवाई की समाप्ति आदि सवालों पर भाकपा माले समेत कम्युनिस्ट पार्टियों ने सोमवार को बिहार बंद रखा.
इस बंद का नेतृत्व भाकपा माले के जिला सचिव कामरेड संजय सिंह कर रहे थे. बंद के दौरान जुलूस निकाला गया, जो रेलवे स्टेशन, धर्मशाला चौक व बाजार होते हुए कचहरी तक गया और वहां से लौट कर पोस्टऑफिस चौक को एक घंटा से अधिक जाम कर आवागमन बाधित कर दिया. संगठन ने शिक्षक सहित अन्य तमाम रिक्त पदों पर तत्काल नियुक्ति, समान काम के लिए समान वेतन प्रणाली, मानदेय पर काम करने वाले कर्मियों के लिए वेतन लागू करना सहित अन्य मांगे रखीं. बंद की समाप्ति पर फायर ब्रिगेड के सामने महासंघ के गोप गुट की अध्यक्षता में एक सभा हुई.
इसे कई वक्ताओं ने संबोधित किया. प्रमुख रूप से गोप गुट के संजय कुमार, सरोज कुमार, प्राथमिक शिक्षक संघ के अरविंद कुमार, अमित कुमार, आइटी सेवा संघ के अभिमन्यु व प्रेम प्रकाश पंकज,भाकपा माले के संजय सिंह, जवाहर सिंह,चंद्रवर्धन सिंह आदि नेताओं ने कहा कि केंद्र व राज्य सरकार जनता के साथ वादाखिलाफी कर रही है. झूठ के सहारे राज्य चल रहा है.
भाजपा काला धन लाने, भ्रष्टाचार पर रोक लगाने व भाईचारा कायम करने की बातें करते थी. लेकिन, इसके उलट सामाजिक व धार्मिक उन्माद पैदा कर समाज को तोड़ने की कोशिश की जा रही. वहीं बिहार सरकार भी गरीबों को छल रही है. कहीं भी भूमिहीनों को इस का लाभ नहीं मिल रहा है. न ही परचा धारियों को कोई लाभ मिल पाया. किसानों से आज धान खरीदने वाला कोई नहीं है. उनके साथ छलावा किया जा रहा है. बिहार राज्य अनुबंध मानदेय सेवा कर्मी संयुक्त मोरचा ने भी सोमवार को जुलूस निकाल बंद में हिस्सा लिया. संविदा पर कार्यरत नियोजित सेवा कर्मियों की मांग थी कि उन्हें समान काम के लिए समान वेतन दिया जाय. इसकी अध्यक्षता मुरली राम कर रहे थे.