16 वर्षो में भी नहीं मिला कब्जा

सासाराम : सरकार की कई योजनाएं बनती तो हैं जनहित में, लेकिन समय से लागू न हो पाने या तकनीकी समस्याओं के चलते उनका लाभ वास्तविक लाभार्थियों तक नहीं पहुंच पाता. हालांकि, इन योजनाओं के क्रियान्वयन की पूरी जिम्मेवारी या जवाबदेही तो निचले स्तर के अधिकारियों की होती है. कई बार देखा गया है कि […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 16, 2013 1:33 PM

सासाराम : सरकार की कई योजनाएं बनती तो हैं जनहित में, लेकिन समय से लागू न हो पाने या तकनीकी समस्याओं के चलते उनका लाभ वास्तविक लाभार्थियों तक नहीं पहुंच पाता. हालांकि, इन योजनाओं के क्रियान्वयन की पूरी जिम्मेवारी या जवाबदेही तो निचले स्तर के अधिकारियों की होती है.

कई बार देखा गया है कि दशकों से पिछड़े व हाशिये पर खड़े लोगों को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास होते हैं, लेकिन प्रखंड या अंचल स्तर के अधिकारियों की निष्क्रियता से समस्या बरकरार रहती है. मामला रामपुर प्रखंड के सिसवार गांव का है.

1997 में यहां के 19 परिवारों को सरकार द्वारा 2.5-3.0 डिसमिल के हिसाब से बंदोबस्ती वाद संख्या 04/1997 द्वारा कुल 0.54 एकड़ भूमि बंदोबस्त की गयी थी. लेकिन, बंदोबस्त भूमि पर लाभार्थियों को अब तक कब्जा नहीं दिलाया जा सका है. इसके लिए लाभार्थियों ने बाकायदा रसीद भी कटवायी है. इसी भूमि के आधार पर इन लोगों को लाल कार्ड भी जारी किये गये हैं. बावजूद इसके 16 वर्ष के बाद भी इन लोगों का उक्त भूमि पर कब्जा नहीं हो सका.

रामपुर के सीओ द्वारा कई बार भूमि मापने की तिथि निर्धारित करने के बावजूद कोई कार्रवाई न कराना यह दरसाता है कि सीओ निहित स्वार्थ के लिए इन भूमिहीनों को भूमि पर दखल नहीं दिलाना चाहते हैं.

जबकि इस कार्रवाई के लिए कैमूर डीएम, एडीएम और सरकार के अवर सचिव के पत्र प्राप्त होने के बावजूद सीओ कोई एक्शन नहीं कर रहे. डीएम ने अपने पत्रांक 10.03.12/274 और एडीएम ने पत्रांक 15.06.12/1452 से सीओ को लाभुकों को उक्त भूमि पर दखल दिलाने का आदेश दिया है.

जिसमें कहा गया है कि तत्कालीन अधिकारियों द्वारा पूरी छानबीन करके ही बंदोबस्ती की गयी होगी, लाभार्थी सिसवार के हैं, लेकिन बंदोबस्त भूमि मौजा दुबौली में है. प्रावधानों के मुताबिक एड ज्वाइनिंग रैयतों के साथ भूमि बंदोबस्ती की जा सकती है.

पत्र में यह भी जिक्र है कि सक्षम पदाधिकारियों द्वारा पूरी छानबीन कर संतुष्ट होकर ही अंचल परामर्शदातृ समिति के प्रस्ताव के आलोक में ही लाभुकों को भूमि बंदोबस्त की गयी है. लाभार्थियों को की गयी बंदोबस्ती को रद्द करने का कोई औचित्य नहीं है. इसी प्रकार सरकार को बंदोबस्त भूमि पर दखल दिलाने का दायित्व भी स्थानीय प्रशासन का है.

इसके बाद भी जब लाभार्थियों को जिला प्रशासन से कोई मदद नहीं मिली, तो वे कई बार मुख्यमंत्री के जनता दरबार में भी गये. वहां सरकार के अवर सचिव दीपलाल दीपक ने भी अपने पत्रंक 2153/2012 में जिलाधिकारी को इन 19 भूमिहीनों को बंदोबस्त भूमि पर दखल दिलाने का आदेश दिया. इसके बाद भी इन परिवारों को लाभ नहीं मिलेगा, तो यहां दोष किसे दिया जाये. सरकार को या जिला प्रशासन को या फिर अंचलाधिकारी को. दोष चाहे जिसका हो इसका दुष्परिणाम तो उन 19 परिवारों को भुगतना पड़ रहा है.

इस संबंध में जब जिला स्तर के अधिकारियों से बात की गयी, तो सभी ने एक सुर में इसे सच माना और यथाशीघ्र इस पर कार्रवाई करने का भरोसा दिया. अब देखना यह है कि वरीय अधिकारियों आदेश पर कब और कितना कारगर कार्रवाई हो पाती है.
– राणा अवधूत कुमार –

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