बाजार में चहल-पहल, दफ्तरों में रहा सन्नाटा
सासाराम (ग्रामीण) : चाहे सरकारी दफ्तर हो, चौक-चौराहा हो, गली-मुहल्ला हो, बस स्टैंड हो या फिर न्यायालय परिसर. बुधवार को चहुंओर होली की का उमंग दिखी. लोग एक-दूसरे को बधाइयां देने लगे थे. बाजार में चहल-पहल थी, लेकिन सरकारी दफ्तरों में सन्नाटा पसरा रहा. दफ्तर के बाद लोग खरीदारी के लिए बाजारों में उमड़ पड़े. […]
सासाराम (ग्रामीण) : चाहे सरकारी दफ्तर हो, चौक-चौराहा हो, गली-मुहल्ला हो, बस स्टैंड हो या फिर न्यायालय परिसर. बुधवार को चहुंओर होली की का उमंग दिखी. लोग एक-दूसरे को बधाइयां देने लगे थे. बाजार में चहल-पहल थी, लेकिन सरकारी दफ्तरों में सन्नाटा पसरा रहा.
दफ्तर के बाद लोग खरीदारी के लिए बाजारों में उमड़ पड़े. कपड़े, किराना, रंग-पिचकारी व बम-पटाखे की दुकानों पर काफी भीड़ थी. दूसरे प्रदेशों व गांव जाने वाले लोग जल्दी-जल्दी खरीदारी कर बस व ट्रेन पकड़ लिये, वहीं स्थानीय लोग काफी देर तक खरीदारी करते रहे.
क्यों मनाते हैं होली
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्वाद भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे. पह्वाद की भक्ति से पिता हिरण्यकश्यप नाखुश थे. उन्हें भक्ति के मार्ग से विमुख करने के लिए हिरणकश्यप ने कई जतन किये, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. अंत में हिरण्यकश्यप ने बहन होलिका के साथ मिल कर प्रह्वाद को मारने की योजना बनायी. होलिका को भगवान से एक चादर मिली थी, जिसके ओढ़ने से वह आग में नहीं जलती.
प्रह्वाद को झांसा देकर होलिका एक विशाल लकड़ियों के ढेर पर चादर ओढ़ बैठ गयी और लकड़ियों के ढेर में आग लगवा दी. तभी तेज हवा चली और चादर उड़ गयी. होलिका आग से जल कर भस्म हो गयी और प्रह्वाद सुरक्षित बच गये. इसी खुशी में लोग हर साल उस दिन लोग होलिका (अगजा) जलाते हैं और अगले दिन होली मनाते हैं.
क्या है पूजन की विधि
लकड़ी, कंडे (उपले), घास व पुआल के साथ होलिका खड़ा करें. इसके बाद असद, फूल, सुपारी, पैसा, घी व होलिका के पास छोड़ें. इसके बाद चंदन, तोरी, हल्दी, गुलाल, फूल व माला चढ़ा कर परिक्रमा के बाद प्रसाद वितरण करें. इसके बाद होलिका में आग लगायें. इस बार रात नौ बजे के बाद होलिका दहन का मुहूर्त है.