भुखमरी से जूझ रहे हजारों मजदूर
कल-कारखाना बंद होने से बढ़ी बेरोजगारी रोजगार के लिए जिले से पलायन कर रहे मजदूर श्रम कानून लागू होने के बाद भी नहीं हुआ भला डेहरी ऑन सोन : एक समय अपने लोगों के साथ-साथ दूसरे जिलों व राज्यों का पेट भरने वाले रोहतास जिले में आज रोजगार के अवसर पैदा करनेवाले साधनों (फैक्टरी, क्रशर […]
कल-कारखाना बंद होने से बढ़ी बेरोजगारी
रोजगार के लिए जिले से पलायन कर रहे मजदूर
श्रम कानून लागू होने के बाद भी नहीं हुआ भला
डेहरी ऑन सोन : एक समय अपने लोगों के साथ-साथ दूसरे जिलों व राज्यों का पेट भरने वाले रोहतास जिले में आज रोजगार के अवसर पैदा करनेवाले साधनों (फैक्टरी, क्रशर राइस मिल आदि) का वजूद मिटने पर है. कई कल-कारखानों के बंद होने से हजारों मजदूरों के परिवार बेरोजगार हो गये और सड़कों पर आ गये. दो जून की रोटी की जुगाड़ करना मुश्किल हो गया. बच्चों की शिक्षा-दीक्षा व बेटी की डोली सजाना तो दूर की कौड़ी हो गयी. सैकड़ों मजदूर जिले से पलायन भी कर गये. श्रम नीतियां लागू होने के बाद भी इन मजदूरों का भला नहीं हो सका है.
अवैध खनन को रोकने के लिए शासन की ओर से हर कदम उठाये जा रहे हैं. पुलिस-प्रशासन द्वारा गोपी बिगहा में क्रशर मंडी उजाड़े जाने से करवंदिया, बांसा सहित दूसरे पहाड़ी खनन क्षेत्रों में मजदूर बेकार हो गये हैं. इस व्यवसाय से जुड़े मजदूरों के परिवारों के सामने खाने के लाले पड़ गये हैं. इसके पहले रोहतास उद्योग समूह, पीपीसीएल, बंजारी सीमेंट उद्योग का डेहरी में लोडिंग-अनलोडिंग कार्य, कोयला डिपो व छोटे कल-कारखानों के बंद होने से हजारों मजदूर बेरोजगार हो गये थे. आज स्थिति यह है कि रोजगार के नये साधन नहीं बढ़ने से बेकारी बढ़ती चली जा रही है. भूखे पेट मजदूर व इनके बच्चे गलत दिशा में बढ़ते रहे हैं. ऐसे में प्रशासन व सरकार को इन बेसहारा मजदूरों के पुनर्वास व रोजगार मुहैया कराने की योजना बनानी होगी.
फाइलों में ही सिमटी श्रम नीति : संगठित व असंगठित मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए कई कानून बनाये गये हैं. लेकिन, यह फाइलों में ही सिमटे हैं. जैसे कानू कंट्रैक्ट, लेबर एक्ट, मिनिमम वेजेज एक्ट, इम्पलाइ कंपन्सेशन एक्ट, खान व भूतत्व श्रम कल्याण एक्ट आदि है. लेकिन, दिक्कत यह है कि रोहतास के मजदूरों के लिए ये श्रम कानून बेमानी साबित हो रहे हैं. रोहतास उद्योग समूह के विस्थापित मजदूर 30 वर्षों से अपने हक के लिए आंदोलित हैं. इन मजदूरों व उनके परिवारों को कुछ नहीं मिल रहा है. इनकी चिंता न तो प्रशासन को है और नहीं नेताओं व जनप्रतिनिधियों को.