मरीज की जान की परवाह नहीं
डेहरी ऑन सोन: भाई साहब मरीज के हालत सिरियस बा, जल्दी से बनारस ले चले के बा, 2200 रुपये ले लिह, न तीन हजार से कम पर नजाइब जा, ठीक बा जल्दी करी. शहर के निजी अस्पतालों के पास लगी एंबुलेंसवालों से मरीजों के परिजन ऐसी विनती करते अक्सर दिख जायेंगे. शहर में कई ऐसे […]
डेहरी ऑन सोन: भाई साहब मरीज के हालत सिरियस बा, जल्दी से बनारस ले चले के बा, 2200 रुपये ले लिह, न तीन हजार से कम पर नजाइब जा, ठीक बा जल्दी करी. शहर के निजी अस्पतालों के पास लगी एंबुलेंसवालों से मरीजों के परिजन ऐसी विनती करते अक्सर दिख जायेंगे. शहर में कई ऐसे प्राइवेट एंबुलेंस है, जो अक्सर मरीजों की मजबूरी का फायदा उठाने से नहीं चूकते हैं.
एंबुलेंसवाले मानवता के नाते भी यह नहीं सोचते हैं कि किराया के मोल-तोल में लगने वाला वक्त मरीज व उसके परिजनों पर कितना भारी पड़ सकता है. मरीज के लिए एक-एक पल कीमती होता है, लेकिन एंबुलेंसवाले इसका परवाह नहीं करते हैं. पैसा के आगे मानवता छोटी पड़ जाती है.
अस्पतालों में नहीं लगी है किराया सूची: गौरतलब है कि शहर के किसी अस्पताल या सार्वजनिक स्थलों पर प्रशासन द्वारा एंबुलेंस के किराया की सूची नहीं लगे होने के कारण रोज मरीजों के परिजनों एवं एंबुलेंस चालकों के बीच बहस होती है. ऐसे में प्रशासनिक स्तर से इस मामले में पहल कर शहर के निजी व सरकारी अस्पतालों को एंबुलेंस के किराया सूची लगाने का सख्त निर्देश दिया जाय. इससे मरीजों को समय से चिकित्सा सेवा मिलेगी व परिजनों की परेशानी कम होगी.
नहीं है सरकारी एंबुलेंस की सुविधा: जिले में सरकारी अस्पतालों में एंबुलेंस तो हैं, लेकिन उन्हें सिर्फ जननी सुरक्षा योजना के काम में लाया गया है. अर्थात जब डिलिवरी से संबंधित केस होते हैं, तो ही एंबुलेंस को भेजा जाता है. सरकारी एंबुलेंस की सेवा सामान्य मरीजों के लिए नहीं है.
एंबुलेंसवाले करते हैं मनमानी: स्थानीय धीरज कुमार,धीरेंद्र सिंह, दीपक सिंह, विनोद कुमार व धर्मेद्र कुमार आदि लोगों ने कहा कि एंबुलेंसवाले मनमानी करते हैं. मरीज की हालत खराब रहती है और चालक अधिक किराया की मांग करते है. साथ ही, अस्पतालों के ईद-गिर्द एंबुलेंसवालों के दलाल भी घूमते रहते हैं, जो किराये का मोल-भाव करते हैं. लोगों की मानें, तो शहर में करीब 16 प्राइवेट एंबुलेंस हैं.