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न दवा-न डॉक्टर, आखिर क्या करें मरीज ?

सासाराम/सूर्यपुरा : स्वास्थ्य विभाग द्वारा जिले के सभी प्रखंडों में चिकित्सा केंद्र स्थापित किये गये हैं, लेकिन इनकी हालत देख ऐसा महसूस होता है कि इन केंद्रों को ही इलाज की आवश्यकता है. कारण कि मुख्यालय से दूर कई ऐसे स्वास्थ्य केंद्र हैं जहां न तो डॉक्टर हैं, न दवा और न कोई अन्य सुविधाएं. […]

सासाराम/सूर्यपुरा : स्वास्थ्य विभाग द्वारा जिले के सभी प्रखंडों में चिकित्सा केंद्र स्थापित किये गये हैं, लेकिन इनकी हालत देख ऐसा महसूस होता है कि इन केंद्रों को ही इलाज की आवश्यकता है. कारण कि मुख्यालय से दूर कई ऐसे स्वास्थ्य केंद्र हैं जहां तो डॉक्टर हैं, दवा और कोई अन्य सुविधाएं.

हां, महीने में सरकार के इन केंद्रों को संचालित करने में लाखों रुपये खर्च जरूर होते हैं. यहां सवाल उठता है कि आखिर सरकार के लाखों रुपये खर्च होने से किसका फायदा है, जबकि गरीब लोगों को इलाज के लिए निजी क्लिनिकों की सेवा ही लेनी पड़ती है.

इलाज की व्यवस्था नहीं

स्वास्थ्य सेवा केंद्र वैसे तो देखने में ठीकठाक है, लेकिन इलाज के लिए कोई व्यवस्था नहीं होने से मरीजों को काफी परेशानी होती है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में फाइलों में तो 16 बेड चलाये जाते हैं. लेकिन, वर्तमान में मरीजों के लिए मात्र छह बेड ही उपलब्ध हैं. इसका नतीजा है कि मरीजों की संख्या बढ़ने या प्रसव कराने आयीं महिलाओं की संख्या में इजाफा होने की स्थिति में उन्हें जमीन का सहारा लेना पड़ता है.

पूर्व से संचालित राजकीय औषधालय जो बाद में पीएचसी में बदल गया, इसमें 16 बेड की व्यवस्था थी. इससे बाहर के मरीजों को भी इलाज कराने में सहूलियत महसूस होती थी.

तीन डॉक्टरों के भरोसे लोग

अस्पताल में कुल सात चिकित्सकों के पद पर मात्र तीन चिकित्सक ही पदस्थापित हैं, जबकि कंपाउंडर, ड्रेसर सहित वार्ड ब्वाय का पद पूरी तरह से रिक्त है. नर्स की कमी देखी जाये तो पीएचसी में कम से कम 21 नर्स होनी चाहिए, जिसमें मात्र 14 नर्स ही कार्यरत है. मरीजों की संख्या देखते हुए यहां कम से कम पीएचसी में 40 नर्स की जरूरत है,तभी स्वास्थ्य केंद्र एवं उप स्वास्थ्य केंद्रों अच्छे ढंग से चलाया जा सकता है.

दवा की है कमी

मरीजों ने बताया कि अस्पताल में दवा का अभाव है. आउटडोर मरीजों को चिकित्सक द्वारा जांच कर दवा तो लिख दिया जाता है, लेकिन अस्पताल में समुचित दवा नहीं होने के कारण ऐसे बाजार से खरीदना पड़ता है. यहां रोजाना 50 से अधिक मरीज इलाज कराने पहुंचते हैं.

वहीं, महिला डॉक्टर की कमी होने से प्रसव भी एएनएम ही कराती हैं. इसमें कभी स्थिति खतरनाक भी हो जाती है. ऐसे में महिला चिकित्सक अगर होती तो प्रसव के साथ साथ सजर्री में भी काफी सुविधा होती. वैसे तो सुविधा के तौर पर एक्सरे एंबुलेंस, टीवी जांच की सुविधा पूर्व से बहाल है. लेकिन, लोगों को इसका लाभ नहीं मिलने से इनकी कोई उपयोगिता नहीं रह गयी है.

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