सरकारी आदेश भी बेअसर

योजनाओं के क्रियान्वयन में हो रहा टाल–मटोल सासाराम (कार्यालय) : सरकार विकास और गरीब तबकों की तरक्की के चाहे लाख दावे करे, लेकिन हकीकत में यह अभी भी दूर की कौड़ी बनी हुई है. हद तो तब होती है जब सरकारी फरमान के बाद भी जिला या निचले स्तर के अधिकारी उन्हें मानने के बजाय […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 18, 2013 3:21 AM

योजनाओं के क्रियान्वयन में हो रहा टालमटोल

सासाराम (कार्यालय) : सरकार विकास और गरीब तबकों की तरक्की के चाहे लाख दावे करे, लेकिन हकीकत में यह अभी भी दूर की कौड़ी बनी हुई है.

हद तो तब होती है जब सरकारी फरमान के बाद भी जिला या निचले स्तर के अधिकारी उन्हें मानने के बजाय टालमटोल करते हैं, जबकि इसके लिए वह सिर्फ अधिकृत होते हैं बल्कि जनहित के उन कार्यो को पूरा करने के लिए उनके पास पर्याप्त बजट के साथ संसाधन भी होता है. इसे दो उदाहरणों से बखूबी समझा जा सकता है.

आदेश के बाद भी नहीं मिला शिक्षा लोन

पहला मामला नोखा स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का है. यहां एक विकलांग महादलित परिवार का छात्र लगभग एक वर्ष से एजुकेशन लोन के लिए बैंक के चक्कर काट रहा है. लेकिन, बैंक अधिकारी उसे रोज कभी यहां तो कभी वहां टरका रहे हैं.

नालंदा कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के पहले वर्ष का छात्र राजेश कुमार गौतम बैंक के स्थानीय प्रबंधक से लेकर क्षेत्रीय प्रबंधक तक इसके लिए मिल चुका है. इसके बाद उसने डीएम और मुख्यमंत्री के जनता दरबार तक अपनी गुहार लगायी. यहां मुख्यमंत्री ने तत्काल लोन देने का आदेश देते हुए संबंधित विभागीय अधिकारी को निर्देश दिया. इसके बावजूद कोई कार्रवाई के स्थानीय प्रबंधक ने मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया है.

यह उस सूबे की हालत हैं जहां के मुखिया बैंकिंग सेक्टर के अधिकारियों के साथ बैठक कर एक बार नहीं कई बार कह चुके हैं कि लोन देने में बैंक आनाकानी करें. वह भी महादलितों को एजुकेशन लोन के लिए इतनी मेहनत करनी पड़ी, तो राज्य में किस तरह का सुशासन चल रहा है. यह आम लोगों की समझ से बाहर की चीज मालूम पड़ती है.

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