नाल साहब परंपरा का गवाह है सासाराम
– अब भी रहस्यमय है रोहतास – इतिहासकारों व पुरातत्वविदों को अध्ययन करने की जरूरत – खोज के विषय हैं कई स्थान – नहीं उठ सका है रहस्यों से परदा सासाराम (ग्रामीण) : देवताओं के विभिन्न स्वरूपों व तिलिस्मी दुनिया को समेटे वीरों की कर्मभूमि रोहतास अपनी अखंडता, अदम्य चाह व रक्षा के लिए संघर्ष, […]
– अब भी रहस्यमय है रोहतास
– इतिहासकारों व पुरातत्वविदों को अध्ययन करने की जरूरत
– खोज के विषय हैं कई स्थान
– नहीं उठ सका है रहस्यों से परदा
सासाराम (ग्रामीण) : देवताओं के विभिन्न स्वरूपों व तिलिस्मी दुनिया को समेटे वीरों की कर्मभूमि रोहतास अपनी अखंडता, अदम्य चाह व रक्षा के लिए संघर्ष, विद्रोह व आजादी की लड़ाई में बीज तत्व रहा है. कई कालों से अमरगाथा की पहचान बनाने में अव्वल रहा रोहतास वर्तमान परिवेश में जनप्रतिनिधियों व पदाधिकारियों की उदासीनता के चंगुल में जकड़ा हुआ है.
बावजूद, यह इतिहासकारों व पुरातत्वविदों के लिए रहस्यमय बना हुआ है. यहां कई ऐसी तिलिस्मी दार्शनिक चीजें अब भी हैं, जिनसे प्राचीन व मध्यकाल का अध्ययन किया जा सकता है. पुरातत्वविदों के लिए कई रहस्यमयी सुराग भी मिल सकते हैं.
रोहतास गढ़ किला व नोखा के दहासील स्थित तेंदुआ तथा जबड़ा पहाड़ को इसकी मिसाल के रूप में देखा जा सकता है. जबड़ा पहाड़ पर स्थित एक कुआं, उसके समीप कंदरा तथा तेंदुआ पहाड़ के पत्थर पर ऊगे गाय का खुर व भगवान शंकर की मूर्ति खोज के विषय हैं.
फ्रांसीसी इतिहासकार जॉन बुकानन ने वर्ष 1812 में लिखा है कि जखिनी गांव में कुछ बिखरी मूर्तियां पड़ी थीं, जो अब नहीं हैं. जबकि, छह दिसंबर 1812 को उन्होंने जखिनी पर्वत पर तिलिस्मी विद्या में लिखे शिलापट्ट का जिक्र किया है. पहाड़ी पर मौत का वारंट जारी करने वाले कुएं का भी जिक्र है, जहां घोर तपस्या तथा तंत्र मंत्र सिद्धि प्राप्त करनेवाले कुछ महापुरुषों के अवशेष भी प्राप्त हो चुके हैं.
सनद रहे कि नोखा दहासील में एक हवन कुंड भी है, जो पाषाण काल की याद ताजा करता है. इसके बारे में भी बुकानन ने जिक्र किया है. लेकिन, वह भी इसे स्पष्ट नहीं कर पाये. हालांकि, गढ़ परिवार के लोग इसे सर्प यंत्र बताते हैं, जिसका वरदान राज परिवारों को प्राप्त है. इन परिवारों के लोगों को अब तक सांप नहीं काटते.
तेंदुआ पहाड़ पर स्थित शिवलिंग की उत्पत्ति स्वत: हुई थी. यही नहीं आजादी के समय भी रोहतास ही बीज तत्व रहा है. आजादी का बिगुल फूंकने में रोहतास अव्वल रहा है. प्राचीन काल में राजा भोज ने इस इलाके में स्वायत्तता कायम रखी थी. मध्यकाल में अफगान सम्राट शेरशाह ने भी विदेशी मुगलों की पराधीनता स्वीकार नहीं की थी. उस कालखंड में नोखा ने शेरशाह की तलवार छीन ली थी.
यहीं नहीं, ब्रिटिश काल के शुरुआती दौरान में ही रोहतास ने 1764 में ही बगावत कर दी थी. उस समय बगावत अंगरेजों ने साम्राज्य, मनसबदार व फौज इन तीनों खर्चो के वहन के लिये भारी कृषि कर निर्धारण किया था. लेकिन, देशी राजाओं व जमींदारों ने इसका घोर विरोध किया.
चूंकि, नोखा के राजा व जमींदार पहलवान सिंह ने अपनी भूमिका का कर मुक्ति के लिये आंदोलन थामने के लिए घोषित कर दी थी. चूंकि, मुगलकाल के आखिरी वर्ष 1764-65 में कृषि कर वसूली 81,800 पौंड था. इसे इस्ट इंडिया ने 1764-66 में 14,70,000 पौंड कर दिया था. जमींदारी नीलामी की पद्धति लागू कर दी थी.
उस समय रोहतास–भभुआ से सटे अवध प्रांत (उत्तर प्रदेश) के काशी के राजा चेत सिंह, औरंगाबाद के राजनारायण सिंह, सासाराम(गौरक्षणी) के अमिल कुली, दिनारा के धौल सिंह ने अंगरेजों का विरोध नोखा के जमींदार पहलवान सिंह की अगुआयी में किया. इसका नामकरण गुरिल्ला युद्ध किया गया था. पहली बार पहलवान सिंह ने काशी के राजा चेत सिंह के साथ दोस्ती हाथ बढ़ा कर अंगरेजी हुकू मत के माहिर राबर्ट क्लाइव के साथ लड़ाई लड़ी.
उसी समय से पहलवान सिंह नेताजी सुभाष चंद्र बोस की तरह रहस्यमय ढंग से लापता हैं. उल्लेखनीय है कि 17 अगस्त 1922 को भवानी दयाल सिंह (जो जागरण गीत गाते थे) के आग्रह पर महात्मा गांधी ने बरांव में जनसभा को संबोधित किया. उस समय नासरीगंज (राजनडीह) के निशान सिंह, सोहसा करगहर के राम नगीना सिंह, कोआथ के रामेश्वरी प्रसाद प्रमुख थे.
सात अगस्त 1942 के आंदोलन में भारत छोड़ो आंदोलन का शंखनाद हुआ. रेलवे को छात्रों ने उड़ा दिया. 12 व 13 अगस्त 1942 को वंदे मातरम् के नारे लगाते हुए इन पहलवानों ने प्रदर्शन किया. पहलवान सिंह के नेतृत्व में सासाराम के दरगाही राम ने दीवानी न्यायालय पर चढ़ कर झंडा फहराया. अफगान मुसलिम सम्राट शेरशाह की तलवार अब भी नोखा राजघराने के पास है.
इसे राज परिवार राष्ट्रपति को देने की बात कहता है.
लेकिन, अब इस वास्तविक लड़ाई को राजनीतिक रंग देकर वर्चस्व व अपना जनाधार बनाने के लिए मुट्ठी भर लोगों ने प्रयास शुरू किया, जो चिंता का विषय है. बावजूद इन रहस्यों को उधेड़ने की जरूरत है. फ्रांसिस बुकानन की किताबों का अध्ययन कर छिपे रहस्यों को उधेड़ने की जरूरत है. जहां कई रहस्यों से परदा उठ सकता है.