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पढ़ाना छोड़, राजनीति कर रहे शिक्षक

सासाराम (कार्यालय) : शास्त्रों से लेकर पुराणों में गुरु का स्थान सर्वोपरि रखा गया है. यह और बात है कि बदलाव के दौर में अब शिक्षा मिशन नहीं बल्कि प्रोफेशन बन गया है. अब जहां शिक्षा का रूप-रंग बदला, तो जाहिर तौर पर शिक्षकों का व्यवहार भी बदला है. और रही-सही कसर सरकार की दोहरी […]

सासाराम (कार्यालय) : शास्त्रों से लेकर पुराणों में गुरु का स्थान सर्वोपरि रखा गया है. यह और बात है कि बदलाव के दौर में अब शिक्षा मिशन नहीं बल्कि प्रोफेशन बन गया है. अब जहां शिक्षा का रूप-रंग बदला, तो जाहिर तौर पर शिक्षकों का व्यवहार भी बदला है.

और रही-सही कसर सरकार की दोहरी नीति ने बदल दी, जहां नियोजित शिक्षकों को अपने मानदेय सहित अन्य मांगों के लिए आये दिन सड़क से लेकर विधानसभा तक विरोध-प्रदर्शन, रैली-मार्च निकाल रहे हैं. यदि फिर भी कुछ स्कूलों में शांति-व्यवस्था बनी हुई है ,तो वहां पोशाक, छात्रवृत्ति, साइकिल व अन्य योजनाओं के लिए अलग से हंगामा हर साल होता रहता है.

वहीं, अब शिक्षक अध्ययन-अध्यापन के कार्यो में कम रुचि लेते हुए राजनीति करने और संघ के माध्यम से सरकार व प्रशासन पर दबाव बनाने का काम अधिक कर रहे हैं. अब शिक्षक पढ़ाई के बजाय सरकार को घेरने और संघ की दिशा-दशा तय करने में ही ज्यादातर समय व्यतीत कर रहे हैं.

इसका नतीजा स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति कम होती जा रही है. वहीं, शिक्षक भी कक्षाओं में समय बरबाद करने की बजाय संघ को चमकाने और अखबारों में स्थान पाने की होड़ में अव्वल होने में लगे हुए हैं. यह समय का तकाजा ही हैं कि आज से दस वर्ष पूर्व जहां स्कूली शिक्षा संकाय से जुड़े सिर्फ दो ही संघ काम करते थे. अब सात संगठन शिक्षकों के हक-अधिकारों के लिए संघर्ष करने का दावा करते हुए आये दिन सड़कों पर नजर आते हैं.

यह ठीक है कि सरकार की गलत नीतियों से शिक्षकों में जहां एक ओर वेतनमान को लेकर हीन भावना ग्रसित होती जा रही है वहीं यह भी कटु सत्य है कि शिक्षामित्र के रुप में बहाल किये गये अधिकांश शिक्षक अध्यापन व्यवस्था में पूरी तरह फिट नहीं बैठ पा रहे हैं. नहीं तो क्या कारण हैं कि आये दिन किसी न किसी स्कूल में शिक्षकों के व्यवहार को लेकर हंगामा व विरोध-प्रदर्शन होता रहता है.

माध्यमिक शिक्षक संघ

मिडिल व हाइस्कूल से जुड़े स्कूलों की समस्याओं के लिए 1952 में इस संघ गठित किया गया, तब से लेकर आज तक यह संघ अपने कर्मियों के लिए सरकार से लेकर शिक्षा विभाग के बीच एक मजबूत कड़ी के रूप में कार्य करता रहा है. लेकिन, नियोजित शिक्षकों के मामले में संघ अपनी भूमिका अभी तक स्पष्ट नहीं कर सकी है.

नियोजित शिक्षक न्याय मोरचा : नियोजित शिक्षकों के अधिकारों की लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए विधान पार्षद संजीव श्याम ने 2011 में नियोजित संघर्ष मोरचा का गठन किया. जो राज्य भर में नियोजित शिक्षकों को एक मंच पर लाने का प्रयास कर रही है. हालांकि, जिले में यह संगठन अभी मृत प्राप्य है.

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