भागलपुर: नवगछिया अनुमंडल सहित गंगा और कोसी के आस-पास के इलाके के पारिस्थिकी तंत्र में इन दिनों बड़ा बदलाव देखा जा रहा है. खास कर सांपों की बात करें तो पूर्व में बहुतायत में मिल नेवाले देसी प्रजाति के सांप गेंहूवन, कोबरा, धामन, करैत, सांकड़ा लुप्तप्राय सांपों की श्रेणी में आ रहे हैं. दूसरी तरफ अब रसेल वाइपर नामक सांपों की संख्या में इन दिनों बेतहाशा वृद्धि हुई है. सिर्फ एक माह में नवगछिया अनुमंडल क्षेत्र के विभिन्न जगहों से 10 सांपों को वन विभाग की टीम ने पकड़ा है. कई जगहों पर रसेल वाइपर देखे जाने की खबर आ रही है.
कुछ जगहों पर तो लोगों ने इस सांप को मार भी दिया. इलाके के लिए रसेल वाइपर सांप बिल्कुल नया है. वर्ष 2008 के बाद इस प्रजाति के सांप को कुछ सालों तक यदा-कदा ही कहीं देखा जा रहा था. वर्ष 2016 के बाद से इस प्रजाति के सांपों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है. अनभिज्ञता के कारण जब कहीं यह सांप दिखता है, तो लोगों को लगता है कि यह अजगर का बच्चा है और लोग इसके साथ सहज व्यवहार करने लगते हैं. बच्चे-बड़े इस सांप के काफी करीब चले जाते हैं जो बेहद खतरनाक है.
रसल वाइपर को भारत का सबसे जहरीला सांप माना जाता है. यह बात भी सामने आयी है कि भारत में सर्पदंश से होने वाली मौतों में सबसे अधिक रसेल वाइपर ही जिम्मेदार हैं. इस सांप में होमोटॉक्सिन नामक जहर पाया जाता है, जो इंसान के शरीर में मिलते ही रक्त को थक्का बना देता है और मल्टीपल ऑर्गेन फेल्योर से पीड़ित की मौत हो जाती है. कहा जाता है कि अमूमन इस सांप का जहर दस मिनट के अंदर की असर करने लगता है. ससमय समुचित इलाज की व्यवस्था हो, तब भी बचने की संभावना आंशिक ही रहती है.
रसेल वाइपर को भारत में कई जगहों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है. आम तौर पर इसे दबौया, दगाबाज सांप के नाम से जाना जाता है. यह तीन से चार फीट का होता है. शरीर मोटा होता है और सिर चिपटा होता है. यह सांप गहरे पीले रंग का होता है. इसके शरीर पर भूरे रंग के पृष्ठीय धब्बे होते हैं. गर्मियों में यह सांप निशाचर होते हैं, जबकि सर्दियों में दिन के समय भी अक्सर देखे जाते हैं. खतरा महसूस होने पर यह प्रेशर कूकर की सिटी की तरह आवाज करता है.
जानकार बताते हैं कि यह सांप अक्सर हमला कम करता है, यही कारण है लोग इसके साथ सहज हो जाते हैं. लेकिन जब हमला करता है, तो बड़ी फुर्ती के साथ करता है. यह सांप आगे से पीछे की ओर भी हमला करने में सक्षम होता है. किन क्षेत्रों में पाये जाते हैं रसेल वाइपरआम तौर पर रसेल वाइपर ऊंची जगहों, घने जंगलों में नहीं पाये जाते हैं. झाड़ीदार क्षेत्रों, घास वाले मैदानों में या खुले में पाये जाते हैं.
यह भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान में अधिक संख्या में पाया जाता है. भारत के पंजाब, कर्नाटक, उत्तरी बंगाल में यह ज्यादातर पाया जाता है. स्थानीय जानकारों की मानें तो इन दिनों देश के प्रत्येक हिस्से में इसे देखा जा रहा है. यह सांप अंडज नहीं होता है. मादा सांप छह माह तक गर्भधारण करती है और एक साथ 25 से 35 बच्चों को जन्म देती है. यही कारण है कि जहां भी ये गये वहां तेजी से इनकी संख्या बढ़ी.
जानकारों ने बताया कि वर्ष 2008 में कोसी में आयी भीषण बाढ़ के बाद इस सांप को इक्के-दुक्के स्थानों पर देखा जाने लगा. नवगछिया इलाके में वर्ष 2016 में आयी बाढ़ के बाद इनकी संख्या में तेजी से इजाफा हुआ. माना जाता है कि गंगा व कोसी की बाढ़ में रसेल वाइपर प्रजाति के सांप बहकर यहां आये. यह सांप है काफी खतरनाक, बच कर रहें नवगछिया के सर्प मित्र दिलीप कहते हैं कि इस सांप के नजदीक जाने से भी लोगों को बचना चाहिए. आम तौर पर ये आदतन हमलावर नहीं होते हैं, लेकिन अगर इन्हें खतरा महसूस हुआ तो ये मानव जीवन के लिए काफी खतरनाक साबित होते हैं. कहीं भी लोगों को यह सांप दिखे, तो तुरंत एक्सपर्ट या वन विभाग को सूचित करें. इससे दूरी बना कर ही रखें.
नवगछिया के वन क्षेत्र पदाधिकारी पृथ्वीनाथ सिंह ने कहा कि निश्चित रूप से सामान्यतः देखे जाने वाले देसी प्रजाति के सांपों की संख्या में कमी आयी है और रसेल वाइपर की संख्या बढ़ रही है. जहां भी यह सांप देखा गया, विभाग ने सफलतापूर्वक रेस्क्यू किया है. अभ्यारण्य में किसी भी जीव की संख्या में वृद्धि खतरे वाली बात नहीं है, लेकिन लोगों को सचेत रहना चाहिए और रसेल वाइपर दिखते ही विभाग को सूचित करना चाहिए.
आदिकाल से मानवीय सभ्यता में सांपों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है. अंग क्षेत्र की बात करें तो यहां की लोकगाथा बिहुला विषहरी का मुख्य फोकस सर्प पूजा है. यहां की लोक कला, लोक संस्कृति, लोकगीतों में सांप रचे बसे हैं. प्रायः गांवों की बात करें तो वहां कहीं न कहीं बिषहरी मंदिर जरूर है. विगत 15 वर्षों में इलाके में सांपों की दुनिया में आमूलचूल परिवर्तन हुआ है. अब दूर-दराज के प्रांतों में पाये जाने वाले सांप विषधर रसेल वाइपर यहां देखे जा रहे हैं, तो दूसरी ओर देसी सांप लुप्तप्राय हो गये हैं. अब यहां की पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अच्छा साबित होगा या बुरा, यह समय बतायेगा.