ड्राइवर ने ट्रेन रोक बचायी जान

साहस.पारिवारिक कलह से तंग बुजुर्ग करना चाहते थे आत्महत्या जाको राखे साइयां, मार सके ना कोई सिमरी : जाको राखे साइयां, मार सके ना कोई, यह कहावत पूर्व मध्य रेलवे अंतर्गत सहरसा-मानसी रेलखंड के सिमरी बख्तियारपुर स्टेशन के रानीबाग रेलवे ढाला के निकट गुरुवार दोपहर चरितार्थ हुई. हुआ यूं कि हर रोज की तरह पटना-सहरसा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 23, 2017 5:13 AM

साहस.पारिवारिक कलह से तंग बुजुर्ग करना चाहते थे आत्महत्या

जाको राखे साइयां, मार सके ना कोई
सिमरी : जाको राखे साइयां, मार सके ना कोई, यह कहावत पूर्व मध्य रेलवे अंतर्गत सहरसा-मानसी रेलखंड के सिमरी बख्तियारपुर स्टेशन के रानीबाग रेलवे ढाला के निकट गुरुवार दोपहर चरितार्थ हुई. हुआ यूं कि हर रोज की तरह पटना-सहरसा इंटरसिटी एक्सप्रेस गुरुवार दोपहर एक बजकर बीस मिनट पर सिमरी बख्तियारपुर स्टेशन पहुंची. कुछ देर रुकने के बाद ट्रेन सोनवर्षा कचहरी के लिए स्टेशन से खुली. ट्रेन के खुलते ही ट्रेन ने स्पीड पकड़ ली. ट्रेन कुछ दूर गयी ही थी कि रानीबाग रेल ढ़ाला से कुछ पहले जैसे ही पहुंची तो ट्रेन के ड्राइवर को रेल पटरी पर एक व्यक्ति सोया दिखा. पहले तो ड्राइवर ने ट्रेन की सीटी बजायी,
लेकिन फिर भी व्यक्ति ट्रैक से नहीं उठा. वहीं तब तक ट्रेन सोये व्यक्ति के काफी नजदीक पहुंच गयी और ड्राइवर ने समय ना गंवाते हुए सूझबूझ का इस्तेमाल कर ब्रेक लगा दी. जिससे ट्रेन लेटे व्यक्ति के पास जा कर रुकी. ट्रेन रुकते ही आसपास के ग्रामीण भी रेल ट्रैक पर पहुंच गये और सभी ने मिलकर ट्रैक पर लेटे बुजुर्ग को ट्रैक से उठाया. आसपास के ग्रामीणों ने बुजुर्ग से ट्रैक पर लेटने का कारण पूछे जाने पर उसने बताया कि वह जिंदगी से तंग आकर आत्महत्या करना चाहता था.
वहीं बुजुर्ग ने आत्महत्या की वजह पारिवारिक कलह को बताया. उसने बताया कि उसे तीन पुत्र और चार पुत्री है. लेकिन बुढ़ापे की इस पनघट पर उन्हें कोई देखने वाला नहीं है और परिवार के सदस्यों ने उसे घर से निकाल दिया है. बुजुर्ग ने अपना नाम मो ईशा बताया और घर बनमा इटहरी अंतर्गत जमाल नगर बताया. इधर बुजुर्ग को ट्रैक पर से उठाकर लाये मो शमशाद आलम, मो रेहान, मो मसूद, मो सद्दाम हुसैन, मो शादाब आदि ने बुजुर्ग की खैरियत जानी और उन्हें हर मुमकिन सहायता करने का आश्वासन दिया. वहीं घर जाने के सवाल पर बुजुर्ग ने घर जाने से इंकार कर दिया और कहा नहीं जाना, मुझे जहन्नुम में.
इधर इस घटना के बाद से पूरे अनुमंडल में यह चर्चा की विषय बनी है. लोगों का कहना है कि अनेक कष्टों को सहकर माता पुत्र को जन्म देती है और पिता अपने स्नेह रूपी अमृत से सींचकर उसे बड़ा करता है. माता-पिता के स्नेह व दुलार से बालक उन संवेदनाओं को आत्मसात करता है और जिससे उसे मानसिक बल प्राप्त होता है. वहीं हमारी अनेक गलतियों व अपराधों का वह कष्ट सहते हुए भी क्षमा करते हैं और सदैव हमारे हितों को ध्यान में रखते हुए सद्‌मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं. पिता का अनुशासन हमें कुसंगति के मार्ग पर चलने से रोकता है एवं सदैव विकास व प्रगति के पथ पर चलने की प्रेरणा देता है. लेकिन इस कलियुग में पिता के उपकारों को बच्चे भूल रहे है. जिससे पिता की आत्महत्या करने तक की नौबत आ रही है. लोगों के अनुसार यदि कोई डॉक्टर, इंजीनियर व उच्च पदों पर आसीन होता है तो उसके पीछे उसके माता-पिता का त्याग, बलिदान व उनकी प्रेरणा की शक्ति निहित होती है. लेकिन यह समझने के बजाय आज के बच्चे उन्हें बोझ समझते है. जो चिंताजनक हैं.

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