अप्रैल, मई के बाद जून भी बीता, ओवरब्रिज का नहीं हुआ टेंडर
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अब तो रेलवे भी बोलने लगा है नेताओं की भाषा
अप्रैल, मई के बाद जून भी बीता, ओवरब्रिज का नहीं हुआ टेंडर सहरसा : बंगाली बाजार ओवरब्रिज निर्माण एक बार फिर कहानी की अगली कड़ी बनती जा रही है. अब रेलवे के अधिकारी भी राजनेताओं की भाषा बोलने लगे हैं. 20 वर्ष पुरानी योजना को जनवरी में एक बार फिर स्वीकृति व राशि आवंटन के […]
सहरसा : बंगाली बाजार ओवरब्रिज निर्माण एक बार फिर कहानी की अगली कड़ी बनती जा रही है. अब रेलवे के अधिकारी भी राजनेताओं की भाषा बोलने लगे हैं. 20 वर्ष पुरानी योजना को जनवरी में एक बार फिर स्वीकृति व राशि आवंटन के बाद मार्च महीने तक टेंडर व अप्रैल से निर्माण कार्य शुरू होने की बात कही गयी थी. लेकिन अप्रैल, मई के बाद जून भी बीत गया. लेकिन अब तक टेंडर का भी कहीं कोई अता-पता नहीं है.
रेलवे कहता है, नहीं है कोई अड़चन : टेंडर व निर्माण कार्य में विलंब होने की बात पूछने पर रेलवे के अधिकारी लगातार बताते रहे हैं कि बंगाली बाजार के रेलवे समपार संख्या 31 ए स्पेशल पर बनने वाले ओवरब्रिज निर्माण में कहीं कोई अड़चन नहीं है. राज्य सरकार से भी अनापत्ति प्रमाण मिल गया है. इरकॉन कंपनी से बात चल रही है. रेल मंत्रालय से स्वीकृति मिलते ही इरकॉन से कंट्रैक्ट साइन होगा. उसके बाद टेंडर व निर्माण कार्य की प्रक्रिया शुरू हो जायेगी. रेलवे अधिकारी का यह बयान मई महीने में था और अब जुलाई में भी यही बात दोहरा रहे हैं. सवाल है कि रेलवे यह क्यों नहीं बता रहा कि रेल मंत्रालय निर्माण कार्य की स्वीकृति क्यों नहीं दे रहा है या देने में विलंब क्यों कर रहा है.
बढ़ती जा रही है ओवरब्रिज की जरूरत: इधर जनसंख्या व वाहनों की संख्या बढ़ने के साथ शहर में ओवरब्रिज की जरूरत लगातार बढ़ती जा रही है. चारों ओर बाजार के विस्तार होने से भी इसकी आवश्यकता काफी बढ़ गयी है. मालगाड़ी व रेलगाड़ियों के आने-जाने अथवा शंटिंग के क्रम में हर बार बंगाली बाजार का रेलवे फाटक गिरता है और पूरे शहर में महाजाम की स्थिति बन जाती है. बंगाली बाजार में लगने वाले जाम का असर डीबी रोड, दहलान रोड, धर्मशाला रोड, चांदनी चौक, भीआइपी रोड, प्रशांत सिनेमा रोड, बस स्टैंड रोड, गंगजला रोड, थाना चौक तक पड़ता है. जाम में फंस कर बच्चे से लेकर बूढ़े तक कराहते रहते हैं. एंबुलेंस तक को आगे बढ़ने का रास्ता नहीं मिलता है. वाहनों द्वारा फैलाये जाने वाले ध्वनि व वायु प्रदूषण से लोग लगातार बीमार व सुस्त पड़ते जा रहे हैं.
1997 से 2017…हाथ रहा खाली
ओवरब्रिज के प्रस्ताव को वर्ष 1997 में ही तत्कालीन रेलमंत्री नीतीश कुमार के कार्यकाल में स्वीकृति मिली थी. दस करोड़ रुपये की प्राक्कलित राशि में से प्रथम चरण में दो लाख रुपये मिले थे. तत्कालीन रेल राज्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने शिलान्यास भी किया. लेकिन काम शुरू नहीं हो सका. दूसरी बार साल 2005 में तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद ने बड़ी रेल लाइन के उद्घाटन के समय इसी ओवरब्रिज का फिर से शिलान्यास किया. लेकिन इस बार भी कोई फायदा नहीं हुआ. साल 2013 में तत्कालीन क्षेत्रीय सांसद शरद यादव के प्रयास से तत्कालीन रेल राज्यमंत्री अधीर रंजन चौधरी ने तीसरा शिलान्यास किया.
इस बार 80 करोड़ रुपये का बजट बना. प्रथम चरण में 10 लाख रुपये दिये गये. मिट्टी जांच भी हुई. लेकिन उससे आगे काम नहीं बढ़ सका. बीते वर्ष वर्तमान सांसद ने रेलमंत्री व अधिकारियों से मिल बात आगे बढ़ायी तो रेलवे ने स्वीकृति पत्र के साथ निर्माण कार्य के लिए प्रथम चरण की राशि भी आवंटित कर दी. स्वीकृति पत्र के अनुसार मार्च 2017 तक 20 फीसदी काम हो जाना था. लेकिन प्रारंभिक प्रक्रिया टेंडर के नहीं हो पाने से काम एक बार फिर ठंडे बस्ते में जाता दिख रहा है.
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