महादलितों में अभी भी समाया है डर

कन्हैयाजीप्रभात खबर डिजिटल प्रीमियम स्टोरीSpies In Mauryan Dynasty : मौर्य काल से ही चल रही है ‘रेकी’ की परंपरा, आज हो तो देश में मच जाता है बवालRajiv Gauba : पटना के सरकारी स्कूल से राजीव गौबा ने की थी पढ़ाई अब बने नीति आयोग के सदस्यUPS: पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा फिर गर्म, यूपीएस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 9, 2014 6:05 AM

कन्हैयाजी

चुनाव आयोग ने चलाया है बेफिक्र हो मतदान करने का अभियान

सहरसा : मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में महादलितों मतदाताओं की संख्या तकरीबन एक लाख 90 हजार है. अपने आप में यह वर्ग एक बड़ा वोट बैंक है. जीत-हार के फैसले को यह वोट प्रभावित कर सकता है. लिहाजा राजनैतिक दलों अथवा निर्दलीय प्रत्याशियों की नजर इन पर भी है. महादलित वर्गो की एक खासियत तो है कि इनका मत एकमुश्त किसी दल अथवा प्रत्याशी विशेष के पक्ष में ही जाता है.

महादलितों के संबंध में यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अनुसूचित जातियों का वर्ग लंबे समय तक मतदान जैसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया से बिल्कुल अलग रहा. हर हमेशा इस वर्ग पर दबंगों का ही अधिपत्य चलता रहा. इतिहास बताता है कि यह वर्ग प्रलोभन में आ या दबंगों के डर से ही मतदान किया करते थे. हालांकि पिछले कुछ वर्षो में इस वर्ग में काफी हद तक जागरूकता आयी है. ये चुनाव के महत्व को समझने लगे हैं और लोकतंत्र के महापर्व में बढ़-चढ़ कर इनकी भागीदारी होने लगी है. महादलित अब प्रलोभन में नहीं आते और उनके वोटों की खरीद-बिक्री भी नहीं के बराबर हो पाती है.

मधेपुरा की घटना से समाया डर

वोटिंग के प्रति जागरूक होने के बाद अभी भी महादलित वर्ग समाज की मुख्य धारा से दूर ही हैं. इनके विकास की गति अभी रफ्तार पकड़ ही रही है. गाहे-बगाहे अभी भी इन पर दबंगों की दबंगई चलती ही है. इसी महीने के तीन व चार अप्रैल को मधेपुरा जिले के उदाकिशुनगंज प्रखंड के लश्करी महादलित टोले में महादलितों के साथ घटी घटना से ये एक बार फिर सहम गये हैं. कहते हैं वे भी आजाद हो अपनी जिंदगी जीना चाहते हैं, पर दबंग उनकी आजादी के बीच आ ही जाते हैं. दिन भर मेहनत-मजदूरी कर परिवार का पेट पालने व सुकून की नींद भी सोने नहीं देते हैं.

आयोग ने भी चलाया अभियान

चुनाव के दौरान महादलितों पर दबंगों के कहर को ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग ने भी लगातार अभियान चलाया. इस समुदाय का निश्चित रूप से मत पड़े, इसके लिए प्रेरक व विकास मित्रों को प्रशिक्षित किया गया. वे महादलितों के घर-घर जा उन्हें मत का महत्व बता बेखौफ मतदान करने की अपील कर रहे हैं. आयोग के निर्देश पर डीएम व एसपी ने भी महादलित टोलों का भ्रमण कर उन्हें निर्भिक हो स्वेच्छा से मतदान करने को प्रेरित किया.

एकजुट हुए तो बने वोट बैंक

गरीबी, लाचारी व कुछ अपनी बुरी आदतों के कारण ये दशकों तक अपना वोट प्रलोभन पर बेचते रहे. मांग ज्यादा होने के कारण इन्हें समुदाय के ताकत का एहसास हुआ और ये पहले अपनी जातियों में संगठित हुए और स्वयं के उत्थान के लिए वोट डालना शुरू किया. उन्हें महादलित समुदाय के वोट बैंक होने का ज्ञान हुआ और आज वे अपने विवेक से मताधिकार का प्रयोग करते हैं, लेकिन संख्याबल में मजबूत स्थिति होने के बाद भी पिछड़े हालात में जीवन यापन कर रहे महादलित समुदाय को आज भी दबंगों का कहर सताता है.

Next Article

Exit mobile version