पुष्यमित्र
सहरसा : इन दिनों सहरसा के लोग बेचैन हैं. उनके एक पसंदीदा अफसर सौरभ जोरवाल का तबादला हो गया है. महज छह महीने में इस प्रशिक्षु आइएएस ने इस शहर में ऐसे-ऐसे काम किये जो तीस-तीस साल से अटके थे. चाहे सहरसा की सब्जी मंडी को अतिक्रमण से मुक्ति दिलाने का काम हो या मत्स्यगंधा झील में बोटिंग शुरू कराने का काम या शहर की ट्रैफिक व्यवस्था सुधारने का. वैसे तो यह सब छोटे-छोटे काम हैं, मगर जंग खायी व्यवस्था में यही काम नहीं हो पा रहे थे और 30 साल से सहरसा वालों के लिए सरदर्द साबित हो रहे थे. ऐसे में एक एसडीओ स्तर के पदाधिकारी द्वारा जादू-मंतर की तरह इन समस्याओं को सुलझा देना लोगों की निगाह में उन्हें हीरो बना रहा है. लोग किसी सूरत में सौरभ का तबादला रुकवाना चाहते हैं और इसके लिए राजनेताओं की मदद भी ली जा रही है.
2014 के बैच के आइएएस सौरभ मूलतः राजस्थान के रहने वाले हैं. साहित्य के शौकीन सौरभ की पसंदीदा किताब फणीश्वरनाथ रेणु की मैला आंचल रही है, जिस वजह से उन्होंने बिहार कैडर चुना और उन्हें पूर्णिया में पोस्टिंग भी मिली. अगली पोस्टिंग सहरसा की थी, वह भी कोसी का ही इलाका था. यहां आकर उन्होंने जंग खायी प्रशासनिक व्यवस्था को कुरेदना शुरू किया. उनका पहला मोरचा था सहरसा की सब्जी मंडी को जाम से निजात दिलाना. जो लोग सहरसा नहीं गये हैं, वे सोच भी नहीं सकते कि सब्जी मंडी की दुर्दशा किस स्तर की थी.
रेलवे स्टेशन से निकलने ही सब्जी मंडी मिलती थी और मंडी ऐसी कि साइकिल निकालना भी मुसीबत का काम था. कहते हैं सौरभ ने वहां के व्यवसाइयों से बात कर एक सुपर मार्केट बनवाया और सब्जी विक्रेताओं को वहां शिफ्ट कर दिया. अचानक शहर का सबसे गंदा और जाम वाला इलाका खुला-खुला लगने लगा. लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि अगर यह काम इतना आसान था तो पहले क्यों नहीं हुआ. मगर सौरभ रुके नहीं. अगला मोरचा मत्स्यगंधा झील के पुनरोद्धार को बनाया. सूखी हुई और गंदगी से भरी झील जो एक बेकार तालाब में बदल गयी थी, उसका कायाकल्प हुआ और अक्तूबर में वहां बोटिंग होने लगी. यह भी 30 साल से अटका हुआ मामला था. मई में सहरसा आये सौरभ ने कई मोरचे पर काम किया और सफलता हासिल की. चाहे शहर की ट्रैफिक का मसला हो, या राशन डीलरों की समस्या. वे उस वक्त देश भर में चर्चा में आ गये जब हेलमेट और जूते नहीं पहने होने के कारण उन्होंने अपने बॉडीगार्ड से ही जुर्माना वसूल लिया गया. इस खबर को कई मीडिया संस्थानों में जगह मिली. शहर की जलनिकासी की समस्या जब उठी तो उन्होंने झट से गूगल मैप का सहारा लिया और समस्या हल हो गयी.
मतलब यह कि सौरभ ने अपने छोटे से कार्यकाल में यह साबित कर दिया कि अगर अफसर काम करना चाहे तो राह की कमी नहीं है. और ऊपरी दबाव की बात भी महज बहानेबाजी ही है. उनका तबादला नीतीश जी के गृह जिले में नगर आयुक्त के रूप में किया गया है. जाहिर सी बात है कि यह एक इनाम ही है. मगर फिर भी सहरसा वालों के लिए उनका तबादला किसी झटके से कम नहीं है. उन्हें लगता है कि माफियाओं ने उनका तबादला करा दिया है. वे काश एक साल और रह लेते तो शहरवासियों को कई समस्याओं से छुटकारा मिल जात. सोशल मीडिया पर लगातार उनका तबादला रोके जाने के कैंपेन चल रहे हैं. लोग उनके समर्थन में अपना प्रोफाइल बदल रहे हैं. काश ऐसे अधिकारी और भी होते, ताकि सहरसा वालों को यह नहीं लगता कि सौरभ जायेंगे तो पता नहीं कौन आयेगा.
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