बीमार पड़े, तो सहरसा में डालें डेरा
सहरसा : लोकनायक जय प्रकाश नारायण की जयंती पर 11 अक्तूबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश भर में ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ शुरू की थी. जिसके तहत सभी सांसदों ने अपने लोकसभा क्षेत्र के एक पंचायत को गोद लेने की घोषणा की थी. योजना के तहत उस पंचायत को सभी मूलभूत सुवधाओं से […]
सहरसा : लोकनायक जय प्रकाश नारायण की जयंती पर 11 अक्तूबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश भर में ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ शुरू की थी. जिसके तहत सभी सांसदों ने अपने लोकसभा क्षेत्र के एक पंचायत को गोद लेने की घोषणा की थी. योजना के तहत उस पंचायत को सभी मूलभूत सुवधाओं से लैस कर आदर्श ग्राम पंचायत स्थापित करना था.
इसी क्रम में खगड़िया लोकसभा क्षेत्र के सांसद चौधरी महबूब अली कैसर ने जिले के सिटानाबाद पंचायत को गोद लिया था. लेकिन तीन वर्षों की अवधि के बाद आज पंचायत गोद से उतर भी नहीं पाया.
अनुकरणीय बनाना था उद्देश्य: हर संसदीय क्षेत्र में सांसद आदर्श ग्राम योजना शुरू करने के पीछे प्रधानमंत्री का उद्देश्य था कि यह अन्य पंचायतों के लिए आदर्श बने. यहां सभी सरकारी योजनाओं को मूर्त रूप दिया जा सके. इस पंचायत में भौतिक संरचना एवं शैक्षणिक ढांचे को ठीक किया जा सके. यहां हुए विकास को देख आसपास के पंचायत भी उसका अनुकरण करें और उस पंचायत के प्रतिनिधि व लोगों में भी योजना एवं सुविधा प्राप्त करने की ललक बढ़े. ऐसे ही गांवों का विकास हो जाएगा. लोग सुविधा संपन्न हो जाएंगे. प्रधानमंत्री ने इसके लिए दो वर्षों का लंबा समय देते कहा था कि 2019 के लोकसभा चुनाव तक हर सांसद कम से कम तीन पंचायत को गोद लेकर उसकी दशा बदल दें तो गांवों की तसवीर व तकदीर भी बदल जाएगी. साथ ही विकास को भी गति मिल जाएगी.
सुविधा नाम की कोई चीज ही नहीं है यहां: खगड़िया लोकसभा क्षेत्र के सांसद लोजपा के वरीय नेता चौधरी महबूब अली कैसर ने सहरसा जिले के सिमरी बख्तियारपुर प्रखंड के सिटानाबाद उत्तरी पंचायत को गोद लिया था. पीएम के उद्देश्य के अनुसार ऐसा लग रहा था कि दो वर्षों में पंचायत की सूरत बदल जाएगी. दूसरे पंचायत के जनप्रतिनिधि को इसका अनुकरण करना होगा. लेकिन सांसद की उदासीनता से तीन वर्षों में यह पंचायत चंद कदम चलने की बात तो दूर, खड़ा भी नहीं हो सका है. सांसद की ओर से इस पंचायत में एक अदद चापाकल तक नहीं गाड़ा जा सका है. सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पेयजल तो काफी दूर की बात है. पंचायत के लोग ठगे-ठगे से नजर आ रहे हैं.
75 फीसदी लड़कियां नहीं पातीं उच्च शिक्षा
पंचायत में एक भी हाइस्कूल नहीं है. उच्च शिक्षा की पढ़ाई के लिए छात्र-छात्राओं को सात किलोमीटर दूर बलवाहाट जाना पड़ता है. लड़के तो साइकिल से अथवा समूह बनाकर पैदल चले भी जाते हैं. लेकिन मिड्ल स्कूल पास सभी लड़कियां नहीं जा पाती हैं. ग्रामीणों के अनुसार, बमुश्किल 25 फीसदी लड़कियां ही नवमी व दसवीं की पढ़ाई के लिए बलवाहाट जा पाती है. 75 प्रतिशत लड़कियां मिड्ल स्कूल के बाद पढ़ाई छोड़ देती हैं. वह हाइस्कूल की पढ़ाई नहीं कर पाती हैं. परिवार के लोग भी उसे घर के काम-काज में लगा देते हैं.
मिड्ल स्कूल तक जाने का नहीं है रास्ता
सिटानाबाद उत्तरी पंचायत में आठ मध्य विद्यालय हैं. इनमें से मध्य विद्यालय कुमेदान टोला को छोड़ किसी विद्यालय की स्थिति अच्छी नहीं है. सभी स्कूल प्रधानाध्यापक व शिक्षकों की मर्जी से ही चलते हैं. जब मन हुआ आये, नहीं तो कोई बात नहीं. बच्चे दिन का भोजन (एमडीएम) खाने स्कूल आते हैं तो अभिभावक उन्हें पोशाक व छात्रवृत्ति योजना की राशि लाने ही स्कूल भेजते हैं.
पढ़ाई से किसी का कोई सरोकार नहीं है. उत्क्रमित मध्य विद्यालय, घोरमाहा की दशा काफी खराब है. एक भी बच्चे पोशाक में नहीं होते हैं. वे स्कूल के खुले छत पर खेलते रहते हैं. उन्हें देखने-रोकने वाला कोई नहीं होता. इस स्कूल की बड़ी बिडंबना यह है कि स्कूल तक जाने के लिए कोई सड़क भी नहीं है. बच्चे सहित छात्र-छात्राओं को गांव की पगडंडी व लोगों के घरों से हो स्कूल जाना होता है.
गोद लिया अौर बिगड़ गयी किस्मत!
पंचायत के मो मो इदरीश, मो जमाल, मो इफ्तखार, मो सलीम, शिवशंकर, चंदन, प्रवीण व अन्य ने कहा कि सांसद के इस पंचायत को गोद लेने के बाद ऐसा लगा था कि अब शीघ्र ही उनका पंचायत आदर्श पंचायत बन जाएगा. लेकिन तीन वर्षों के बाद भी परिणाम ठीक विपरीत है.
लोगों ने कहा कि जैसे किसी बच्चे को गोद में लेने के बाद वहां मौजूद शेष लोग उसको लेकर पूरी तरह निश्चिंत हो जाते हैं. उस बच्चे की चिंता और किसी को नहीं होती. वही हाल इस पंचायत का भी हो गया है. राज्य सरकार भी यहां कोई योजना नहीं देना चाहती. अधिकारी भी यहां नहीं आते. 13 में से अब तक मात्र तीन वार्ड ओडीएफ हो सका है. शुद्ध पेयजल की योजना आती नहीं दिख रही है. यहां की समस्याओं पर कोई ध्यान ही नहीं देता है. सब कहते हैं कि यह तो सांसद का आदर्श गांव है. वही करेंगे.
नहीं हैं बैंक, सीएसपी लेता है अधिक पैसे
सांसद आदर्श ग्राम सिटानाबाद के 50 फीसदी लोग दिल्ली, पंजाब, कोलकाता, जम्मू सहित देश के अन्य प्रदेशों में मजदूरी करते हैं. इधर पंचायत के सभी लोगों का किसी न किसी बैंक में खाता खुला हुआ है. जिसमें बाहर रहने वाले लोग पैसे कमाकर डालते रहते हैं. लेकिन यहां उन पैसों को निकालने के लिए गांव में कोई बैंक या एटीएम नहीं है. लिहाजा लोगों को पैसे निकासी के लिए सरडीहा, बलवाहाट, सिमरी बख्तियारपुर, बलही, सोनवर्षा कचहरी के विभिन्न बैंकों में जाना होता है. गांव में दो सीएसपी हैं. लेकिन वहां निकासी की जाने वाली राशि का दो प्रतिशत हिस्सा सीएसपी संचालक ले लेता है.
इलाज के लिए जाना पड़ता है बख्तियारपुर या सहरसा
सांसद के गोद लिए पंचायत सिटानाबाद उत्तरीमें कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं है. सिटानाबाद दक्षिणी में है भी तो किसी काम का नहीं. वहां भी न तो डॉक्टर आते हैं और न ही कोई नर्स.
स्वास्थ्य संबंधी थोड़ी सी भी परेशानी होने पर लोगों को आठ किलोमीटर दूर प्रखंड मुख्यालय सिमरी बख्तियारपुर जाना पड़ता है या फिर 17 किलोमीटर दूर जिला मुख्यालय सहरसा. ग्रामीण बताते हैं कि प्रसूताओं की डिलीवरी या अन्य आवश्यक समय पर उन्हें 10 दिन पूर्व ही बख्तियारपुर या सहरसा जाकर डेरा डालना पड़ता है.