पिछले तीन माह में घर से निकले 17 लोग लौट कर नहीं आये, मौत
तीन माह में 17 की मौत, 28 जख्मी वर्ष 2017 में सड़क हादसे के 106 मामले हुए दर्ज हादसे में 62 लोगों की मौत सहरसा : सड़क सुरक्षा को लेकर जिला प्रशासन के द्वारा लगातार जागरूकता कार्यक्रम एवं सघन जांच अभियान चलाया जा रहा है. वहीं अधिकांश वाहन चालक हैं किकिसी भी नियम को मानने […]
तीन माह में 17 की मौत, 28 जख्मी
वर्ष 2017 में सड़क हादसे के 106 मामले हुए दर्ज
हादसे में 62 लोगों की मौत
सहरसा : सड़क सुरक्षा को लेकर जिला प्रशासन के द्वारा लगातार जागरूकता कार्यक्रम एवं सघन जांच अभियान चलाया जा रहा है. वहीं अधिकांश वाहन चालक हैं किकिसी भी नियम को मानने के लिए तैयार ही नहीं है. जुर्माना देकर आगे निकल जाते है या जांच की नाम सुन कहीं रुक जाते हैं. खुद में सुधार लाने को तैयार ही नहीं हैं. चालकों की लापरवाही से प्रतिदिन जिले में कहीं न कहीं सड़क दुर्घटना हो रही है. जान जा रही है. कई जख्मी होकर अस्पताल का चक्कर लगा रहे हैं. स्थानीय लोग या जिला प्रशासन सड़क हादसे की इतनी आदी हो चुकी हैं कि अधिकारी भी घटना स्थल पर आपदा विभाग से मिलने वाले पारिवारिक लाभ की राशि का चेक लेकर ही पहुंचते हैं. खास बात है कि हादसे में पीड़ित परिजन भी मुआवजे की राशि मिलने तक ही आक्रोशित होते हैं.
जानकारी के अनुसार, वर्ष 2018 के तीन माह में सड़क दुर्घटना में 17 लोगों की मौत हो चुकी है तो 28 व्यक्ति जख्मी हुए थे. यह आंकड़ा तो विभिन्न थाना में दर्ज मामले का है तो कई मामले थाना भी नहीं पहुंचती है. वहीं वर्ष 2017 में जिले के मुख्य व संपर्क मार्ग पर तीन सौ के करीब सड़क हादसे घटित हुए हैं. जबकि अाधिकारिक रूप से 106 मामले विभिन्न थाना में दर्ज हो चुके हैं. इन सड़क हादसों में 62 लोगों की मौत होने से कई मां की कोख उजड़ गयी है. वहीं 109 लोग गंभीर रूप से जख्मी हो गये.
सावधानी बरतने की है जरूरत : सड़क हादसों में सावधानी नहीं बरतना सबसे बड़ा कारण है. भीड़ भाड़ वाली जगह हो या संकरी गली, लहरिया कट वाहन चलाने वाले व ओवरटेक करने वालों की तादाद ज्यादा है. चालक इसे अपना स्टाइल मानते हैं. वही फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस भी सड़क हादसे की एक बड़ी वजह है. एक बड़ा कारण ये भी सामने आया है कि शहर की कुछ सड़कों पर ही जरूरत से ज्यादा ट्रैफिक का बोझ है. जिले से गुजरने वाली एनएच 106-107 की सड़कें ऐसी हैं जिन पर 80 फीसदी ट्रैफिक का बोझ है.
हादसों के लिए बदनाम खतरनाक स्पॉट्स की पहचान करके उन्हें ठीक करने के लिए प्रशासन, जनप्रतिनिधि व नागरिक के साथ मिल कर योजना बनाये जाने की जरूरत है. मुख्य मार्गों पर बैरियर भी लगाये जाने की आवश्यकता है. जिससे वाहनों के गड्डे में गिरने जैसी घटनाएं रोकी जा सकेंगी. जिले के लगभग 10 से 12 जगहों को दुर्घटना क्षेत्र के रूप में चिह्नित किए गए है. पथ निर्माण विभाग वहां दुर्घटना क्षेत्र से संबंधित बोर्ड लगाने का भी कार्य कर रहा है.
औसतन दो लोग लौट कर नहीं आते
पुलिस व परिवहन विभाग से मिली रिपोर्ट सड़क हादसे की भयानक तस्वीर पेश करती है. जिले में प्रत्येक महीने 25 सड़क हादसे होते हैं, जिनमें औसतन दो लोगों की जान चली जाती है. यह संख्या प्रत्येक वर्ष दर्जनों में पहुंच जाती है. प्रत्येक महीना कोई मां अपने बेटे, तो पत्नी भी पति का इंतजार करती रह जाती है. प्रभात खबर द्वारा किये गये पड़ताल में पता लगा कि 70 फीसदी सड़क हादसों में गाड़ी चलाने वाले की ही गलती होती है. और उसमें भी सबसे ज्यादा हादसे ओवरटेक करने के वजह से होती है. बहुत सी जगह ऐसी हैं जहां एक ही जगह पर लगातार हादसे होते रहते हैं और सड़क की डिजाइन में खामी इसकी बड़ी वजह है.