बच्चों में बोने पड़ेंगे संस्कार के बीज, बुजुर्ग हो रहे अपनों के ही शिकार

हुजूर, पैसे के लिए बेटा करता है पिटाई, आत्महत्या की देता है धमकी अनुशासन की कमी से लगातार बढ़ती जा रही हैं ऐसी समस्याएं सहरसा : हुजूर, पैसे के लिए बेटा पिटाई करता है. जमीन बेचने के बाद दोनों बेटों को बराबर हिस्सा देकर कुछ अपने लिए रखा तो संतान उसे भी हड़पना चाह रहे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 28, 2018 5:40 AM

हुजूर, पैसे के लिए बेटा करता है पिटाई, आत्महत्या की देता है धमकी

अनुशासन की कमी से लगातार बढ़ती जा रही हैं ऐसी समस्याएं
सहरसा : हुजूर, पैसे के लिए बेटा पिटाई करता है. जमीन बेचने के बाद दोनों बेटों को बराबर हिस्सा देकर कुछ अपने लिए रखा तो संतान उसे भी हड़पना चाह रहे हैं. समझाने पर मारपीट कर जख्मी कर दिया है. भले ही यह बातें पढ़ने में थोड़ा अटपटा और आश्चर्यजनक लगे. लेकिन यह सच है. महानगरों की तरह इस छोटे शहर सहरसा में कतिपय उदंड व संस्कारहीन बच्चों द्वारा ऐसी कहानियां गढ़ी जा रही है. कभी माता-पिता को भगवान तुल्य मान कर संतान उनका अत्यधिक सम्मान व सत्कार करते थे. आज संतानों के हाथों अपने बुजुर्ग माता-पिता उत्पीड़न की यातनाएं सह रहे हैं. हृदय विदारक ऐसी गाथाएं इस तथ्य के प्रमाण हैं कि आज की चंद संतानें अपने माता-पिता के प्रति किस प्रकार बेरहम हो चुकी है. वर्तमान में अपनी संतान के हाथों बुजुर्ग बुरी तरह उपेक्षित हैं.
जिन संतानों से जीवन की संध्या में बूढ़े मां-बाप अपनी देखभाल और सेवा की उम्मीद रखते हैं. आज वही संतान उन्हें दुखी कर रहे हैं. पेड़ों, पत्थरों से लेकर जानवरों तक को पूजने वाले लोग अपने बुजुर्गों का ही ख्याल नहीं रख पा रहे हैं. कभी मां बाप को भगवान मानने वाले बेटे अब उन्हें बोझ मानने लगे हैं. उन पर अत्याचार के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. परिस्थितियां इस कदर बदल रही हैं कि बुजुर्गों की दर्द भरी दास्तान सुनकर कानों को यकीन भी न हो. बुजुर्ग अपने ही घर के भीतर असुरक्षित हैं. ताना मारना, उलाहना देना या गाली देना तो आम बात है. घरेलू हिंसा के शिकार ज्यादातर बुजुर्ग तनाव के शिकार हो रहे हैं.
जागरूकता के अभाव में नहीं ले पाते है मदद : माता-पिता के संरक्षण के लिए कानून भी बने हुए हैं. ऐसा ही एक कानून है ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का रख-रखाव व कल्याण अधिनियम-2007’. इसमें बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल के प्रावधान हैं. वृद्धावस्था से संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिए यह एक ऐतिहासिक कानून है. इससे जुड़ी पुष्पलता सिंह कहती हैं कि जानकारी का अभाव और बदनामी के डर चलते बुजुर्ग खुद ही कानून का सहारा लेने में हिचकते हैं. कई मामलों में बुजुर्ग अपने बच्चों को इस कदर प्यार करते हैं कि उनकी प्रताड़ना भी खामोशी से सह लेते हैं. उन्होंने कहा कि अकेले कानून से कुछ नहीं होगा. बच्चों में शुरू से ही संस्कार के बीज बोने पड़ेंगे. हमारी नयी पीढ़ी को बचपन से ही बुजुर्गों के प्रति संवेदनशील बनाये जाने की जरूरत है. साथ ही बुजुर्गो को आर्थिक रूप से सबल बनाने के विकल्पों पर भी ध्यान देना होगा.
केस स्टडी- एक
शनिवार को एक रिक्शा पर जख्मी हालत में डुमरैल से एक बुजुर्ग सदर थाना पहुंचते हैं. हाथ में पट्टी देख ओडी में तैनात अधिकारी सअनि मुकेश कुमार सिंह उनसे मामले की जानकारी लेते हैं तो उनके आंख से आंसू टपक पड़ते हैं. काफी कुदेरने पर कहा कि क्या कहें साहेब संतान ही जान के पीछे पड़ा है. जख्मी बुजुर्ग ने बताया कि कुछ दिन पूर्व सात लाख में जमीन बेचा. दो बेटा के बीच ढ़ाई लाख कर बांट दिया. दो लाख अपने बुढ़ापे के लिए रखा. लेकिन दोनों बेटा वह भी मांग रहा है. पुलिस धनबिहारी मिश्रा ने बुजुर्ग का बयान दर्ज किया और कार्रवाई का निर्देश दिया.
केस स्टडी- दो
सदर थाना से डुमरैल निवासी बुजुर्ग निकले भी नहीं थे कि नयाबाजार से एक दंपति पहुंचा. पूछने पर पुलिस पदाधिकारी को बताया कि वह पान दुकान कर परिवार का भरण पोषण करता है. उसके पुत्र को गलत लत लग गयी है. जिसके कारण हमेशा पैसा का मांग करता है. विरोध करने पर मारपीट करता है. अभी भी वह पैसा का मांग किया नहीं देने पर हाथ में चाकू व पेट्रोल लेकर जान देने की धमकी दी. विरोध किया तो दोनों के साथ मारपीट की. पुलिस अधिकारी अरविंद मिश्रा ने मामले की लिखित शिकायत करने व सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया.
मां-बाप की परवरिश में बच्चा जुड़ता है परंपराओं से
मां-बाप बच्चों को बोझ लगने लगे है, तो इसके लिए कुछ हद तक मां-बाप खुद भी जिम्मेदार हैं. क्योंकि उन्हीं की परवरिश में बच्चा परंपराओं से जुड़ता या दूर होता है. बुजुर्गों के प्रति बढ़ती असंवेदना के लिए सिर्फ देश के बड़े महानगर ही जिम्मेदार नहीं हैं. यह प्रवृत्ति छोटे शहरों में भी दिखाई देने लगी है. बुजुर्गों के प्रति संवेदनहीनता देश के छोटे-बड़े सभी शहरों में दिखाई देती है. बुजुर्ग अपना दर्द सार्वजनिक नहीं करना चाहते. मुंह खोलने पर परेशानी और बढ़ने की आशंका के चलते वे चुप रहना पसंद करते हैं. दूसरे बदनामी का डर भी बना रहता है. बुजुर्ग के साथ हो रहे घरेलू हिंसा मामले में ज्यादातर पारिवारिक संपत्ति ही कारण बन रहे हैं.

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