ऑपरेशन के बाद नहीं दिया बेड मरीज को बरामदे पर ही सुलाया
सिमरी : बिहार सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं के बेहतर होने के लाख दावे कर ले, लेकिन जमीनी हकीकत वादों से कोसों दूर है. ताजा मामला सिमरी बख्तियारपुर अनुमंडलीय अस्पताल का है. प्रभात खबर की टीम सोमवार देर रात्रि जब अनुमंडलीय अस्पताल पहुंची तो अस्पताल में डॉक्टर से लेकर नर्स तक मरीजों की चिंता से मुक्त आराम […]
सिमरी : बिहार सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं के बेहतर होने के लाख दावे कर ले, लेकिन जमीनी हकीकत वादों से कोसों दूर है. ताजा मामला सिमरी बख्तियारपुर अनुमंडलीय अस्पताल का है. प्रभात खबर की टीम सोमवार देर रात्रि जब अनुमंडलीय अस्पताल पहुंची तो अस्पताल में डॉक्टर से लेकर नर्स तक मरीजों की चिंता से मुक्त आराम करते नजर आये.
वहीं मरीजों का हाल सबसे बुरा दिखा. लगभग दो दर्जन से ज्यादा बंध्याकरण का ऑपरेशन कर चुकी मरीज इस कंपकंपाती ठंड में जमीन पर खुले बरामदे में रात गुजारते दिखे. दर्द और ठंड से परेशान यह मरीज जैसे तैसे रात गुजार रहे थे. वहीं मरीजों के परिजन जग कर मरीज को आवारा कुत्तों से बचाने के लिए पहरेदारी करते नजर आये. इस संबंध में अनुमंडलीय अस्पताल उपाधीक्षक डॉ एन के सिन्हा ने कहा कि मरीजों को तिरपाल उपलब्ध करवाया गया था.
मजबूरी है साहब.. : साहब, किसी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. बरामदे में ठिठुर रहे हैं. डॉक्टर साहब सोये हैं. कुछ सुविधा उपलब्ध नहीं है. यह बातें सिमरी बख्तियारपुर अनुमंडलीय अस्पताल में इलाजरत सरबेला निवासी सत्तो साह की पत्नी राजमुनि देवी के परिजनों ने कही.
गोरियारी निवासी अमरदीप कुमार की पत्नी सोनी कुमारी के परिजनों ने बताया कि देर शाम ऑपरेशन हुआ और ऑपरेशन थिएटर से निकाल कर मरीज को उठाकर खुले बरामदे में सुला दिया गया. अब रात के साढ़े दस बज रहे हैं. मरीज की ठंड से जान जा रही है. यही हाल मरीज चुन्नी देवी और गीता देवी का था. मरीज के परिजनों ने बताया कि कोई नहीं देखने वाला, डॉक्टर से लेकर नर्स तक गायब हैं.
सोमवार देर रात्रि सिमरी बख्तियारपुर अनुमडंल के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में परिवार नियोजन के हो रहे ऑपरेशन में बदइंतजामी का माहौल हैरान कर देने वाला था. अस्पताल में ऑपरेशन कराने के बाद ढाई दर्जन मरीजों को हाड़ कंपाने वाली ठंड के बीच बेड पर सुलाने के बजाय अस्पताल की जमीन पर खुले में जमीन पर चादर बिछा कर ही सोना पड़ रहा था.
अस्पताल प्रशासन की इस लापरवाही से ठंड लगने और संक्रमण फैलने का खतरा बना हुआ था. लेकिन डॉक्टरों के टारगेट पूरा करने की जद्दोजहद में मरीजों की स्थिति जानवरों से भी बदतर दिखी. मरीज अस्पताल के खुले बरामदे में ऑपरेशन के दर्द और ठंड दोनों से परेशान दिखे. इस ठंड में बिना व्यव्यस्था के ऑपरेशन करना सरकार की सबसे बड़ी लापरवाही है.
भगवान भरोसे है अस्पताल
सिमरी बख्तियारपुर, सलखुआ और बनमा इटहरी प्रखंड की लाखों की आबादी के लिए सरकारी चिकित्सा सुविधा का एकमात्र सबसे बड़ा केंद्र अनुमंडलीय अस्पताल भगवान भरोसे है. वर्तमान में अनुमंडल अस्पताल प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रतिनियुक्त स्वास्थ्यकर्मी व कुछ नये कर्मी के सहारे चलाया जा रहा है. वहीं गंभीर रोगों के इलाज की यहां कोई व्यवस्था नहीं है. चिकित्सा के अभाव में गंभीर रूप से बीमार मरीज असमय काल के गाल में समा जाते हैं और मामूली रूप से बीमार मरीज को सहरसा सदर अस्पताल रेफर कर दिया जाता है.
इसके कारण अनुमंडल के सिमरी बख्तियारपुर, सलखुआ व बनमा ईटहरी प्रखंड के लाखों लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के लिए सहरसा या फिर पटना की शरण लेनी पड़ रही है. ज्ञात हो कि सरकार ने राज्य के 47 अनुमंडल में वित्तीय वर्ष 2009-10 में 100 शैया वाले अनुमंडल अस्पताल बनाने की घोषणा की थी और इसी कड़ी में कोसी क्षेत्र के लाखों लोगों की स्वास्थ्य सुविधा के लिए यहां भी 100 शैय्या वाले अनुमंडलीय अस्पताल बनाने की नींव पड़ी.
अनुमंडलीय अस्पताल का विशाल भवन 4 करोड़ 91 लाख रुपये की लागत से बन कर तैयार हुआ. आज से लगभग चार वर्ष पूर्व 26 मई 2015 को अनुमंडल अस्पताल का बोर्ड भी लगा दिया गया. लेकिन अनुमंडलीय अस्पताल वाली सुविधा आज तक बहाल नहीं की गयी है. सौ शैय्या वाले अनुमंडल अस्पताल में स्वास्थ्य विभाग से पचास से ज्यादा चिकित्सा कर्मी के स्वीकृत पद की अनुशंसा की गयी है. इसके विरुद्ध कुछेक डॉक्टर और नर्स को स्वास्थ्य विभाग ने पदस्थापित कर अपना पल्ला झाड़ लिया है.
इसके कारण मरीजों को काफी परेशानी होती है और यह भी सत्य है कि सिमरी बख्तियारपुर अनुमंडलीय अस्पताल में जो भी मरीज के परिजन रोगी लेकर आते हैं, वह यह समझ कर आते है कि चलो पुर्जा कटाने के बाद रेफर करा कर अन्य जगह इलाज के लिये चले जायेंगे. क्योंकि बीते वर्षो में इस अस्पताल ने रेफरल अस्पताल के रूप में प्रसिद्धि पा ली है और यहां इलाज के नाम पर फर्स्ट ऐड कर सहरसा रेफर कर दिया जाता है.