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सहरसा न्यायालय से फरार दारोगा बने इंस्पेक्टर

सहरसा : सहरसा व्यवहार न्यायालय से विगत आठ वर्षो से फरार सहरसा जिले के सदर थाना के तत्कालीन दारोगा सुशील यादव अब दारोगा से इंस्पेक्टर बन गये हैं. यह दरोगा 1994 बैच के दबंग दारोगा माने जाते हैं. सहरसा जिले के मिथिलेश ओझा आज भी सुशील यादव का नाम सुनते ही डर जाते हैं. दारोगा […]

सहरसा : सहरसा व्यवहार न्यायालय से विगत आठ वर्षो से फरार सहरसा जिले के सदर थाना के तत्कालीन दारोगा सुशील यादव अब दारोगा से इंस्पेक्टर बन गये हैं. यह दरोगा 1994 बैच के दबंग दारोगा माने जाते हैं. सहरसा जिले के मिथिलेश ओझा आज भी सुशील यादव का नाम सुनते ही डर जाते हैं.
दारोगा ने उनकी पिटाई निर्ममता पूर्वक की गयी थी, जिस मामले को लेकर मिथिलेश ओझा ने सदर थाने के तत्कालीन दारोगा सुशील यादव पर सहरसा व्यवहार न्यायालय में मामला दर्ज कराया था. वर्ष 1997 से आज तक तत्कालीन दारोगा सुशील यादव सहरसा न्यायालय से फरार होकर बक्सर जिले के टाउन थाना में थानाध्यक्ष पद पर पदस्थापित थे.
बक्सर विधानसभा की भाजपा विधायक सुखदा पाण्डे ने बक्सर टाउन थाना के थानेदार सुशील यादव की शिकायत तत्कालीन डीजीपी अभयानंद से करीब तीन माह पूर्व की थी. तत्कालीन डीजीपी अभयानंद ने बक्सर टाउन थाना के थानेदार यादव को सस्पेंड भी कर दिया, फिलहाल सुशील यादव बक्सर जिले के पुलिस लाइन में लाइन बाबू के पद पर बने हुए हैं.
सबसे बड़ी बात यह है कि तत्कालीन दारोगा पर सहरसा न्यायालय में दर्ज केस अभी फस्र्ट क्लास मजिस्ट्रेट अपर मुनसिफ एके मांझी के कोर्ट में चल रहा है. इसमें वह विगत 8 वर्षो से फरार हैं और न्यायालय ने तत्कालीन दारोगा पर वारंट जारी कर दिया है. वैसी स्थिति में पुलिस महकमा ने तत्कालीन दारोगा को हाल ही के दिनो में प्रमोशन दे दिया है. सुशील यादव दारोगा से इंस्पेक्टर हो गये हैं.
2006 से सहरसा न्यायालय से फरार सुशील यादव पर जमानती वारंट खंडित कर दिया गया है. न्यायालय ने सुशील यादव के विरुद्ध 2011 में वारंट जारी कर सहरसा एसपी और डीआइजी को भेजा. उस वारंट को सहरसा पुलिस के द्वारा दबा दिया गया, न्यायालय से फरार तत्कालीन दारोगा सुशील यादव को सहरसा पुलिस गिरफ्तार कर न्यायालय के सामने आज तक प्रस्तुत नहीं कर पायी है.
सहरसा जिले के पुलिस महकमे में 1994 बैच के सदर थाना के तत्कालीन दारोगा सुशील यादव ने अपनी पुलिसिया वरदी का धौंस दिखा कर सामाजिक सरोकार से जुड़े मिथिलेश ओझा को प्रताड़ित किया. मामला वर्ष 1997 का है. मिथिलेश ओझा के पास एक डीजल कार थी. दबंग दारोगा सुशील अक्सर मिथिलेश ओझा से गाड़ी चढ़ने के लिए मांग करता था.
मिथिलेश ने एक बार कार खराब रहने के कारण गाड़ी देने से इनकार कर दिया. फिर क्या सुशील ने मिथलेश को साजिश के तहत पड़ोसी विन्देश्वरी प्रसाद सिंह को वरदी का धौंस दिखा कर एक झूठा रंगदारी मांगने का आरोप लगवाया और प्राथमिकी दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर वर्ष 1997 में सदर थाना के हाजत में बंद कर दिया. रात के 8 बजे शराब के नशे में धुत तत्कालीन दारोगा ने हाजत से मिथिलेश को निकाल कर निर्ममता पूर्वक पिटाई की. इससे मिथिलेश चलने-फिरने से लाचार हो गये. मिथिलेश के पिता पितांबर ओझा व उनके भाई शिवेश कुमार ओझा व अन्य परिजन ने सुशील यादव से पिटाई नहीं करने की मिन्नत भी की. यह घटना उस समय समाचार की सुर्खी बनी थी.
यहां तक कि मुख्य न्याययिक दंडाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किये जाने पर उन्होंने कारा अधीक्षक को आदेश दिया कि मिथिलेश का समुचित इलाज कराने की व्यवस्था कर न्यायालय को सूचित करें, लेकिन उसकी स्थिति को देखते हुए कारा अधीक्षक व जेल चिकित्सा पदाधिकारी ने उसे अपने कारा में लेने से इनकार कर दिया और सिविल सजर्न को पत्र लिख कर इलाज के लिए सदर अस्पताल भेज दिया. महीनों सदर अस्पताल में इलाज चला. उसी दौरान न्यायालय ने मिथिलेश को जमानत पर रिहा कर दिया. लेकिन गंभीर चोट से मिथिलेश का बायां हाथ व बायां पैर टूट गया था.
बेरहमी पूर्वक मारने को लेकर तत्कालीन दारोगा सुशील यादव पर मिथिलेश ने न्यायालय में नालिसी दायर किया, जिसमें दारोगा को न्यायालय ने आरोपी करार देते हुए वारंट जारी किया. न्यायालय से बचने के लिए दारोगा सुशील ने मिथिलेश ओझा को रुपये का प्रलोभन व शहर के स्थानीय नेता व दबंग व्यक्ति के द्वारा दबाव बनाया. लेकिन मिथिलेश ने मामला उठाने से इनकार कर दिया.
इसके बाद दारोगा ने मिथिलेश के पड़ोसी सीआरपीएफ में कार्यरत डिप्टी कमांडेंट कुणाल किशोर भगत व पंकज भगत के जरिये उसे तंग-तबाह करने व झूठे केस के जरिये दबाव बनाना शुरू कर दिया. दोनों ने मिलकर मिथिलेश व उनके परिजन पर सात से आठ झूठे मुकदमे दर्ज किये. अप्रैल 2014 में मिथिलेश व उनके बड़े भाई शिवेश पर जानलेवा हमला भी हुआ, जिसमें दोनों भाई घायल हो गये. इस मामले में कुणाल किशोर भगत व पंकज भगत पर सदर थाना में प्राथमिकी दर्ज की गयी.
जून 2014 को रात 10 बजे महावीर चौक पर घात लगाये बैठे अपराधियों ने मिथिलेश पर जानलेवा हमला किया. यहां तक कि वर्ष 2011 में मिथिलेश पर न्यायालय से मामला नहीं उठाने को लेकर उसके विरुद्ध मुख्यमंत्री के जनता दरबार में मिथिलेश के ऊपर रास्ता अतिक्रमण करने का आरोप मढ़ दिया. जबकि वर्ष 2010 में पकज भगत ने सीआरपीएफ में कार्यरत डिप्टी कमांडेंट कुणाल किशोर भगत एवं उनके पिता नारायण भगत पर रास्ता अतिक्रमण करने का आरोप लगा कर सदर थाना में आवेदन दिया.
उस मामले को तत्कालीन दरोगा सुशील यादव ने रफा-दफा करवा कर नारायण भगत और पंकज भगत दोनों को एक करवा कर 2011 में नारायण भगत से रास्ता अतिक्रमण करने का आरोप मिथिलेश पर लगा कर मुख्यमंत्री के जनता दरबार में लगवाया गया जो कि तत्कालीन दारोगा सुशील यादव ने अपने सहयोग से दिलवायी और बिहार सरकार के राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के प्रधान सचीव डॉ सी अशोकवधर्न ने पत्र के जरिये सहरसा के भूमि सुधार समाहत्र्ता को दिये पत्र में आदेश दिया.
इसमें एक खास बात लिखी जो कि मुख्यमंत्री के जनता दरबार में आये नारायण भगत, कृष्णा नगर सहरसा से आये आवेदक को अपने आदेश पत्र में प्रधान सचिव ने सहरसा के भूमि सुधार उप समाहत्र्ता को आदेश दिया कि इस परची के उपयरुक्त आवेदक आपसे मुलाकात करेंगे. यह कौन सी परची प्रधान सचिव ने नारायण भगत को दी थी. इस परची के साथ नारायण भगत ने सहरसा के भूमि सुधार उप समाहत्र्ता को दी और मुलाकात की थी? इस पत्र का सीधा उदाहरण है कि मिथिलेश को प्रताड़ित करने की बड़ी साजिश है.
एक तरफ रास्ते की जमीन का अतिक्रमण करने की बात नारायण भगत और पंकज भगत ने मिथिलेश ओझा पर लगाया जबकि नारायण भगत के पक्का मकान से पूरब साइड से दक्षिण पूरब कोणा से उत्तर मकान के स्टेपनर से 10.5 कड़ी पर आड़ी बनता है जो रास्ते के लिए नारायण भगत ने रास्ते के लिए एक इंच भी जमीन नहीं छोड़ी है. इस तरह पंकज भगत ने अपने बाउंडरीवाल से एक फीट आगे बढ़ाकर स्टेपनर पीलर गाड़े.
जबकि इस स्थिति में रास्ता अतिक्रमण करने का आरोप मिथिलेश पर लगा कर उनके ही जमीन पर अपना रास्ता बनाने का दबाव दिया. मालूम हो कि मिथिलेश व उनके बड़े भाई शिवेश ओझा पर हुए घटना के नामजद अभियुक्त डिफेंस के डीएसपी कुणाल किशोर भगत अन्य को बचाने के लिए सहरसा पुलिस की भी अहम भूमिका रही जबकि मिथलेश ओझा के द्वारा की गई प्राथमिकी में धारा 307 लगा है जिसका सुपरविजन डीएसपी के द्वारा होनी चाहिए.
यहां केस का सुपरविजन पुलिस निरिक्षक इंस्पेक्टर के द्वारा कराया जाना भी बहुत बड़ी साजिश की तरफ इशारा करता है. मिथिलेश ने न्याय के लिए प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग व डीजीपी और मुख्यमंत्री से पत्र के माध्यम से गुहार लगायी है. न्याय नहीं मिलने पर 2 अक्तूबर 2014 को आत्मदाह करने की बात कही है.

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