महिषी विधानसभा : कोसी नदी और आपदा से है पहचान
महिषी विधानसभा : कोसी नदी और आपदा से है पहचान राजनैतिक, धार्मिक, साहित्यिक व सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध रहा है विधानसभा क्षेत्रबहुत कुछ बदला तो बहुत कुछ बदलना है बाकीप्रतिनिधि / सहरसा नगरजिले के चार विधानसभा क्षेत्रों में प्रारंभ से ही महिषी पर सबकी नजर बनी रही है. कोसी नदी और सलाना आपदा से […]
महिषी विधानसभा : कोसी नदी और आपदा से है पहचान राजनैतिक, धार्मिक, साहित्यिक व सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध रहा है विधानसभा क्षेत्रबहुत कुछ बदला तो बहुत कुछ बदलना है बाकीप्रतिनिधि / सहरसा नगरजिले के चार विधानसभा क्षेत्रों में प्रारंभ से ही महिषी पर सबकी नजर बनी रही है. कोसी नदी और सलाना आपदा से पहचान बनाने वाले इस विधानसभा क्षेत्र ने कितनों को बनाया तो कितनों को आइना भी दिखा दिया है. राजनैतिक, धार्मिक, साहित्यिक व सांस्कृतिक रूप से समृद्ध महिषी विधानसभा क्षेत्र नये परिसीमन में दूसरी बार चुनाव का सामना कर रहा है. इस बार राज्य सरकार में सत्तासीन महागठबंधन के राजद सहित एनडीए के रालोसपा सहित कुल 13 प्रत्याशी चुनावी मैदान में डटे हैं. चुनावी स्वभावानुसार वे मतदाताओं को सामने वालों की कमी व अपनी ओर से नये व सुंदर सब्जबाग दिखा रहे हैं. हालांकि यह भी स्पष्ट है कि मतदाताओं ने अपने वोट की दिशा तय कर ली है. सुजान सिंह की तरह वे अब सिर्फ जनप्रतिनिधि बनने की चाहत रखने वालें की गतिविधि पर नजरें गड़ाये बैठे हैं. गांव है, गांव की तरह दिखता हैलगभग पूरा महिषी विधानसभा क्षेत्र ग्रामीण इलाकों से घिरा है. लिहाजा क्षेत्र गांव की तरह ही दिखता है. सत्तरकटैया, नवहट्टा व महिषी प्रखंडों से सम्मिलित इस विधानसभा क्षेत्र के कुल 14 पंचायत (महिषी के सात व नवहट्टा के सात) पूर्वी कोसी तटबंध के अंदर बसे हुए हैं. तटबंध के बाहर व भीतर दोनों जगह अन्य क्षेत्रों की तरह विकास की रेखाएं खींची गई है. दोनों ओर जमीन और पानी की उपलब्धता के अनुसार खेती भी बड़े पैमाने पर होती है. नदी और सालों भर पानी के प्रभाव वाले इलाके में मखाना और मछली का भरपूर उत्पादन होता है. गांव के लोग आज भी अपने कामों में काफी व्यस्त दिखते हैं. इस चुनाव मतदाता ऐसे की तलाश में है, जो विकास की इस लकीर को और भी लंबा खींच सके. बहुत बदला फिर भी है जरूरतसंपूर्ण विधानसभा क्षेत्र में सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य व बिजली के मामलों में बदलाव की कहानी दिखती है. लेकिन अभी भी कई ऐसे इलाके हैं जो विकास की इस कहानी से अछूती रह गये हैं. बलुआहा नदी पर बने कोसी महासेतु से तटबंध के अंदर बसे दर्जनों गांवों तक पहुंचना आसान हुआ तो अंदर के कई गांवों को बाहर से जोड़ने के लिए कोसी नदी और नाव ही सहारा बना हुआ है. नदी के गर्भ में बसे दर्जनों गांव तक बिजली पहुंचा दी गयी है तो कुछ गांव आज भी ऐसे हैं. जहां के लोगों को पंखे की हवाखोरी का कोई ज्ञान नहीं है. तटबंध के बाहर सड़कों का जाल बिछा है तो अंदर खेतों की आड़ व मिट्टी की पगडंडियों का सहारा है. रेफरल व पीएचसी खुले व कार्यरत भी है. लेकिन डॉक्टर सहित अन्य चिकित्साकर्मियों की कमी व अनुपस्थिति उन्हें खटकती है. बाढ़ की अवधि शुरू होते ही अंदर और बाहर दोनों जगह कोसी की आपदा में समानता होती है. अंदर के लोगों को डूबने का डर तो बाहर के लोगों को तटबंध के दरकने की चिंता सताती है. फोटो- कोसी 3 व 4 – तटबंध के ठीक बाहर बसा शाहपुर गांव व अंदर खेती करते किसान