मृगतृष्णा. अोवरब्रिज की लागत 10 करोड़ से हुई 80 करोड़

सिर्फ बनती रही डीपीआर नेताओं के लिए जनता के पैसों का कोई मोल नहीं है. बंगाली बाजार में अोवरब्रिज के लिए बार-बार शिलान्यास व डीपाआर बनाना इसकी बानगी भर है. लोग जाम से परेशान हैं. लेकिन अोवरब्रिज को लेकन नेताअों का तामझाम जारी है. सहरसा मुख्यालय : एक बार फिर से रेलवे व एनएचएआइ के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 18, 2016 6:33 AM

सिर्फ बनती रही डीपीआर

नेताओं के लिए जनता के पैसों का कोई मोल नहीं है. बंगाली बाजार में अोवरब्रिज के लिए बार-बार शिलान्यास व डीपाआर बनाना इसकी बानगी भर है. लोग जाम से परेशान हैं. लेकिन अोवरब्रिज को लेकन नेताअों का तामझाम जारी है.
सहरसा मुख्यालय : एक बार फिर से रेलवे व एनएचएआइ के बीच संशय में फंसे बंगाली बाजार ओवरब्रिज की कहानी का एक पहलू यह भी है कि नेताओं के पास जनता के पैसों का कोई मोल नहीं है.
1997 से शुरू हुए शिलान्यास के खेल में तैयार किए गए डीपीआर दर डीपीआर में ओवरब्रिज की लागत आठ गुनी बढ़ गयी. लेकिन निर्माण कार्य शुरू कराने के प्रति कभी किसी की दिलचस्पी नहीं बनी और लोग जाम से कराहते रह गये.
प्राक्कलन बना पर नहीं बना पिलर : 19 साल पूर्व साल 1997 में जब पहली बार इस स्थान पर ओवरब्रिज का शिलान्यास हुआ था. तब तैयार किए गए डीपीआर में आरओबी की लागत 10 करोड़ रुपये बतायी गयी थी. उस समय रेल मंत्री रहे नीतीश कुमार ने पहले चरण में दो करोड़ रुपये की राशि भी आवंटित कर दी थी. लेकिन काम शुरू नहीं हो पाया.
11 साल पूर्व जब दूसरी बार इसी आरओबी का शिलान्यास हुआ तो तैयार होने में खर्च 40 करोड़ रुपये बताया गया. नौ वर्ष में प्राक्कलित राशि में 30 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हो गई. लेकिन फिर भी काम शुरू नहीं हो पाया. दूसरे शिलान्यास के समय रेलमंत्री लालू प्रसाद थे और इन्होंने काम शुरू करने के लिए कोई राशि नहीं दी.
दो साल पहले लोकसभा चुनाव से ठीक पूर्व जब तीसरी बार इस ओवरब्रिज का शिलान्यास हुआ तो पुल बनने में पहले से आठ गुना और दूसरी बार से दो गुना अधिक यानी 80 करोड़ रुपये लागत आने की बात कहीं गई. इस बार शिलान्यासकर्ता रेल राज्यमंत्री अधीर रंजन चौधरी थे व प्रथम चरण में मिट्टी जांच के लिए दस लाख रुपये की राशि दी गई. मिट्टी जांच तो हुई, लेकिन उससे आगे रत्ती भर भी काम नहीं बढ़ पाया.

Next Article

Exit mobile version